Sunday, April 5, 2015

मानव-श्रेणी |-4

                            जिस प्रकार अंगुलिमाल का ह्रदय परिवर्तित हुआ उसी तरह ही एक अति क्रूर डाकू का ह्रदय भी परिवर्तित हुआ,जो सिद्ध होकर महर्षि वाल्मीकि के नाम से विख्यात  हुए । वाल्मीकि को भी,जब वे डाकू थे एक सरल ह्रदय गुरु मिले थे जिन्होंने उसे नाम-जप  का गुरुमंत्र दिया था । डाकू ने कहा  कि वह एक पामर श्रेणी का मनुष्य है और बहुत चाहते हुए भी "राम" शब्द का उच्चारण करते हुए परमात्मा का  स्मरण  नहीं कर सकता । तब उनके  गुरु ने कहा कि तू अपने मुख से राम शब्द का ही तो उच्चारण नहीं कर सकता न ,उसके स्थान पर तूं " मरा-मरा" शब्द का उच्चारण कर। डाकू द्वारा मरा-मरा का उच्चारण किया गया  जो सतत उच्चारण से राम-राम उच्चारित होने लगा । वाल्मीकि के इसी सन्दर्भ को गोस्वामी तुलसीदासजी ने रामचरित मानस  में बड़े ही  सुन्दर रूप में प्रस्तुत किया है । वे लिखते हैं-
                               "उलटा  नाम जपत जेहि जाना ।  बाल्मीकि  भये ब्रह्म समाना ॥ "
                      मैंने यह दो उदाहरण पामर श्रेणी में अवस्थित दो व्यक्तियों के इसलिए दिए हैं कि जब निम्नतम श्रेणी के मनुष्य भी सिद्ध पुरुष में स्वयं को परिवर्तित कर सकते हैं तो फिर विषयी श्रेणी के व्यक्ति क्यों नहीं ? इस संसार  में सब कुछ होना संभव है । आवश्यकता है आपकी लगन की । जब तक मनुष्य में स्वयं को परिवर्तित करने की चाह नहीं होगी ,तब तक उसका परिमार्जन संभव नहीं है । इस संसार में सर्वाधिक संख्या विषयी श्रेणी के मनुष्यों की  है । वे इस संसार में ही इतने मगन है कि उन्हें अपनी श्रेणी में बने रहना ही सर्वश्रेष्ठ लगने लगा  है । कल की ही बात है,मेरे एक मित्र ने पूछा कि जो आप ऐसी बातें सब को बता रहे हैं  और लिख भी रहे है,जो सब लोग जानते है । आज के समय सब ज्ञानी है  ,फिर आप अपनी उर्जा ऐसे लेखन में क्यों व्यय कर रहे हैं? मैंने  कहा कि सब जानते हैं,यह मैं भी जानता हूँ । परन्तु इस`संसार को हम विषयी लोग एक लाठी के रूप में पकड़ कर खड़े  है,एक सहारे के रूप में । मैं जान चूका हूँ कि संसार का आश्रय लेना ऐसे ही है जैसे लाठी के स्थान पर सांप  को पकड़ लेना और उसे अपना सहारा समझ लेना । जब मुझे यह संसार लाठी के स्थान पर सांप नज़र आने लगा है तो मेरा  कर्तव्य बनता है कि मैं सबको यह बात समझाऊं । अगर लोग फिर भी नहीं सुनते तो इसके लिए  मैं उत्तरदाई नहीं हूँ । मैं तो मात्र अपना कर्तव्य निभा रहा हूँ ।मेरे द्वारा समझाने के बाद भी कोई व्यक्ति अगर विषयी की श्रेणी में  ही बना रहना चाहता हैं तो फिर उसके लिए केवल परमात्मा से ही प्रार्थना की जा सकती है ।
                 खैर,यह सब तो चलता रहता है । कल से हम एक एक करके सभी मानव-श्रेणियों परविचार करेंगे ।
                                ॥ हरिः शरणम् ॥  

No comments:

Post a Comment