विषयी-पुरुष -
त्वचा-
मनुष्य की इस ज्ञानेन्द्रिय का विषय है-स्पर्श |त्वचा, सभी इन्द्रियों में इस भौतिक शरीर में विशालतम इन्द्रिय है |इस से प्राणी का सारा शरीर ढका हुआ रहता है |इसको स्पर्श करने से ही प्राणी को सुख या दुःख का अनुभव होता है |शेष सभी चारों इन्द्रियों को आप अपने विवेकानुसार उपयोग में ले सकते हैं परन्तु इस इन्द्रिय को नियंत्रण में रखना बड़ा ही मुश्किल है |स्पर्श तो कभी भी और कहीं पर भी मिल सकता है |इस स्पर्श से व्यक्ति प्रभवित हुए बिना नहीं रह सकता |
स्पर्श से हमें ठन्डे-गर्म का भान होता है |इसी कारण से हमें सर्दी-और गर्मी का अहसास होता है |दर्द का अनुभव भी इसी इन्द्रिय के माध्यम से होता है |स्पर्श से ही यौन और कामेच्छा पैदा होती है और सुख अथवा दुःख मिलता है |अतः कहा जा सकता है कि इस इन्द्रिय से जितना व्यक्ति प्रभावित हो सकता है,उतना अन्य किसी इन्द्रिय से नहीं | स्पर्श विषय में आसक्ति होना ही सबसे अधिक घातक माना गया है |हालाँकि सभी इन्द्रियां आपस में एक प्रकार का तालमेल बनाकर ही कार्य सम्पादित करती है,परन्तु त्वचा इन्द्रिय द्वारा ही व्यक्ति को सबसे अधिक सुख और दुःख की अनुभूति होती है |अतः इस इन्द्रिय को नियंत्रण में कर के उसे जीतनेवाला ही वास्तव में जितेंद्रिय कहलाने का अधिकारी होता है |
हालाँकि व्यक्ति के शरीर में काम का प्रवेश आँखों के माध्यम से होता है और नाक तथा कान इस काम की भावना को बढाने में सहायक होते है परन्तु इस काम का सुख अथवा दुःख त्वचा ही प्रदान कर सकती है | इसीलिए इस इन्द्रिय के विषय स्पर्श के प्रति आसक्त रहने की सम्भावना सबसे अधिक होती है |
क्रमशः
|| हरिः शरणम् ||
त्वचा-
मनुष्य की इस ज्ञानेन्द्रिय का विषय है-स्पर्श |त्वचा, सभी इन्द्रियों में इस भौतिक शरीर में विशालतम इन्द्रिय है |इस से प्राणी का सारा शरीर ढका हुआ रहता है |इसको स्पर्श करने से ही प्राणी को सुख या दुःख का अनुभव होता है |शेष सभी चारों इन्द्रियों को आप अपने विवेकानुसार उपयोग में ले सकते हैं परन्तु इस इन्द्रिय को नियंत्रण में रखना बड़ा ही मुश्किल है |स्पर्श तो कभी भी और कहीं पर भी मिल सकता है |इस स्पर्श से व्यक्ति प्रभवित हुए बिना नहीं रह सकता |
स्पर्श से हमें ठन्डे-गर्म का भान होता है |इसी कारण से हमें सर्दी-और गर्मी का अहसास होता है |दर्द का अनुभव भी इसी इन्द्रिय के माध्यम से होता है |स्पर्श से ही यौन और कामेच्छा पैदा होती है और सुख अथवा दुःख मिलता है |अतः कहा जा सकता है कि इस इन्द्रिय से जितना व्यक्ति प्रभावित हो सकता है,उतना अन्य किसी इन्द्रिय से नहीं | स्पर्श विषय में आसक्ति होना ही सबसे अधिक घातक माना गया है |हालाँकि सभी इन्द्रियां आपस में एक प्रकार का तालमेल बनाकर ही कार्य सम्पादित करती है,परन्तु त्वचा इन्द्रिय द्वारा ही व्यक्ति को सबसे अधिक सुख और दुःख की अनुभूति होती है |अतः इस इन्द्रिय को नियंत्रण में कर के उसे जीतनेवाला ही वास्तव में जितेंद्रिय कहलाने का अधिकारी होता है |
हालाँकि व्यक्ति के शरीर में काम का प्रवेश आँखों के माध्यम से होता है और नाक तथा कान इस काम की भावना को बढाने में सहायक होते है परन्तु इस काम का सुख अथवा दुःख त्वचा ही प्रदान कर सकती है | इसीलिए इस इन्द्रिय के विषय स्पर्श के प्रति आसक्त रहने की सम्भावना सबसे अधिक होती है |
क्रमशः
|| हरिः शरणम् ||
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