विषयी-पुरुष-
इस संसार में अधिकतम आबादी विषयी व्यक्तियों की है |इस श्रेणी के व्यक्ति सदैव ही स्वार्थ में रत रहते हैं |हालाँकि कभी कभी ऐसे व्यक्ति भी नियमों और शास्त्रों का उल्लंघन कर जाते हैं परन्तु तुरंत ही इसका परिमार्जन करने का विचार भी कर लेते हैं |हालाँकि किये गए कर्म ,चाहे वे नियमानुसार हो अथवा नियम विरुद्ध,सबका कर्म-फल तो भावी जीवन में मिलना तय है |कर्म और कर्म-फल कभी भी नष्ट नहीं होते हैं ,चाहे इन कर्मों का फल भोगने के लिए कितने ही जन्म लेने पड़े |नियम विरुद्ध तो कर्म पामर व्यक्ति भी करते हैं और विषयी भी |परन्तु दोनों में बहुत ही बड़ा मूलभूत अंतर होता है |पामर श्रेणी के व्यक्तियों द्वारा किये गए शास्त्र और नियम विरुद्ध कर्मों को वे शास्त्रोक्त और नियम के अनुसार किये गए मानते हैं जबकि विषयी व्यक्ति ऐसे कर्मों को करने के समय ही यह जनते भी है कि किये जा रहे कर्म शास्त्र और नियम विरुद्ध ही है |पामर-व्यक्ति इन कर्मों को अनवरत चालू रखता है जबकि विषयी व्यक्ति ऐसे कर्म यदा कदा ही करता है | पामर व्यक्ति शास्त्र विरुद्ध कर्म जानबूझकर और शास्त्र सम्मत मानते हुए करता है जबकि एक विषयी पुरुष ऐसे कर्मों को यह जानते हुए भी कि ये कर्म शास्त्र विरुद्ध है फिर भी अपनी कामनाओं की पूर्ति के लिए , अपनी कामनाओं के वशीभूत होकर करने को विवश होता है |
पामर-व्यक्ति कभी भी विषयी की तरह व्यवहार नहीं कर सकता क्योंकि वह सदैव ही क्रोध से उबलता रहता है,जबकि विषयी व्यक्ति को क्रोध कभी कभी और प्रायः दिखावे के तौर पर आता है |विषयी व्यक्ति को क्रोध प्रायः अपनी कामनाओं की पूर्ति न हो पाने के कारण आता है ,शेष परिस्थितियों में वह केवल अपनी कामनाओं की पूर्ति करने हेतु कर्म करने में ही लगा रहता है |जबकि पामर मनुष्य का क्रोध करते रहना एक स्वभाव बन जाता है |
क्रमशः
|| हरिः शरणम् ||
इस संसार में अधिकतम आबादी विषयी व्यक्तियों की है |इस श्रेणी के व्यक्ति सदैव ही स्वार्थ में रत रहते हैं |हालाँकि कभी कभी ऐसे व्यक्ति भी नियमों और शास्त्रों का उल्लंघन कर जाते हैं परन्तु तुरंत ही इसका परिमार्जन करने का विचार भी कर लेते हैं |हालाँकि किये गए कर्म ,चाहे वे नियमानुसार हो अथवा नियम विरुद्ध,सबका कर्म-फल तो भावी जीवन में मिलना तय है |कर्म और कर्म-फल कभी भी नष्ट नहीं होते हैं ,चाहे इन कर्मों का फल भोगने के लिए कितने ही जन्म लेने पड़े |नियम विरुद्ध तो कर्म पामर व्यक्ति भी करते हैं और विषयी भी |परन्तु दोनों में बहुत ही बड़ा मूलभूत अंतर होता है |पामर श्रेणी के व्यक्तियों द्वारा किये गए शास्त्र और नियम विरुद्ध कर्मों को वे शास्त्रोक्त और नियम के अनुसार किये गए मानते हैं जबकि विषयी व्यक्ति ऐसे कर्मों को करने के समय ही यह जनते भी है कि किये जा रहे कर्म शास्त्र और नियम विरुद्ध ही है |पामर-व्यक्ति इन कर्मों को अनवरत चालू रखता है जबकि विषयी व्यक्ति ऐसे कर्म यदा कदा ही करता है | पामर व्यक्ति शास्त्र विरुद्ध कर्म जानबूझकर और शास्त्र सम्मत मानते हुए करता है जबकि एक विषयी पुरुष ऐसे कर्मों को यह जानते हुए भी कि ये कर्म शास्त्र विरुद्ध है फिर भी अपनी कामनाओं की पूर्ति के लिए , अपनी कामनाओं के वशीभूत होकर करने को विवश होता है |
पामर-व्यक्ति कभी भी विषयी की तरह व्यवहार नहीं कर सकता क्योंकि वह सदैव ही क्रोध से उबलता रहता है,जबकि विषयी व्यक्ति को क्रोध कभी कभी और प्रायः दिखावे के तौर पर आता है |विषयी व्यक्ति को क्रोध प्रायः अपनी कामनाओं की पूर्ति न हो पाने के कारण आता है ,शेष परिस्थितियों में वह केवल अपनी कामनाओं की पूर्ति करने हेतु कर्म करने में ही लगा रहता है |जबकि पामर मनुष्य का क्रोध करते रहना एक स्वभाव बन जाता है |
क्रमशः
|| हरिः शरणम् ||
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