Thursday, April 2, 2015

माँ - परमात्मा का एक व्यक्त रूप ।

मेरी  माँ, मेरा भगवान ।वक्त से  अव्यक्त हो गई है ।मेरी माँ  मेरे लिए परमात्मा का एक  व्यक्त  रूप थी।आज  उसके  अव्यक्त  हो जाने पर भी  मैं  जानता हूँ कि  वह  मेरे पास  ही है ।परमात्मा  अपने  बच्चों  से  कभी  भी  दूर हो  नहीं सकता ।भला,  माँ की  कमी  कौन  पूरी  कर सकता है? वक्त से अव्यक्त हो  जाना  और फिर से व्यक्त  हो जाना  उसी  परमात्मा का एक  खेल है ।अतः मैं  अपनी मां के  जाने का  शोक बिल्कुल भी नहीं  करूंगा  क्योंकि  मेरी  माँ ने  मुझे  जीवन में इसी तरह  की  शिक्षा दी  थीं ।
         परमात्मा  मेरी माँ को अपने चरणों में स्थान प्रदान करे ।
                ।।   हरि: शरणम् ।।

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