हमारे शास्त्र हमारे लिए जीवन है | बिना शास्त्रों के हम निर्जीव हैं |मनुष्य और पशु दोनों में एक मात्र अंतर यही है कि पशु किसी भी प्रकार का अध्ययन नहीं कर सकता जबकि मनुष्य की बुद्धि इतनी विकसित है कि वह अध्ययन कर अपने भले बुरे को समझ सकता है | यह क्षमता उसके लिए अपना जीवन सुगमता और आनंदपूर्वक जीवन जीने के लिए परमात्मा का एक आशीर्वाद है |दूसरा आशीर्वाद परमात्मा का हमारे ऊपर है कि उसने हमें इतने अच्छे शास्त्र प्रदान किये है |संसार में आज तक क्या हुआ है, भविष्य में क्या होने वाला है, आपको अपने जीवन में क्या करना या क्या नहीं करना चाहिए,संसार में जो और जैसे घटित हो रहा है उसका राज़ क्या है आदि सभी ज्ञान और विज्ञान हमारे सनातन शास्त्रों में छुपा हुआ है |आवश्यकता केवल हमारी रुचि और लगन की है |अगर हमारी लगन और आस्था इनमे हो तो फिर समुद्र मंथन से प्राप्त अमूल्य वस्तुओं की तरह हम भी इन शास्त्रों का मंथन कर बहुमूल्य ज्ञान परमात्मा के आशीर्वाद फलस्वरूप प्राप्त कर सकते हैं |
जिस प्रकार दही को मंथन प्रारम्भ करते ही कुछ पलों में मख्खन प्राप्त नहीं होता है उसी प्रकार सनातन शास्त्रों का अध्ययन प्रारम्भ करते ही तुरंत ही इसके रहस्य प्रकट नहीं होते हैं |मख्खन प्राप्त करने के लिए जैसे धैर्य रखते हुए दही को तन्मयता के साथ मथना पड़ता है, ठीक उसी प्रकार शास्त्रों का बार बार अध्ययन करते हुए ही उसमे समाहित ज्ञान को प्राप्त कर आलोकित हुआ जा सकता है | अतः प्रथमतः हमें इन शास्त्रों के प्रति आस्था और विश्वास रखना होगा | उसके बाद धैर्य के साथ उसका अध्ययन प्रारम्भ करना होगा | प्रथम बार अध्ययन करने पर वे नीरस प्रतीत होते हैं परन्तु सतत अध्ययन के फलस्वरूप जब आपकी रूचि इनमे बनने लगती है तब आपको इसके अध्ययन में एक प्रकार के अतुलनीय आनंद की अनुभूति होने लगती है |जब आपको इनमे आनंद आने लगे तब आप अपनी बुद्धि को सूक्ष्म करते हुए इन शास्त्रों के प्रत्येक श्लोक में गहरे झांकने का प्रयास करें, इनमे आपको विलक्षणता दिखाई देगी |
प्रत्येक बार आपको अध्ययन करने से नए ज्ञान की अनूभूति होगी | इस प्रकार सतत अध्ययन से आप इन सनातन शास्त्रों में समाहित ज्ञान और विज्ञान को समझ पाएंगे, यह मेरा विश्वास है | कल से हम विभिन्न शास्त्रों में समाहित ज्ञानयुक्त श्लोकों पर विवेचन प्रारम्भ करेंगे, जिससे आपको इन शास्त्रों को समझने में सहायता मिल सके | प्रारम्भ हम भगवान श्रीकृष्ण की वाणी श्रीमद्भागवतगीता से करेंगे |
|| हरिः शरणम् ||
जिस प्रकार दही को मंथन प्रारम्भ करते ही कुछ पलों में मख्खन प्राप्त नहीं होता है उसी प्रकार सनातन शास्त्रों का अध्ययन प्रारम्भ करते ही तुरंत ही इसके रहस्य प्रकट नहीं होते हैं |मख्खन प्राप्त करने के लिए जैसे धैर्य रखते हुए दही को तन्मयता के साथ मथना पड़ता है, ठीक उसी प्रकार शास्त्रों का बार बार अध्ययन करते हुए ही उसमे समाहित ज्ञान को प्राप्त कर आलोकित हुआ जा सकता है | अतः प्रथमतः हमें इन शास्त्रों के प्रति आस्था और विश्वास रखना होगा | उसके बाद धैर्य के साथ उसका अध्ययन प्रारम्भ करना होगा | प्रथम बार अध्ययन करने पर वे नीरस प्रतीत होते हैं परन्तु सतत अध्ययन के फलस्वरूप जब आपकी रूचि इनमे बनने लगती है तब आपको इसके अध्ययन में एक प्रकार के अतुलनीय आनंद की अनुभूति होने लगती है |जब आपको इनमे आनंद आने लगे तब आप अपनी बुद्धि को सूक्ष्म करते हुए इन शास्त्रों के प्रत्येक श्लोक में गहरे झांकने का प्रयास करें, इनमे आपको विलक्षणता दिखाई देगी |
प्रत्येक बार आपको अध्ययन करने से नए ज्ञान की अनूभूति होगी | इस प्रकार सतत अध्ययन से आप इन सनातन शास्त्रों में समाहित ज्ञान और विज्ञान को समझ पाएंगे, यह मेरा विश्वास है | कल से हम विभिन्न शास्त्रों में समाहित ज्ञानयुक्त श्लोकों पर विवेचन प्रारम्भ करेंगे, जिससे आपको इन शास्त्रों को समझने में सहायता मिल सके | प्रारम्भ हम भगवान श्रीकृष्ण की वाणी श्रीमद्भागवतगीता से करेंगे |
|| हरिः शरणम् ||