सिद्ध-
जब सिद्ध अवस्था को मनुष्य उपलब्ध हो जाता है तब उसके परमात्म अवस्था को उपलब्ध होने में कुछ ही क़दमों की दूरी रह जाती है । गीता में भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं-
बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते ।
वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः ॥ गीता 7/19॥
अर्थात् बहुत जन्मों के अंत के जन्म में तत्वज्ञान को प्राप्त पुरुष , सब कुछ वासुदेव ही है- इस प्रकार मुझ को भजता है, वह महात्मा अत्यन्त दुर्लभ है ।
श्री कृष्ण ने यहाँ आकर एक दम से स्पष्ट कर दिया है कि सिद्ध महात्मा पुरुष इस संसार में बहुत ही दुर्लभ है क्योंकि वही एक मात्र ऐसा पुरुष है जो यह जानता कि यहाँ और वहां, सभी ओर जहाँ तक दृष्टि जाती हो या दृष्टि की पहुँच नहीं भी हो,सब कुछ वासुदेव ही है,वह परमब्रह्म ही है । वह सिद्ध उस परमब्रह्म को ही सदैव भजता है । कितना सत्य कहा है-श्री कृष्ण ने ? पहले तो यह स्वीकार करना ही बड़ा दुष्कर है कि सब कुछ वही है और उसके बाद केवल उसे ही भजना तो बहुत ही मुश्किल है । दुष्कर इस लिए कि जब वही सब कुछ है तो फिर आप और मैं क्या हैं ? और जब यह पता चलता है कि आप और मैं भी वही हैं तो यह मुश्किल आ पड़ती है कि फिर हम भजे किसको ?जो व्यक्ति इस दुविधा से बाहर निकल जाता है,वही महात्मा कहलाता है,वही सिद्ध पुरुष हो जाता है । फिर उसको कोई परेशानी नहीं है कि वह किसको माने, किसको भजे ?उसके सामने सब कुछ वही और उसका ही होता है । जब सब कुछ वही और उसका तथा उसके ही कारण है तो फिर किसी अन्य को भजने का प्रश्न ही कहाँ से पैदा होगा ? यह सिद्ध पुरुष की सर्वोच्च अवस्था होती है । इस अवस्था को उपलब्ध हुआ व्यक्ति आवागमन से मुक्त हो जाता है ,उसका फिर जन्म नहीं होता । ऐसे सिद्ध पुरुष जीवन मुक्त पुरुष कहलाते है अर्थात इनकी मुक्ति अपने जीते जी इसी जीवन में हो जाती है ।
क्रमशः
॥ हरिः शरणम् ॥
जब सिद्ध अवस्था को मनुष्य उपलब्ध हो जाता है तब उसके परमात्म अवस्था को उपलब्ध होने में कुछ ही क़दमों की दूरी रह जाती है । गीता में भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं-
बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते ।
वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः ॥ गीता 7/19॥
अर्थात् बहुत जन्मों के अंत के जन्म में तत्वज्ञान को प्राप्त पुरुष , सब कुछ वासुदेव ही है- इस प्रकार मुझ को भजता है, वह महात्मा अत्यन्त दुर्लभ है ।
श्री कृष्ण ने यहाँ आकर एक दम से स्पष्ट कर दिया है कि सिद्ध महात्मा पुरुष इस संसार में बहुत ही दुर्लभ है क्योंकि वही एक मात्र ऐसा पुरुष है जो यह जानता कि यहाँ और वहां, सभी ओर जहाँ तक दृष्टि जाती हो या दृष्टि की पहुँच नहीं भी हो,सब कुछ वासुदेव ही है,वह परमब्रह्म ही है । वह सिद्ध उस परमब्रह्म को ही सदैव भजता है । कितना सत्य कहा है-श्री कृष्ण ने ? पहले तो यह स्वीकार करना ही बड़ा दुष्कर है कि सब कुछ वही है और उसके बाद केवल उसे ही भजना तो बहुत ही मुश्किल है । दुष्कर इस लिए कि जब वही सब कुछ है तो फिर आप और मैं क्या हैं ? और जब यह पता चलता है कि आप और मैं भी वही हैं तो यह मुश्किल आ पड़ती है कि फिर हम भजे किसको ?जो व्यक्ति इस दुविधा से बाहर निकल जाता है,वही महात्मा कहलाता है,वही सिद्ध पुरुष हो जाता है । फिर उसको कोई परेशानी नहीं है कि वह किसको माने, किसको भजे ?उसके सामने सब कुछ वही और उसका ही होता है । जब सब कुछ वही और उसका तथा उसके ही कारण है तो फिर किसी अन्य को भजने का प्रश्न ही कहाँ से पैदा होगा ? यह सिद्ध पुरुष की सर्वोच्च अवस्था होती है । इस अवस्था को उपलब्ध हुआ व्यक्ति आवागमन से मुक्त हो जाता है ,उसका फिर जन्म नहीं होता । ऐसे सिद्ध पुरुष जीवन मुक्त पुरुष कहलाते है अर्थात इनकी मुक्ति अपने जीते जी इसी जीवन में हो जाती है ।
क्रमशः
॥ हरिः शरणम् ॥
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