Tuesday, August 11, 2015

मानव-श्रेणी |-31

सिद्ध-
         मनुष्यों की चौथी और अत्यंत दुर्लभ श्रेणी के बारे में चर्चा का प्रारम्भ करते हैं । इस श्रेणी के मनुष्य देखने में अतिदुर्लभ हैं । प्रायः मनुष्य साधक श्रेणी की भी प्रारम्भिक अवस्था तक ही पहुंचकर वहीँ पर अटक कर रह जाता है अथवा पुनः विषयी श्रेणी  में लौट जाता है । यही कारण है कि सिद्ध श्रेणी के मनुष्य लुप्तप्रायः हो चुके हैं । साधक का साधना पथ इतना कठिन होता है कि वह किसी भी एक रास्ते पर चलने में भी अपने आप को दुविधा में पाता हैं । सबसे बड़ी दुविधा पैदा होती है,शम और संतोष को धारण करने में । जबकि शम और संतोष की सिद्ध होने में सबसे बड़ी भूमिका होती है । अगर कोई मनुष्य शम और संतोष को धारण नहीं कर सकता तो इसके पीछे महत्त्व है उसके विचारों का , परमात्म विषयक विचारों का । विचार भी बहुधा सांसारिक ही चलते रहते हैं ,परमात्म विषयक विचार तो कभी  कभी विपरीत परिस्थितियों में  ही बनते हैं । संत समागम तो फिर भी हो सकता है परन्तु आज के इस भौतिक युग में संत ,वास्तविकता में संत न होकर प्रायः विषयी ही  होते हैं । संत के आवरण में विषयी मनुष्य ही  छद्म रूप से घूमते रहते हैं,जिन्हें देखकर विषयी पुरुष धोखे से उन्हें सिद्ध पुरुष समझ लेता है । ऐसे कथित संत न तो स्वयं का भला कर सकते हैं और न ही उनका सानिध्य प्राप्त करने वाले अपना भला। यही कारण है कि आजकल साधक भी कम रह गए हैं और सिद्ध तो विलुप्त से ही हो गए हैं ।
                             साधक जब चारों क्षेत्रों-शम,विचार,संतोष और संत-संगम में निरंतर प्रगति  करता है,तब एक दिन वह सिद्ध हो जाता है । उसकी यह सिद्धता  स्वयं के पुरुषार्थ से ही संभव होती है । इस उपलब्धि को प्राप्त करने के लिए पुरुषार्थ के अतिरिक्त कोई अन्य रास्ता नहीं है । प्रतीकात्मक रूप से किये जाने वाले कर्म कांड,पूजा-पाठ और तीर्थांटन का सिद्ध पुरुष बनने में किसी भी प्रकार का योगदान नहीं होता है । ऐसे कार्य केवल  आपको एक साधक बनने के लिए उत्प्रेरक का कार्य कर सकते हैं । अतः ऐसे कर्मकांडों में उलझना मनुष्य को  साधना पथ पर आगे बढ़ने नहीं देगा और मैं तो यहाँ तक कहूँगा कि ये सब साधना पथ में बाधा के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है । साधना पथ पर अग्रसर होने के लिए ऐसे सभी कर्मकांडों को कही पीछे छोड़ देना पड़ता है ।
क्रमशः
                                  ॥ हरिः शरणम् ॥   

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