Friday, July 10, 2015

मानव-श्रेणी |-23

साधक-
               जब किसी मनुष्य की विषयों के प्रति आसक्ति समाप्त हो जाती है,तब वह परमात्मा को पाने को उत्सुक हो जाता है | हालाँकि इस आसक्ति का समाप्त हो जाना बहुत ही मुश्किल है |कई बार  विषयों के प्रति आसक्ति समाप्त हो जाने का भ्रम मात्र होता है |  भौतिक रूप से विषय प्राप्त करने को व्यक्ति चाहे तो बलपूर्वक रोक सकता है परंतु मन ही मन वह उस विषय का रसास्वादन करता रहता है |इसको आसक्ति समाप्त होना नहीं कहा जा सकता |आसक्ति तभी समाप्त होना मानी जाती है जब मन में भी उस विषय को पाने अथवा भोगने का विचार तक पैदा न  हो |केवल इस अवस्था को उपलब्ध हुआ व्यक्ति ही विषय-निवृत माना जा सकता है |जब विषय-निवृति हो जाती है तभी परमत्मा को पाने की प्रवृति का प्रारम्भ होता है | यह वह स्थिति है,जब मनुष्य विषयी से साधक होने की राह पकड़ने जा रहा होता है |
                       परन्तु इस साधना का मार्ग ,इस साधना का पथ इतना विकट और उलझनों से भरा है कि प्रायः व्यक्ति इस साधना पथ  को शीघ्र ही त्याग कर पुनः भौतिक संसार में आकर विषयों को पाने में रत हो जाता है |अतः विषयों से अघाया व्यक्ति प्रायः साधक होने का भ्रम पैदा अवश्य ही करता है परन्तु वास्तविकता  में वह विषयी ही होता है क्योंकि विषय प्राप्ति से कोई भी व्यक्ति कभी भी संतुष्ट नहीं होता है ,अघाना तो बहुत दूर की बात है |हम भारतीय लोग दिखावे को ज्यादा पसंद करते हैं और इस कारण बहुधा हम ऐसे किसी भी भ्रमजाल में आसानी से उलझ जाते हैं |जब हमें साधक या सिद्ध की वास्तविकता पता चलती है,तब तक बहुत देर हो चुकी होती है | अतः प्रत्येक व्यक्ति को ऐसे मामलों में उतावलापन दिखाने की कोई आवश्यकता नहीं होनी चाहिए | साधक होते हुए भी सिद्ध बनना बहुत ही कठिन है |प्राय: लोग साधना से पदच्युत होकर विषयों की तरफ ही पुनः लौट जाते हैं | सिद्ध की परख करके ही साधक को उसकी राह पकड़नी चाहिए अन्यथा हम भी उसी  की तरह भ्रमित होकर पुनः इस विषयी संसार में लौट आयेंगे |
क्रमशः
                                     || हरिः शरणम् || 

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