Monday, July 20, 2015

मानव-श्रेणी |-25

साधक-
                 प्रवृति  होना - साधक होकर साधना पथ पर आगे बढ़ना है |ऐसे साधक के साधना पथ पर अनेकों विविध प्रकार की बाधाएं आती है जो उसको पथच्युत करने का प्रयास करती है |हमारे शास्त्रों में ही ऐसे कई उदाहरण मिल जायेंगे | शिव की साधना भंग करने के लिए कामदेव को भेजा गया था |इसी प्रकार विश्वामित्र की साधना भंग करने के लिए मेनका को भेजा गया था |दोनों की ही साधना में इनके कारण व्यवधान पैदा हुआ था | जब ऐसी महान विभूतियाँ  साधनारत होते हुए भी विषय के प्रति आसक्त हो सकते हैं तो फिर साधारण  मनुष्य की  तो औकात ही क्या है ? इसीलिए गीता में भगवान ने कहा है कि हजारों में कोई एक मुझे पाने का प्रयास  करता है और ऐसा प्रयास करने वाले हजारों मनुष्यों में भी कोई एक मुझे तत्व से जान पाता है | हजारों साधकों में से ज्यादातर तो पुनः विषयों में लौट जाते हैं और नाम मात्र के जो साधना पथ में आगे बढ़कर साधक बन जाते है, उनमे से भी कोई एक विरला ही परमात्मा को जानकर सिद्ध होने की अवस्था को उपलब्ध होता है |
                          साधक के साधना पथ पर सभी विषय उसे  प्रभावित करने का प्रयास करते हैं |सब कुछ साधक की इच्छाशक्ति पर निर्भर  करता है कि वह इन सभी प्रलोभनों का उल्लंघन करते हुए साधना पथ पर निरंतर प्रगति करता रहे |अगर आप केवल साधक बने बैठे रहे और आगे प्रगति नहीं कर पाए तो परमात्मा को जानना असंभव होगा |प्रायः लोग साधक बनकर ही संतुष्ट हो जाते हैं ,केवल परमात्मा की ओर प्रवृति पैदा कर ही संतुष्ट हो जाते हैं और उससे आगे बढ़ना नहीं चाहते | ऐसे व्यक्ति विषयी होने से भी अधिक ख़राब है |विषयी व्यक्ति विषयों को तो प्राप्त करता रहता है, चाहे उसका परिणाम  कुछ भी हो, जबकि ऐसा स्थिर साधक अपने जीवन में कुछ भी प्राप्त नहीं कर  पाता है |उसके ऊपर "माया मिली न राम" वाली कहावत सटीक बैठती है |साधना में प्रगति करते रहना आवश्यक है ,एक नदी की तरह | गंगा पूजी ही इसीलिए जाती है क्योंकि वह सतत प्रगतिशील रहती है अन्यथा बिना प्रगति  के तो नदी का नाम तक समाप्त हो जाता है |अतः साधक को साधना पथ पर सदैव ही आगे बढ़ते रहना होगा तभी वह भविष्य में एक सिद्ध हो सकता है |
क्रमशः
                                        || हरिः शरणम् ||

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