विषयी-पुरुष (लगातार)--
विषयी और पामर पुरुष,दोनों ही अपने अपने स्वार्थ पूर्ति में लगे रहते है |दोनों का उद्देश्य भी एक ही होता है- जैसे भी हो अपना स्वार्थ पूरा करना |पामर-पुरुष अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए किसी भी सीमा का अतिक्रमण कर सकता है जबकि विषयी व्यक्ति अपनी सीमा का काफी हद तक ख्याल रखता है |पामर-पुरुष संसार के अन्य प्राणियों को दुःख देने में अपना सुख समझता है जबकि विषयी व्यक्ति किसी अन्य प्राणी को तब तक दुःख नहीं पहुंचाता है,जब तक कि वह उसकी स्वार्थ पूर्ति में बाधक न बनता हो |बाधक बनने पर वह भी किसी भी प्राणी को नुकसान पहुंचा सकता है |यूँ तो इन दोनों ही श्रेणियों के व्यक्तियों को आप आसानी से पहचान सकते हैं,फिर भी दोनों में कुछ मूलभूत जो अंतर होते हैं ,उन्हें संक्षेप में स्पष्ट किया गया है |बिना किसी विचार और कामना के पामर व्यक्ति कर्म करता रहता है जबकि विषयी व्यक्ति किसी न किसी कामना के वशीभूत होकर ही कर्म करता है |
विषयी व्यक्ति में कामनाएं कहाँ से पैदा होती है ? कामनाओं का श्रोत है -इन्द्रियों के विषय |पांच ज्ञानेन्द्रियाँ होती है-त्वचा,आँख,नाक,कान और जीभ |इन पांच इन्द्रियों के विषय होते हैं-स्पर्श,रूप ,गंध,शब्द और रस |इन पांचों विषयों के भोग से ही कामनाओं का जन्म होता है |इन विषयों से सम्बंधित पाँच इन्द्रियां ही व्यक्ति को सम्बंधित विषयों के भोग उपलब्ध करवाती है |इन्द्रियां सीधे ही यह भोग व्यक्ति को उपलब्ध नहीं करवा सकती बल्कि पांच कर्मेन्द्रियों के द्वारा ही भोग उपलब्ध करवाना संभव होता है | पाँचों कर्मेन्द्रियों द्वारा किये जाने वाले कार्यों को ही कर्म कहा जाता है |जिस विषय को भोगने में व्यक्ति को सुख की अनुभूति होती है ,उस विषय को पुनः भोगने की इच्छा पैदा होती है |इस इच्छा को ही कामना कहा जाता है |
क्रमशः
|| हरिः शरणम् ||
विषयी और पामर पुरुष,दोनों ही अपने अपने स्वार्थ पूर्ति में लगे रहते है |दोनों का उद्देश्य भी एक ही होता है- जैसे भी हो अपना स्वार्थ पूरा करना |पामर-पुरुष अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए किसी भी सीमा का अतिक्रमण कर सकता है जबकि विषयी व्यक्ति अपनी सीमा का काफी हद तक ख्याल रखता है |पामर-पुरुष संसार के अन्य प्राणियों को दुःख देने में अपना सुख समझता है जबकि विषयी व्यक्ति किसी अन्य प्राणी को तब तक दुःख नहीं पहुंचाता है,जब तक कि वह उसकी स्वार्थ पूर्ति में बाधक न बनता हो |बाधक बनने पर वह भी किसी भी प्राणी को नुकसान पहुंचा सकता है |यूँ तो इन दोनों ही श्रेणियों के व्यक्तियों को आप आसानी से पहचान सकते हैं,फिर भी दोनों में कुछ मूलभूत जो अंतर होते हैं ,उन्हें संक्षेप में स्पष्ट किया गया है |बिना किसी विचार और कामना के पामर व्यक्ति कर्म करता रहता है जबकि विषयी व्यक्ति किसी न किसी कामना के वशीभूत होकर ही कर्म करता है |
विषयी व्यक्ति में कामनाएं कहाँ से पैदा होती है ? कामनाओं का श्रोत है -इन्द्रियों के विषय |पांच ज्ञानेन्द्रियाँ होती है-त्वचा,आँख,नाक,कान और जीभ |इन पांच इन्द्रियों के विषय होते हैं-स्पर्श,रूप ,गंध,शब्द और रस |इन पांचों विषयों के भोग से ही कामनाओं का जन्म होता है |इन विषयों से सम्बंधित पाँच इन्द्रियां ही व्यक्ति को सम्बंधित विषयों के भोग उपलब्ध करवाती है |इन्द्रियां सीधे ही यह भोग व्यक्ति को उपलब्ध नहीं करवा सकती बल्कि पांच कर्मेन्द्रियों के द्वारा ही भोग उपलब्ध करवाना संभव होता है | पाँचों कर्मेन्द्रियों द्वारा किये जाने वाले कार्यों को ही कर्म कहा जाता है |जिस विषय को भोगने में व्यक्ति को सुख की अनुभूति होती है ,उस विषय को पुनः भोगने की इच्छा पैदा होती है |इस इच्छा को ही कामना कहा जाता है |
क्रमशः
|| हरिः शरणम् ||
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