Friday, July 31, 2015

मानव-श्रेणी |-28

साधक-
            प्रायः यही देखा गया है कि मनुष्य साधना में केवल नियमित कर्मकांडों को ही महत्त्व देता है, जबकि उससे आगे की  प्रगति के लिए परमात्मा विषयक विचार ही योगदान देते हैं । इन सबके लिए साधक को संत संगम और शास्त्र अध्ययन की आवश्यकता होती है । इन दोनों ही पुरुषार्थों के लिए साधक के पास  पर्याप्त समय और धैर्य का होना आवश्यक है ।आज के इस भौतिक युग में व्यक्ति की दैनिक आवश्यकताएं इतनी अधिक बढ़ गयी है कि उसका सारा समय उदरपूर्ति और दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए धनार्जन करने में ही नष्ट हो जाता है । ऐसे में भला वह संत वार्ता और शास्त्र अध्ययन के लिए कहाँ उपलब्ध होगा  ।
                          परन्तु ऐसा सोचना और कहना मात्र एक बहाना ही है ।जिस परमात्मा ने इस संसार में छोटे से छोटे जीव को भी पैदा किया है,उसके लिए उसने  प्रयाप्त भोजन का इंतजाम पैदा होने से पहले ही कर दिया है । हाँ,इसके लिए प्रत्येक जीव को प्रयास तो अपने स्तर पर करना ही होता है । इस प्रयास से ही वह भोजन पाने में सफल होता है । समय पर भोजन उपलब्ध हो जाने के बाद भी व्यक्ति के  पास इतना समय तो पर्याप्त बच ही सकता है,जिसमे वह परमात्मा के सम्बन्ध में विचार कर सकता है और शास्त्र-अध्ययन कर सकता है । रही बात संत-चर्चा की । जब परमात्मा के विषय में विचार अपनी जड़ें गहरी जमा लेते है और शास्त्र अध्ययन उसको  अधिक पोषण देते हैं तो फिर साधू-संगम के लिए भी समय मिल ही जाता है ।
                       अल्प समय  होने का रोना केवल वे ही  साधक रोते हैं,जिनके विषय अभी भी नियंत्रित नहीं किये जा सके हैं । जिस समय वह अपने सभी विषय-वासनाओं से मुक्त हो जायेगा तभी उसके जीवन में संतोष का पदार्पण होगा । जिस दिन व्यक्ति संतोष धारण कर लेता है,तब समय  का अभाव स्वतः ही  समाप्त  हो जाता है । तब उस साधक की साधना के लिए उसके पास चारों बातें उसके पक्ष में  होगी-शम,संतोष,परमात्मा विषयक विचारऔर साधू-संगम ।
क्रमशः
                                           ॥ हरिः शरणम् ॥   

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