पुरुषार्थ – 4
पुरुषार्थ के योग्य मानव शरीर-
इस प्रकार यह स्पष्ट हो गया है कि संसार में आने के बाद व्यक्ति जो भी कार्य अपने अभीष्ट (Desirable) को प्राप्त करने के लिए सम्पादित करता है उसे हम उसका पुरुषार्थ कहते हैं | कार्य अथवा कर्म मनुष्य कर्मेन्द्रियों के द्वारा करता है | कर्मेन्द्रियाँ (Organs for act) पांच होती है – वाक् (Vocal cords and tongue), हस्त (Hands), पाद (Legs), उपस्थ (प्रजननांग) (Organs of reproduction) और पायु (Organs of excretion)| कर्मेन्द्रियों की तरह ही पांच ज्ञानेन्द्रियाँ (Organs for sense) होती है - श्रवनेंद्रिय या श्रोतेंद्रिय अर्थात कान(Organ for hearing, ear), त्वगेंद्रिय अर्थात त्वचा(organ to feel sensations, skin), तेजेंद्रिय या दर्शनेंद्रिय अथवा नयन(Organ of sight, eyes), रसेंद्रिय या स्वादेंद्रिय अथवा जिव्हा(Organ for taste, tongue)तथा घ्रानेंद्रिय अर्थात नाक (Organ for smell, nose)| इन समस्त इन्द्रियों का इस भौतिक शरीर के निर्माण में उपयोगी पांच भौतिक तत्वों – आकाश (Ether), वायु (Air), अग्नि (Fire), जल (Water) और पृथ्वी (Earth) से ही हुआ है | इस प्रकार कुल 15 तत्वों से मिलकर यह स्थूल शरीर बनता है | इन तत्वों को स्थूल इस लिए कहा जाता है क्योंकि इन सभी तत्वों हम अपनी आँखों से देख सकते हैं | इन सभी तत्वों को असत भी कहा जाता है क्योंकि ये सभी परिवर्तनशील है | जो परिवर्तनशील है, जिनमे स्थायित्व भाव नहीं है, भला वह सत कैसे हो सकता है | अतः ये सभी तत्व स्थूल और जड़ प्रकृति वाले कहे गए हैं और असत हैं | ये सभी तत्व मिलकर एक भौतिक शरीर (Physical body) का निर्माण करते हैं |
कोई भी भौतिक शरीर तब तक कार्यरूप ग्रहण नहीं कर सकता जब तक कि उसको संचालित करने की शक्ति प्राप्त न हो | अतः यह सिद्ध होता है कि स्थूल शरीर (Gross body) किसी भी प्रकार का कार्य जिसे मनुष्य अपना पुरुषार्थ कहता है, तब तक सम्पादित नहीं कर पायेगा जब तक कि उसे उस कार्य को करने के लिए दिशा निर्देश (Directions) नहीं मिले | जब तक मात्र उपरोक्त वर्णित केवल 15 तत्व एक साथ होते हैं, तब तक वे जड़ (Static) ही बने रहेंगे | उस जड़ शरीर में अगर क्रियाशीलता (Activity) लानी है तो फिर उसे सक्रिय करना होगा | इस जड़ शरीर में सक्रियता आती है, उसके चैतन्य भाव (Consciousness) को प्राप्त करने से | चैतन्य भाव कहाँ से आएगा ? प्रश्न यही उठता है | यह देह है, कोई रोबोट तो है नहीं कि उसे विद्युत् प्रदान करके संचालित किया जा सके | इस जड़ शरीर को आज तक कोई भी वैज्ञानिक अपने स्तर पर प्रयास करते हुए सक्रिय नहीं कर पाया है | जिस दिन विज्ञान ऐसा करने में सफल हो जायेगा उस दिन मानव जीवन अपने चरम (Peak) पर होगा | फिर उसके विकास की यह पराकाष्ठा (Height) होगी | विज्ञान इस शरीर के सक्रिय होने के बारे में अभी भी मौन है परन्तु हमारे सनातन शास्त्र नहीं | जिस स्थिति में हमारा विज्ञान आज तक पहुंचा है वह हमारे ही शास्त्रों के कारण संभव हुआ है | आज तक जो भी नई नई खोज वैज्ञानिकों ने की है, सब की सब हमारे शास्त्रों में पहले से वर्णित है | आधुनिक विज्ञान के अंधभक्त प्रायः ऐसे प्रश्न करते रहते हैं, जिनका उत्तर समझदार व्यक्तियों द्वारा हजारों वर्षों पहले ही दे दिया गया होता है | वे सभी उत्तर हमारे शास्त्रों में समाहित हैं | आवश्यकता है, समय निकाल कर कुछ उन शास्त्रों का भी अध्ययन कर लिया जाए | हमारे शास्त्रों में तो यह जड़ शरीर सक्रिय कैसे होता है, इसकी जानकारी भी उपलब्ध है, परन्तु विज्ञान अभी इस सम्बन्ध में मौन है |
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ.प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
पुरुषार्थ के योग्य मानव शरीर-
