Saturday, June 27, 2015

मानव-श्रेणी |-19

विषयी-पुरुष (रस)-
                   इन्द्रिय के विकास के क्रम में जब अग्नि में विकार पैदा हुआ तब जल का प्रादुर्भाव हुआ । जल का इस भौतिक मानव तन में प्रतिनिधित्व करने  वाली इन्द्रिय का नाम है-जिव्हा अर्थात जीभ । जीभ से हम किसी भी पदार्थ  का स्वाद ग्रहण करते हैं और स्वाद का विषय है रस । विज्ञान के अनुसार किसी भी पदार्थ को हम जब अपनी जीभ पर रखते है,तब उसका स्वाद कैसा है ,तब तक पता नहीं चलता जब तक उस  पदार्थ का ठोस स्वरूप परिवर्तित होकर एक द्रव का रूप न ले ले ।यही कारण है कि हम जीभ से स्वाद तभी प्राप्त कर सकते हैं जब पदार्थ जल में घुलनशील हो । बिना  जल में घुले किसी भी पदार्थ का स्वाद प्राप्त करना असंभव है । यही कारण है कि जल के  कारण ही स्वादेन्द्रिय का प्रकट होना संभव हुआ है । मनुष्य को छोड़कर इस संसार में जितने भी प्राणी ठोस पदार्थ को भोजन के रूप में लेते हैं ,उनको ऐसे भोजन को निगलना ही पड़ता है । उनमे जीभ होते हुए भी वे भोजन के स्वाद से पूर्णतया वंचित रहते हैं । जब वे भोजन को निगलते हैं तो उनकी स्वाद के प्रति किसी भी प्रकार की आसक्ति भी पैदा नहीं होती  । उनका इस प्रकार भोजन को लेना मात्र एक उदरपूर्ति है ।
                          परन्तु मनुष्य के साथ ऐसा नहीं है । उसको अपने भोजन को चबाते हुए अपनी लार जिसमें  जल ही  होता है,में भोजन को घुलना पड़ता है । ऐसे में उसका भोजन ठोस से द्रव अवस्था प्राप्त कर लेता है । जीभ की संरचना में स्वाद कलिकाएँ होती है,जो इस द्रवित भोजन के रस से संकेत  बनाकर मस्तिष्क को भेजती है,जहाँ पर हमारी बुद्धि उस भोजन के स्वाद का अनुभव करती है । जब हमारी आत्मा इस स्वाद को ग्रहण करती है तब वह या तो उसे स्वीकार्य होता है या फिर अस्वीकार्य । स्वीकार स्वाद को बुद्धि और मन के माध्यम से आत्मा बार बार प्राप्त करना चाहती है और अस्वीकार स्वाद से दूर रहना चाहती है । स्वाद की यह स्वीकार्यता अथवा अस्वीकार्यता ही उस रस विषय के प्रति आसक्ति है । आसक्त होने का अर्थ है -प्रकृति जनित स्वाद के इस गुण का अपने अनुसार विश्लेषण करना । मैं पहले ही कई बार स्पष्ट कर चूका हूँ कि इस संसार में कुछ भी असत्य नहीं है, यहाँ सब कुछ सत्य है । परमात्मा  की कोई भी रचना आखिर असत्य हो भी कैसे सकती है ?इसी प्रकार स्वाद  सत्य है परन्तु इसके विषय में आसक्ति और स्वाद के प्रति वासना पैदा होना असत्य है ,ऐसी परिस्थिति में यह स्वादेंद्रिय,उससे अनुभव होनेवाला स्वाद तथा  इसका विषय सब असत की  श्रेणी में आ जाते हैं । अतः इस स्वादेंद्रिय से स्वाद का आनंद अवश्य लें  परन्तु इसमें आसक्तिभाव त्याग दें ।
क्रमशः
                                        ॥ हरिः शरणम् ॥  

No comments:

Post a Comment