Saturday, April 11, 2015

मानव-श्रेणी |-6

पामर-पुरुष -(लगातार)
                  राम और रावण के कृत्यों को भूतकाल के परिपेक्ष्य में विश्लेषित करने पर ही अनुभव होता है कि रावण का कृत्य अनुचित था । परन्तु पामर श्रेणी के मनुष्यों को इससे कोई मतलब नहीं होता कि इन व्यक्तियों के पूर्व-कर्म क्या कहते हैं?उन्हें तो अपनी सुविधा के अनुसार किसी भी घटना का विश्लेषण करना होता है । उसी सुविधा को दृष्टिगत वे अनुचित या उचित का निर्णय करते हैं । इसमे वे  न तो किसी शास्त्र का  सहारा लेते हैं और न ही किसी नियम और कानून का । उनके लिए तो अपना व्यक्तिगत स्वार्थ ही सर्वोपरि होता है ।
                 अपने स्वार्थ के वशीभूत होना पामर श्रेणी के पुरुष का प्रथम लक्षण है । दूसरा लक्षण है -पर-उत्पीड़न । पामर श्रेणी के मनुष्य दूसरे को पीड़ित कर आनंद  का अनुभव करते हैं ।दूसरे व्यक्ति अपना जीवन आराम से न बिता सके,यही उनका एक मात्र उद्देश्य होता है । उसे अपने जीवन की कतई चिंता नहीं होती परन्तु वे किसी भी अन्य व्यक्ति को सुखी नहीं देख सकते । पडौसी का सुख भी उन्हें दुखी कर देता है  । राह चलते मनुष्य  को भी परेशान करना उसकी आदत बन जाता है ।ऐसे पामर मनुष्य न तो इस लोक में आराम से रह सकते हैं और न ही अन्य लोकों में ।
                 तीसरा लक्षण पामर-श्रेणी के  मनुष्यों का है-अकारण क्रोध । इस श्रेणी के व्यक्ति किसी भी व्यक्ति या जीव पर छोटी छोटी बातों को लेकर बहुत ही क्रोधित  हो जाते हैं और अनेकों बार  तो बिना किसी कारण के भी वे क्रोधित होकर उबल पड़ते हैं । पामर-श्रेणी के मनुष्यों से की गई मित्रता इसी कारण से घातक कही गई है ।  न जाने वे कब आपसे खुश होकर प्रशंसा करने लगे और कब आप पाकर क्रोधित हो जाये । अतः ऐसे मनुष्यों से न तो मित्रता अच्छी है और न ही शत्रुता । इनको तो दूर से ही प्रणाम करना अच्छा है ।
क्रमशः
                                        ॥ हरिः शरणम् ॥  

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