साधक-
शास्त्रों के अध्ययन में बढती हुई रुचि और परमात्मा विषयक विचार मनुष्य को ज्ञानार्जन के लिए अनुकूल वातावरण तैयार कर देते हैं |यह अर्जित किया जाने वाला ज्ञान ही वास्तविक ज्ञान होता है |शेष जो भी ज्ञान हम संसार के लिए प्राप्त करते हैं वह सब अविद्या ही है | असली विद्या तो परमात्मा का ज्ञान हो जाना ही है |केवल शास्त्र से ही परमात्मिक ज्ञान संभव नहीं है अतः साधना में चौथा प्रकार साधू संगम को बताया गया है |
जब व्यक्ति साधुओं के साथ बैठेगा तो यह निश्चित है कि वहां चर्चा संसार की तो होगी नहीं |संत संगम में चर्चा केवल परमात्मा के सम्बन्ध में ही होती है | संत संगम में व्यक्ति शास्त्रों के अध्ययन में उठी शंकाओं का समाधान कर सकता है |इसीलिए साधना के लिए संत समागम या गुरु मिलन आवश्यक बताया गया है |गुरु और संत व साधू एक ही श्रेणी के होते हैं |ये वही व्यक्ति होते हैं जो आज मनुष्यों की श्रेणी 'सिद्ध' को प्राप्त कर चुके हैं |इनका साधना अनुभव हमारा मार्गदर्शन करता है जिससे साधना पथ से भटक जाने की सम्भावना समाप्त हो जाती है |एक अनुभव प्राप्त व्यक्ति ही रास्ते की सभी प्रकार की बाधाओं से हमे अवगत करा सकता है |संत मिलन के लिए कहा गया है कि-
संत समागम,हरिकथा,जग में दुर्लभ दोय |
सुत, दारा और लक्ष्मी, पापी के भी होय ||
किसी भी गृहस्थ के धर्मपत्नी,पुत्र और सांसारिक वैभव और धन दौलत हो सकते हैं |ये सब पुण्यात्मा या पापी होने का आधार नहीं हो सकते क्योंकि ये सब तो किसी के पास भी हो सकते हैं |यह सब होना कोई दुर्लभ नहीं है |इस संसार में अगर कुछ दुर्लभ है तो दो ही बातें होना है |एक तो संतों से मिलन और दूसरा परमात्मा की चर्चा |
इस प्रकार हमने एक साधक होने की प्रक्रिया को संक्षेप में जाना | कल से हम सिद्ध के बारे में चर्चा प्रारम्भ करेंगे |
क्रमशः
|| हरिः शरणम् ||
शास्त्रों के अध्ययन में बढती हुई रुचि और परमात्मा विषयक विचार मनुष्य को ज्ञानार्जन के लिए अनुकूल वातावरण तैयार कर देते हैं |यह अर्जित किया जाने वाला ज्ञान ही वास्तविक ज्ञान होता है |शेष जो भी ज्ञान हम संसार के लिए प्राप्त करते हैं वह सब अविद्या ही है | असली विद्या तो परमात्मा का ज्ञान हो जाना ही है |केवल शास्त्र से ही परमात्मिक ज्ञान संभव नहीं है अतः साधना में चौथा प्रकार साधू संगम को बताया गया है |
जब व्यक्ति साधुओं के साथ बैठेगा तो यह निश्चित है कि वहां चर्चा संसार की तो होगी नहीं |संत संगम में चर्चा केवल परमात्मा के सम्बन्ध में ही होती है | संत संगम में व्यक्ति शास्त्रों के अध्ययन में उठी शंकाओं का समाधान कर सकता है |इसीलिए साधना के लिए संत समागम या गुरु मिलन आवश्यक बताया गया है |गुरु और संत व साधू एक ही श्रेणी के होते हैं |ये वही व्यक्ति होते हैं जो आज मनुष्यों की श्रेणी 'सिद्ध' को प्राप्त कर चुके हैं |इनका साधना अनुभव हमारा मार्गदर्शन करता है जिससे साधना पथ से भटक जाने की सम्भावना समाप्त हो जाती है |एक अनुभव प्राप्त व्यक्ति ही रास्ते की सभी प्रकार की बाधाओं से हमे अवगत करा सकता है |संत मिलन के लिए कहा गया है कि-
संत समागम,हरिकथा,जग में दुर्लभ दोय |
सुत, दारा और लक्ष्मी, पापी के भी होय ||
किसी भी गृहस्थ के धर्मपत्नी,पुत्र और सांसारिक वैभव और धन दौलत हो सकते हैं |ये सब पुण्यात्मा या पापी होने का आधार नहीं हो सकते क्योंकि ये सब तो किसी के पास भी हो सकते हैं |यह सब होना कोई दुर्लभ नहीं है |इस संसार में अगर कुछ दुर्लभ है तो दो ही बातें होना है |एक तो संतों से मिलन और दूसरा परमात्मा की चर्चा |
इस प्रकार हमने एक साधक होने की प्रक्रिया को संक्षेप में जाना | कल से हम सिद्ध के बारे में चर्चा प्रारम्भ करेंगे |
क्रमशः
|| हरिः शरणम् ||
No comments:
Post a Comment