Sunday, May 10, 2015

मानव-श्रेणी |-11

विषयी-पुरुष-
                    कान  इन्द्रिय का कार्य है,सुनना |इसका विषय है-शब्द| शब्द जब आपके कानों में पड़ते हैं,तब कुछ शब्द आपको अच्छे लगते हैं और कुछ बुरे |कुछ शब्द ऐसे भी होते हैं,जो आपको न  तो अच्छे लगते हैं और न ही बुरे | अच्छे शब्दों को सुनकर आप प्रसन्न होते हैं,जबकि बुरे शब्दों को सुनकर आपको क्रोध आता है |जिन शब्दों को सुनकर आपको न तो ख़ुशी मिलती है और न ही क्रोध आता है,ऐसे शब्दों का आप या आप से सम्बंधित किसी अन्य का भी कोई मतलब नहीं होता है | ऐसे शब्दों को सुनकर आप न तो हर्षित होते हैं और न ही व्यथित |इस अवस्था को उदासीन अवस्था कहते हैं | तीनों ही अवस्थाएं,शब्दों को सुनने के उपरांत पैदा हुई है | इन शब्दों  को सुनकर आपकी जो जो अवस्था बनती है,उसी से  साबित होता है कि आप विषयी हैं |
                                    विषयी होने का अर्थ है,सम्बंधित  विषय के प्रति आसक्त होना |शब्दों पर ध्यान न देना भी विषयी नहीं होना, नहीं है | शब्दों को ध्यान लगाकर सुनना और फिर उन शब्दों से प्रभावित हुए बिना रह जाना ही विषयी न होने की पहचान है |विषयासक्त न होना, तभी संभव हो पाता है,जब आप इन्द्रियों और  उनके विषयों के प्रति सम्पूर्ण ज्ञान रखते हो | उच्चारित शब्द आपके कानों तक हर परिस्थिति में पहुंचेंगे ही | वे शब्द कान में पड़ते ही उनको सुनना भी होगा |इन दोनों को ही  रोक पाना आपकी पहुँच से बाहर है |आपके वश में है तो केवल मात्र यही कि  उन शब्दों को सुनकर भी आप उद्वेलित न हो,प्रसन्न न हो और न ही उदासीन रहे |
क्रमशः
                                     || हरिः शरणम् ||
                        

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