सनातन धर्म के जितने भी शास्त्र हैं , वे किसी एक व्यक्ति के विचार मात्र नहीं है |आप चाहे कोई सा भी धर्मग्रन्थ उठा लीजिये | केवल वेद ही ऐसे है जिन्हें अपौरुषेय कहा जाता है | वेद परमात्मा के द्वारा कहे गए हैं | जबकि शेष अन्य शास्त्र किन्ही व्यक्तियों की आपस में हुई और की गई धर्मचर्चा पर आधारित हैं |कहने को भले ही कह दिया जाये कि भागवत महापुराण महर्षि वेद व्यास द्वारा रचित है अथवा योगवासिष्ठ महर्षि वसिष्ठ द्वारा लिखी गई है परन्तु इनका अध्ययन करने पर पता चलता है कि इनमें भी महापुरुषों के मध्य हुई चर्चाओं का संकलन है |अतः इन ग्रंथों की उपयोगिता कहीं अधिक है | जब किसी एक व्यक्ति के विचार पर कोई ग्रन्थ आधारित होता है तब उस ग्रन्थ में मात्र उस व्यक्ति के अपने व्यक्तिगत विचार ही समाहित किये हुए होते हैं | परन्तु जब विभिन्न महात्माओं की आपस की चर्चा और विवेचन उस ग्रन्थ के लेखन का आधार होता है, तब उसकी उपयोगिता और स्वीकार्यता सर्वाधिक होती है |
संसार में जितने भी अन्य पंथ है ,वे सभी किसी न किसी एक व्यक्ति के विचारों और संदेशों को आगे बढाने और प्रचारित करने के लिए बनाये गए हैं |उस पंथ के पथ पर चलने वालों के लिए उस व्यक्ति के विचारों और संदेशों को मानना आवश्यक होता है | उस व्यक्ति के विचार भले ही आज के समय के अनुकूल नहीं हो और भले ही आपके विचार उस व्यक्ति के विचारों से मेल नहीं खाते हों , आपको कोई अधिकार नहीं होता है कि आप उन पुरातन विचारों का विरोध करें | सनातन धर्म शास्त्रों के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता | समयानुसार इनमें और इनकी व्याख्या में परिवर्तन होता रहा है |आप इन ग्रंथों में समाहित प्रत्येक ज्ञान कण को मानने को विवश नहीं हैं | इन ग्रंथों को पढ़कर,इनका मनन करने के उपरांत आपका एक अलग ही प्रकार का चिंतन बनता है, जो आपके स्वयं के स्वभावानुसार होता है, न कि उस ग्रन्थ के रचनाकार के अनुसार | यही विशेषता सनातन धर्म शास्त्रों को सर्वोच्च स्थान प्रदान करती है | आप उस चिन्तन के अनुसार उस धर्म ग्रन्थ की विवेचना कर सकते हैं | इस प्रकार विभिन्न व्यक्तियों के चिंतन के अनुसार उनके द्वारा की गई शास्त्रों की व्याख्याएं किसी नए व्यक्ति को अपना अलग ही चिन्तन विकसित करने में सहायक सिद्ध होती है |इस प्रकार हमरे शास्त्रों की की गयी विभिन्न व्याख्याएं इन्हें समझने में एक आधार प्रदान करती हैं | श्री मद्भागवत गीता जो कि श्री कृष्ण और अर्जुन के मध्य कुरुक्षेत्र के युद्ध मैदान में हुआ संवाद मात्र है परन्तु विभिन्न विद्वजनों द्वारा उनके अपने चिंतन के आधार पर की गयी व्याख्याओं ने इस ग्रन्थ की उपयोगिता को विशिष्ठ स्थान प्रदान किया है |
