सिद्ध-
जब व्यक्ति शम,विचार ,संतोष और संत-संगम को पूर्णतया धारण कर लेता है तब वह साधक से सिद्ध की अवस्था को उपलब्ध हो जाता है । सिद्ध पुरुष के लिए सब कुछ परमात्मा ही होता है,परमात्मा के अतिरिक्त कुछ भी नहीं । वह इस भौतिक संसार में रहते हुए भी परमात्मा में तल्लीन रहता है । सिद्ध व्यक्ति शास्त्र-अध्ययन में भी अपने काम के विषय को ही आत्म साथ करता है ,अन्य कुछ भी नहीं है । नाथ सम्प्रदाय के संस्थापक गोरख का एक दोहा मुझे याद आ रहा है-
गगन मण्डल में गाय बियाई,कागद दही जमाया ।
छाछ छाछ तो पंडिता पिवी,सिद्धां माखण खाया ॥
गोरख कहते हैं कि इस अन्तरिक्ष में परमपिता द्वारा ब्रह्माण्ड निर्माण का संकल्प हुआ जिसके कारण यह ब्रह्माण्ड अस्तित्व में आया है (गाय बियाई) । इस घटना के बाद गाय से मिले दूध (ब्रह्माण्ड का ज्ञान) को ऋषियों ने शास्त्रों में अपने शब्दों में वर्णित किया है (कागद दही जमाया ) । जब इन शास्त्रों का अध्ययन किया गया (दही को मथा गया) तो इसमे से कई प्रकार की कहानियां किस्से (छाछ-छाछ) पढ़ने में आये ,उन सब को कथित प्रवचन कर्ता पंडितों ने पकड़ लिए (छाछ छाछ तो पंडिता पीवी) परन्तु जो सिद्ध है, उन्होंने केवल परमात्मा से सम्बंधित ज्ञान को ही प्राप्त किया (सिद्धां माखन खाया )।
यही सिद्ध पुरुष की विशेषता होती है । शास्त्रों में महत्वपूर्ण है-ज्ञान । ज्ञान को व्यक्ति सरलता और सुगमता से मन लगाकर पढ़ समझकर आत्मसात कर ले, इसके लिए हमारे पूर्वजों ने उनको कथा कहानियों के रूप में लिपिबद्ध किया है । अगर हम केवल कहानी को याद रखेंगे और उसमें निहित भावार्थ पर ध्यान नहीं देंगे तो कुछ भी प्राप्त नहीं कर पाएंगे क्योंकि महत्वपूर्ण कहानी नहीं बल्कि उसमे समाहित ज्ञान है । कहानी तो दही के मंथन उपरांत निकली केवल मात्र छाछ है ,मक्खन तो उस कहानी में समाहित ज्ञान है जो हमें परमात्मा की ओर ले जाता है । आज के कथित धार्मिक प्रवचनकर्ता केवल कथा कहानियां सुनाकर छाछ ही बाँट रहे हैं और दुर्भाग्य तो यह है कि वे इस छाछ को मक्खन बताकर बाँट रहे हैं ।
क्रमशः
॥ हरिः शरणम् ॥
जब व्यक्ति शम,विचार ,संतोष और संत-संगम को पूर्णतया धारण कर लेता है तब वह साधक से सिद्ध की अवस्था को उपलब्ध हो जाता है । सिद्ध पुरुष के लिए सब कुछ परमात्मा ही होता है,परमात्मा के अतिरिक्त कुछ भी नहीं । वह इस भौतिक संसार में रहते हुए भी परमात्मा में तल्लीन रहता है । सिद्ध व्यक्ति शास्त्र-अध्ययन में भी अपने काम के विषय को ही आत्म साथ करता है ,अन्य कुछ भी नहीं है । नाथ सम्प्रदाय के संस्थापक गोरख का एक दोहा मुझे याद आ रहा है-
गगन मण्डल में गाय बियाई,कागद दही जमाया ।
छाछ छाछ तो पंडिता पिवी,सिद्धां माखण खाया ॥
गोरख कहते हैं कि इस अन्तरिक्ष में परमपिता द्वारा ब्रह्माण्ड निर्माण का संकल्प हुआ जिसके कारण यह ब्रह्माण्ड अस्तित्व में आया है (गाय बियाई) । इस घटना के बाद गाय से मिले दूध (ब्रह्माण्ड का ज्ञान) को ऋषियों ने शास्त्रों में अपने शब्दों में वर्णित किया है (कागद दही जमाया ) । जब इन शास्त्रों का अध्ययन किया गया (दही को मथा गया) तो इसमे से कई प्रकार की कहानियां किस्से (छाछ-छाछ) पढ़ने में आये ,उन सब को कथित प्रवचन कर्ता पंडितों ने पकड़ लिए (छाछ छाछ तो पंडिता पीवी) परन्तु जो सिद्ध है, उन्होंने केवल परमात्मा से सम्बंधित ज्ञान को ही प्राप्त किया (सिद्धां माखन खाया )।
यही सिद्ध पुरुष की विशेषता होती है । शास्त्रों में महत्वपूर्ण है-ज्ञान । ज्ञान को व्यक्ति सरलता और सुगमता से मन लगाकर पढ़ समझकर आत्मसात कर ले, इसके लिए हमारे पूर्वजों ने उनको कथा कहानियों के रूप में लिपिबद्ध किया है । अगर हम केवल कहानी को याद रखेंगे और उसमें निहित भावार्थ पर ध्यान नहीं देंगे तो कुछ भी प्राप्त नहीं कर पाएंगे क्योंकि महत्वपूर्ण कहानी नहीं बल्कि उसमे समाहित ज्ञान है । कहानी तो दही के मंथन उपरांत निकली केवल मात्र छाछ है ,मक्खन तो उस कहानी में समाहित ज्ञान है जो हमें परमात्मा की ओर ले जाता है । आज के कथित धार्मिक प्रवचनकर्ता केवल कथा कहानियां सुनाकर छाछ ही बाँट रहे हैं और दुर्भाग्य तो यह है कि वे इस छाछ को मक्खन बताकर बाँट रहे हैं ।
क्रमशः
॥ हरिः शरणम् ॥
No comments:
Post a Comment