इस प्रकार यह स्पष्ट हो गया है कि संसार में आने के बाद व्यक्ति जो भी कार्य अपने अभीष्ट (Desirable) को प्राप्त करने के लिए सम्पादित करता है उसे हम उसका पुरुषार्थ कहते हैं | कार्य अथवा कर्म मनुष्य कर्मेन्द्रियों के द्वारा करता है | कर्मेन्द्रियाँ (Organs for act) पांच होती है – वाक् (Vocal cords and tongue), हस्त (Hands), पाद (Legs), उपस्थ (प्रजननांग) (Organs of reproduction) और पायु (Organs of excretion)| कर्मेन्द्रियों की तरह ही पांच ज्ञानेन्द्रियाँ (Organs for sense) होती है - श्रवनेंद्रिय या श्रोतेंद्रिय अर्थात कान(Organ for hearing, ear), त्वगेंद्रिय अर्थात त्वचा(organ to feel sensations, skin), तेजेंद्रिय या दर्शनेंद्रिय अथवा नयन(Organ of sight, eyes), रसेंद्रिय या स्वादेंद्रिय अथवा जिव्हा(Organ for taste, tongue)तथा घ्रानेंद्रिय अर्थात नाक (Organ for smell, nose)| इन समस्त इन्द्रियों का इस भौतिक शरीर के निर्माण में उपयोगी पांच भौतिक तत्वों – आकाश (Ether), वायु (Air), अग्नि (Fire), जल (Water) और पृथ्वी (Earth) से ही हुआ है | इस प्रकार कुल 15 तत्वों से मिलकर यह स्थूल शरीर बनता है | इन तत्वों को स्थूल इस लिए कहा जाता है क्योंकि इन सभी तत्वों हम अपनी आँखों से देख सकते हैं | इन सभी तत्वों को असत भी कहा जाता है क्योंकि ये सभी परिवर्तनशील है | जो परिवर्तनशील है, जिनमे स्थायित्व भाव नहीं है, भला वह सत कैसे हो सकता है | अतः ये सभी तत्व स्थूल और जड़ प्रकृति वाले कहे गए हैं और असत हैं | ये सभी तत्व मिलकर एक भौतिक शरीर (Physical body) का निर्माण करते हैं |
कोई भी भौतिक शरीर तब तक कार्यरूप ग्रहण नहीं कर सकता जब तक कि उसको संचालित करने की शक्ति प्राप्त न हो | अतः यह सिद्ध होता है कि स्थूल शरीर (Gross body) किसी भी प्रकार का कार्य जिसे मनुष्य अपना पुरुषार्थ कहता है, तब तक सम्पादित नहीं कर पायेगा जब तक कि उसे उस कार्य को करने के लिए दिशा निर्देश (Directions) नहीं मिले | जब तक मात्र उपरोक्त वर्णित केवल 15 तत्व एक साथ होते हैं, तब तक वे जड़ (Static) ही बने रहेंगे | उस जड़ शरीर में अगर क्रियाशीलता (Activity) लानी है तो फिर उसे सक्रिय करना होगा | इस जड़ शरीर में सक्रियता आती है, उसके चैतन्य भाव (Consciousness) को प्राप्त करने से | चैतन्य भाव कहाँ से आएगा ? प्रश्न यही उठता है | यह देह है, कोई रोबोट तो है नहीं कि उसे विद्युत् प्रदान करके संचालित किया जा सके | इस जड़ शरीर को आज तक कोई भी वैज्ञानिक अपने स्तर पर प्रयास करते हुए सक्रिय नहीं कर पाया है | जिस दिन विज्ञान ऐसा करने में सफल हो जायेगा उस दिन मानव जीवन अपने चरम (Peak) पर होगा | फिर उसके विकास की यह पराकाष्ठा (Height) होगी | विज्ञान इस शरीर के सक्रिय होने के बारे में अभी भी मौन है परन्तु हमारे सनातन शास्त्र नहीं | जिस स्थिति में हमारा विज्ञान आज तक पहुंचा है वह हमारे ही शास्त्रों के कारण संभव हुआ है | आज तक जो भी नई नई खोज वैज्ञानिकों ने की है, सब की सब हमारे शास्त्रों में पहले से वर्णित है | आधुनिक विज्ञान के अंधभक्त प्रायः ऐसे प्रश्न करते रहते हैं, जिनका उत्तर समझदार व्यक्तियों द्वारा हजारों वर्षों पहले ही दे दिया गया होता है | वे सभी उत्तर हमारे शास्त्रों में समाहित हैं | आवश्यकता है, समय निकाल कर कुछ उन शास्त्रों का भी अध्ययन कर लिया जाए | हमारे शास्त्रों में तो यह जड़ शरीर सक्रिय कैसे होता है, इसकी जानकारी भी उपलब्ध है, परन्तु विज्ञान अभी इस सम्बन्ध में मौन है |
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ.प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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