सनातन धर्म शास्त्रों की संख्याएं और प्रत्येक ग्रन्थ की विशालता अपने आप में एक अलग ही स्थान रखती हैं | हमारे यहाँ चार वेद हैं, 18 पुराण है ,छः शास्त्र हैं ,अनेकों उपनिषद् है , वे सभी प्राचीन माने गए हैं | श्री मद्भागवत गीता भी एक उपनिषद् है | इन सबके अतिरिक्त वाल्मीकि रामायण, गोस्वामी तुलसीदास रचित श्री रामचरित मानस, अष्टावक्र गीता,अध्यात्म रामायण , योगवासिष्ठ आदि असंख्य ग्रन्थ है | इतना ही नहीं , इन विभिन्न ग्रंथो पर की गई टीकाएँ भी हमारे यहाँ प्रचुर मात्र में उपलब्ध हैं | इन सबका अध्ययन करना एक बहुत बड़ी बात है |
क्रमशः
|| हरिः शरणम् ||
संसार में जितने भी अन्य पंथ है ,वे सभी किसी न किसी एक व्यक्ति के विचारों और संदेशों को आगे बढाने और प्रचारित करने के लिए बनाये गए हैं |उस पंथ के पथ पर चलने वालों के लिए उस व्यक्ति के विचारों और संदेशों को मानना आवश्यक होता है | उस व्यक्ति के विचार भले ही आज के समय के अनुकूल नहीं हो और भले ही आपके विचार उस व्यक्ति के विचारों से मेल नहीं खाते हों , आपको कोई अधिकार नहीं होता है कि आप उन पुरातन विचारों का विरोध करें | सनातन धर्म शास्त्रों के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता | समयानुसार इनमें और इनकी व्याख्या में परिवर्तन होता रहा है |आप इन ग्रंथों में समाहित प्रत्येक ज्ञान कण को मानने को विवश नहीं हैं | इन ग्रंथों को पढ़कर,इनका मनन करने के उपरांत आपका एक अलग ही प्रकार का चिंतन बनता है, जो आपके स्वयं के स्वभावानुसार होता है, न कि उस ग्रन्थ के रचनाकार के अनुसार | यही विशेषता सनातन धर्म शास्त्रों को सर्वोच्च स्थान प्रदान करती है | आप उस चिन्तन के अनुसार उस धर्म ग्रन्थ की विवेचना कर सकते हैं | इस प्रकार विभिन्न व्यक्तियों के चिंतन के अनुसार उनके द्वारा की गई शास्त्रों की व्याख्याएं किसी नए व्यक्ति को अपना अलग ही चिन्तन विकसित करने में सहायक सिद्ध होती है |इस प्रकार हमरे शास्त्रों की की गयी विभिन्न व्याख्याएं इन्हें समझने में एक आधार प्रदान करती हैं | श्री मद्भागवत गीता जो कि श्री कृष्ण और अर्जुन के मध्य कुरुक्षेत्र के युद्ध मैदान में हुआ संवाद मात्र है परन्तु विभिन्न विद्वजनों द्वारा उनके अपने चिंतन के आधार पर की गयी व्याख्याओं ने इस ग्रन्थ की उपयोगिता को विशिष्ठ स्थान प्रदान किया है |
सनातन धर्म शास्त्रों की संख्याएं और प्रत्येक ग्रन्थ की विशालता अपने आप में एक अलग ही स्थान रखती हैं | हमारे यहाँ चार वेद हैं, 18 पुराण है ,छः शास्त्र हैं ,अनेकों उपनिषद् है , वे सभी प्राचीन माने गए हैं | श्री मद्भागवत गीता भी एक उपनिषद् है | इन सबके अतिरिक्त वाल्मीकि रामायण, गोस्वामी तुलसीदास रचित श्री रामचरित मानस, अष्टावक्र गीता,अध्यात्म रामायण , योगवासिष्ठ आदि असंख्य ग्रन्थ है | इतना ही नहीं , इन विभिन्न ग्रंथो पर की गई टीकाएँ भी हमारे यहाँ प्रचुर मात्र में उपलब्ध हैं | इन सबका अध्ययन करना एक बहुत बड़ी बात है |
क्रमशः
|| हरिः शरणम् ||
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