विषयी-पुरुष (गंध )-
जल में विकार पैदा होने से पृथ्वी अस्तित्व में आयी और पृथ्वी का प्रतिनिधित्व हमारे शरीर में घ्रानेंद्रिय करती है और उसका नाम है-नाक । नाक से हम किसी भी पदार्थ की गंध प्राप्त करते हैं । हमारे नाक में सूंघने के लिए कई कलिकाएँ होती है जो वायु के साथ आ रहे गंध कणों को जल के साथ मिलाकर इन कलिकाओं को उद्वेलित करती है । यह गंध संकेत के रूप में हमारे मस्तिष्क तक पहुंचती है जहाँ पर इनका विश्लेषण होता है । इस विश्लेषण के आधार पर ही हम सुगंध अथवा दुर्गंध का अनुभव करते हैं ।इस इन्द्रिय में अग्नि को छोड़कर शेष सभी चारों तत्वों की भूमिका होती है ।मुख्य भूमिका पृथ्वी की होती है और आकश,वायु और जल सहायक की भूमिका में होते हैं । गंध कण पृथ्वी से उठकर वायु के साथ आकाश से होते हुए नाक में जाकर जल में घुलते है तभी हम किसी भी गंध का अनुभव कर सकते है । इनमें से किसी भी एक भौतिक तत्व की अनुपस्थिति में गंध का अनुभव करना असंभव होता है ।
किसी भी वायु रहित स्थान पर अवस्थित होने पर हमें गंध का अनुभव नहीं हो सकता । नाक की संरचना में विकृति आ जाने पर भी हमें गंध का आभास नहीं हो पाता क्योंकि इस विकृति में नाक की गंध कलिकाओं में जल लगभग अनुपस्थित हो जाता है । कभी कभी गंध तन्त्रिकाओं के रोगजनित हो जाने पर संकेत मस्तिष्क तक अलग रूप में पहुंचते हैं जिससे गंध का विश्लेषण सही नहीं हो पाता । भोजन करते हुए हमें भोजन की गंध अनुभव होती है उसका कारण यह है कि भोजन को छूकर जो वायु हमारे फेंफडों में जाती है वह वायु नाक की गंध कलिकाओं में जा वहां जल में घुल कर हमें उस भोजन की गंध का भी अनुभव करा देती है । ऐसी स्थिति में हमें भोजन के स्वाद के साथ साथ उसकी गंध का भी अनुभव हो जाता है । यही कारण है कि कडवे स्वाद वाली दवा को लोग प्रायः नाक बंद करके ही निगलना चाहते हैं जिससे उन्हें न तो दवा का स्वाद पता चले और न ही उसकी गंध का अनुभव हो ।
क्रमशः
॥ हरिः शरणम् ॥
जल में विकार पैदा होने से पृथ्वी अस्तित्व में आयी और पृथ्वी का प्रतिनिधित्व हमारे शरीर में घ्रानेंद्रिय करती है और उसका नाम है-नाक । नाक से हम किसी भी पदार्थ की गंध प्राप्त करते हैं । हमारे नाक में सूंघने के लिए कई कलिकाएँ होती है जो वायु के साथ आ रहे गंध कणों को जल के साथ मिलाकर इन कलिकाओं को उद्वेलित करती है । यह गंध संकेत के रूप में हमारे मस्तिष्क तक पहुंचती है जहाँ पर इनका विश्लेषण होता है । इस विश्लेषण के आधार पर ही हम सुगंध अथवा दुर्गंध का अनुभव करते हैं ।इस इन्द्रिय में अग्नि को छोड़कर शेष सभी चारों तत्वों की भूमिका होती है ।मुख्य भूमिका पृथ्वी की होती है और आकश,वायु और जल सहायक की भूमिका में होते हैं । गंध कण पृथ्वी से उठकर वायु के साथ आकाश से होते हुए नाक में जाकर जल में घुलते है तभी हम किसी भी गंध का अनुभव कर सकते है । इनमें से किसी भी एक भौतिक तत्व की अनुपस्थिति में गंध का अनुभव करना असंभव होता है ।
किसी भी वायु रहित स्थान पर अवस्थित होने पर हमें गंध का अनुभव नहीं हो सकता । नाक की संरचना में विकृति आ जाने पर भी हमें गंध का आभास नहीं हो पाता क्योंकि इस विकृति में नाक की गंध कलिकाओं में जल लगभग अनुपस्थित हो जाता है । कभी कभी गंध तन्त्रिकाओं के रोगजनित हो जाने पर संकेत मस्तिष्क तक अलग रूप में पहुंचते हैं जिससे गंध का विश्लेषण सही नहीं हो पाता । भोजन करते हुए हमें भोजन की गंध अनुभव होती है उसका कारण यह है कि भोजन को छूकर जो वायु हमारे फेंफडों में जाती है वह वायु नाक की गंध कलिकाओं में जा वहां जल में घुल कर हमें उस भोजन की गंध का भी अनुभव करा देती है । ऐसी स्थिति में हमें भोजन के स्वाद के साथ साथ उसकी गंध का भी अनुभव हो जाता है । यही कारण है कि कडवे स्वाद वाली दवा को लोग प्रायः नाक बंद करके ही निगलना चाहते हैं जिससे उन्हें न तो दवा का स्वाद पता चले और न ही उसकी गंध का अनुभव हो ।
क्रमशः
॥ हरिः शरणम् ॥
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