विषयी-पुरुष-
इन्द्रियों के विषयों के प्रति आसक्ति रखना ही विषयी पुरुष का प्रमुख लक्षण है |कान एक ऐसी इन्द्रिय है जिसके माध्यम से व्यक्ति शब्दों का श्रवन करता है |यह इन्द्रिय पांचो इन्द्रियों में एक मुख्य इन्द्रिय है |यह इन्द्रिय जीवन में सबसे पहले सक्रिय होती है और प्रायः जीवन के अंत तक सक्रिय बनी रहती है |जिस शिशु में इस इन्द्रिय का विकास नहीं होता उसकी शेष बची चार इन्द्रियों का विकास भी प्रभावित होता है |
श्रवनेंद्रिय-
इस इन्द्रिय का विषय है-शब्द |यह पांच भौतिक तत्वों में से, एक आकाश का प्रतिनिधित्व करती है |सुनना इस इन्द्रिय का प्रमुख कार्य है |यह इन्द्रिय जिस शिशु में विकसित नहीं होती,उसका जीवन में शब्दों को सुनना तथा साथ ही साथ उनका उच्चारण करना संभव नहीं हो पाता |व्यक्ति अपनी इस इन्द्रिय के माध्यम से शाव्ब्दों का श्रवण कर उनकी स्मृति बना लेता है,फिर उस स्मृति के आधार पर उसकी एक कर्मेन्द्रिय जिव्हा ,उन शब्दों को उच्चारित करती है |
शब्दों को सुनना भी महत्वपूर्ण है |व्यक्ति को परमात्मा का नाम सुनने में रुचि काम और किसी अन्य व्यक्ति की आलोचना सुनना ज्यादा पसंद होता है |व्यक्ति धार्मिक आयोजनों में भक्ति-संगीत सुनने से ज्यादा रुचि किसी पार्टी में बज रहे कामुक और फ़िल्मी गानों को सुनना ज्यादा पसंद करता है | शास्त्रीय संगीत की बजाय उसे तडक भड़क वाले ,शोर पैदा करने वाले वाद्य यंत्रों का संगीत सुनने में ज्यादा रस मिलता है |यह उस व्यक्ति की इस इन्द्रिय के विषय के प्रति आसक्ति होना प्रदर्शित करता है |विषयी व्यक्ति अपना सबकुछ कार्य छोड़ कर इस विषय के प्रति आसक्त होकर वैसे शब्दों को सुनना अधिक पसंद करता है ,जो शास्त्रोक्त तो है ही नहीं बल्कि उसे अपनी स्थिति से गिराने वाला भी है |अतः इस इन्द्रिय पर नियंत्रण रखना उसके भविष्य निर्माण के लिए आवश्यक है |
क्रमशः
|| हरिः शरणम् ||
इन्द्रियों के विषयों के प्रति आसक्ति रखना ही विषयी पुरुष का प्रमुख लक्षण है |कान एक ऐसी इन्द्रिय है जिसके माध्यम से व्यक्ति शब्दों का श्रवन करता है |यह इन्द्रिय पांचो इन्द्रियों में एक मुख्य इन्द्रिय है |यह इन्द्रिय जीवन में सबसे पहले सक्रिय होती है और प्रायः जीवन के अंत तक सक्रिय बनी रहती है |जिस शिशु में इस इन्द्रिय का विकास नहीं होता उसकी शेष बची चार इन्द्रियों का विकास भी प्रभावित होता है |
श्रवनेंद्रिय-
इस इन्द्रिय का विषय है-शब्द |यह पांच भौतिक तत्वों में से, एक आकाश का प्रतिनिधित्व करती है |सुनना इस इन्द्रिय का प्रमुख कार्य है |यह इन्द्रिय जिस शिशु में विकसित नहीं होती,उसका जीवन में शब्दों को सुनना तथा साथ ही साथ उनका उच्चारण करना संभव नहीं हो पाता |व्यक्ति अपनी इस इन्द्रिय के माध्यम से शाव्ब्दों का श्रवण कर उनकी स्मृति बना लेता है,फिर उस स्मृति के आधार पर उसकी एक कर्मेन्द्रिय जिव्हा ,उन शब्दों को उच्चारित करती है |
शब्दों को सुनना भी महत्वपूर्ण है |व्यक्ति को परमात्मा का नाम सुनने में रुचि काम और किसी अन्य व्यक्ति की आलोचना सुनना ज्यादा पसंद होता है |व्यक्ति धार्मिक आयोजनों में भक्ति-संगीत सुनने से ज्यादा रुचि किसी पार्टी में बज रहे कामुक और फ़िल्मी गानों को सुनना ज्यादा पसंद करता है | शास्त्रीय संगीत की बजाय उसे तडक भड़क वाले ,शोर पैदा करने वाले वाद्य यंत्रों का संगीत सुनने में ज्यादा रस मिलता है |यह उस व्यक्ति की इस इन्द्रिय के विषय के प्रति आसक्ति होना प्रदर्शित करता है |विषयी व्यक्ति अपना सबकुछ कार्य छोड़ कर इस विषय के प्रति आसक्त होकर वैसे शब्दों को सुनना अधिक पसंद करता है ,जो शास्त्रोक्त तो है ही नहीं बल्कि उसे अपनी स्थिति से गिराने वाला भी है |अतः इस इन्द्रिय पर नियंत्रण रखना उसके भविष्य निर्माण के लिए आवश्यक है |
क्रमशः
|| हरिः शरणम् ||
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