विषयी-पुरुष -(स्पर्श)
सर्दी में हमें ठण्ड लगती है और इस ठण्ड से हम दुखका अनुभव करते हैं |इसी प्रकार गर्मी में हमें बढता हुआ ताप प्रभावित करता है और हम इस गर्मी से परेशान हो उठते हैं |सर्दी में हमें गर्म पानी से नहाना अच्छा लगता है जबकि यही पानी हमें गर्मी में मिले तो हम दुखी हो जाते हैं |भगवान श्री कृष्ण गीता में कहते हैं कि इस स्पर्श के प्रति आसक्ति को कम करने के लिए व्यक्ति को सर्दी और गर्मी को सहने की आदत डालनी चाहिए |यह एक तरीका है जिससे इस इन्द्रिय को नियंत्रण में रखा जा सकता है |बौध भिक्षु इस इन्द्रिय को नियंत्रण में रखने के लिए एक प्रकार का ध्यान-योग भी उपयोग में लेते है |इस योग में किसी बर्फीले और अत्यधिक ठन्डे स्थान पर बैठ कर वे अत्यधिक गर्म स्थान पर बैठे होने का ध्यान करते हैं |इस ध्यान में उतरने के बाद धीरे धीरे उन्हें सर्दी का अहसास कम होता जाता है | इस ध्यान की उच्चत्तम अवस्था में तो भिक्षु के अत्यधिक ठन्डे स्थान पर भी पसीना तक आने लगता है |इसी प्रकार की साधना किसी अत्यधिक गर्म स्थान पर बैठ कर बहुत ही ठन्डे स्थान की कल्पना करते हुए भी की जा सकती है |
इसी प्रकार किसी कील या कांटे के शरीर में चुभने पर पैदा होने वाले दर्द का अनुभव कम किया जा सकता है |मैंने ऐसे एक साधू की शल्य चिकित्सा होते देखी है,जिसने अपने ऊपर किसी भी प्रकार की निश्चेतन करने की विधि को प्रयोग में लाने से स्पष्ट इंकार कर दिया था |बिना निश्चेतन के उस महात्मा ने अपनी मध्यम दर्जे की शल्य चिकित्स करवाई और पूरी शल्य चिकित्सा के दौरान उनके मुंह से जरा सी भी आह तक नहीं निकली |इसको कहते हैं -स्पर्श से अनासक्त होना |
क्रमशः
|| हरिः शरणम् ||
सर्दी में हमें ठण्ड लगती है और इस ठण्ड से हम दुखका अनुभव करते हैं |इसी प्रकार गर्मी में हमें बढता हुआ ताप प्रभावित करता है और हम इस गर्मी से परेशान हो उठते हैं |सर्दी में हमें गर्म पानी से नहाना अच्छा लगता है जबकि यही पानी हमें गर्मी में मिले तो हम दुखी हो जाते हैं |भगवान श्री कृष्ण गीता में कहते हैं कि इस स्पर्श के प्रति आसक्ति को कम करने के लिए व्यक्ति को सर्दी और गर्मी को सहने की आदत डालनी चाहिए |यह एक तरीका है जिससे इस इन्द्रिय को नियंत्रण में रखा जा सकता है |बौध भिक्षु इस इन्द्रिय को नियंत्रण में रखने के लिए एक प्रकार का ध्यान-योग भी उपयोग में लेते है |इस योग में किसी बर्फीले और अत्यधिक ठन्डे स्थान पर बैठ कर वे अत्यधिक गर्म स्थान पर बैठे होने का ध्यान करते हैं |इस ध्यान में उतरने के बाद धीरे धीरे उन्हें सर्दी का अहसास कम होता जाता है | इस ध्यान की उच्चत्तम अवस्था में तो भिक्षु के अत्यधिक ठन्डे स्थान पर भी पसीना तक आने लगता है |इसी प्रकार की साधना किसी अत्यधिक गर्म स्थान पर बैठ कर बहुत ही ठन्डे स्थान की कल्पना करते हुए भी की जा सकती है |
इसी प्रकार किसी कील या कांटे के शरीर में चुभने पर पैदा होने वाले दर्द का अनुभव कम किया जा सकता है |मैंने ऐसे एक साधू की शल्य चिकित्सा होते देखी है,जिसने अपने ऊपर किसी भी प्रकार की निश्चेतन करने की विधि को प्रयोग में लाने से स्पष्ट इंकार कर दिया था |बिना निश्चेतन के उस महात्मा ने अपनी मध्यम दर्जे की शल्य चिकित्स करवाई और पूरी शल्य चिकित्सा के दौरान उनके मुंह से जरा सी भी आह तक नहीं निकली |इसको कहते हैं -स्पर्श से अनासक्त होना |
क्रमशः
|| हरिः शरणम् ||
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