Saturday, July 25, 2015

मानव-श्रेणी |-26

साधक-
          जब विषयों से पूर्णतया निवृति हो जाती है तब व्यक्ति परमात्मा को पाने का प्रयास प्रारम्भ करता है |इस प्रयास को साधना और प्रयासरत व्यक्ति को साधक कहा जाता है |इस साधना के लिए साधक का शरीर एक साधन होता है और परमात्मा साध्य |साधक,साधना और साधन जब समुचित तालमेल से कार्य करते हैं,तभी साध्य की उपलब्धि हो सकती है |सबसे आवश्यक है साधक की इच्छा शक्ति |अगर साधक के विचार अच्छे हों तो वह अपने साधना पथ से कभी  भी विमुख नहीं हो सकता |साधक की साधना में सहयोगी की भूमिका होती है साधन की | एक साधक की साधना को साध्य  तक पहुँचाने के लिए साधन का स्वस्थ और कर्मशील होना आवश्यक है |यह भौतिक शरीर ही साधक का वह महत्वपूर्ण साधन है जिससे साधना कर वह अपने साध्य को सिद्ध कर सकता है |अतः व्यक्ति का शरीर जब भौतिक,मानसिक,सामाजिक और आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ होगा तभी उसे अपनी साधना को अच्छी तरह संचालित कर सकता है |
           आजकल के आध्यात्मिक प्रवचनकर्ता प्रायः इस स्थूल शरीर की निंदा करते रहते हैं और कहते रहते हैं कि  यह शरीर मिथ्या है |परन्तु हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस शरीर के अभाव में क्या कोई व्यक्ति कभी मुक्ति को प्राप्त हुआ है,परमात्मा को उपलब्ध हुआ है ? मेरा दावा है कि बिना इस शरीर के आज तक कोई भी व्यक्ति परमात्मा को उपलब्ध नहीं हुआ है |अगर क्षण भर के लिए यह मान भी लें कि प्रवचन कर्ता परमात्मा को उपलब्ध हुआ एक व्यक्तित्व है तो ऐसे में मेरा उनसे भी यही प्रश्न है कि क्या उन्होंने अपने शरीर को मिथ्या समझते हुए उसे त्यागकर ही परमात्मा को प्राप्त किया है ? उनका उत्तर नहीं में होगा,मैं जानता हूँ |फिर ऐसे में इस भौतिक शरीर को मिथ्या बताते हुए इसकी आलोचना अथवा निंदा करने का उन्हें कोई अधिकार नहीं है |निंदा की जानी चाहिए इस शरीर में स्थित इन्द्रियों के विषयों  के भोगों के प्रति आसक्ति की , न कि इस शरीर की |ज्योंहि विषयों के भोगों के प्रति व्यक्ति की आसक्ति समाप्त हो जाएगी,यह शरीर बिलकुल भी मिथ्या और आलोच्य नहीं रहेगा |
क्रमशः
                                        || हरिः शरणम् ||

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