Wednesday, October 17, 2018

पुरुषार्थ -22


पुरुषार्थ – 22  
मनुष्य जीवन में किये और प्राप्त हो सकने वाले चार पुरुषार्थ निम्न प्रकार से हैं -  
धर्म (Righteousness/Persuasions/Faith/Duty) – Moral values
अर्थ (Prosperity/Substance) – Economic values
काम (Pleasure/Business/Action) – Psychological values
मोक्ष (Liberation/Enlightenment) – Spiritual values
        संसार में मनुष्य के अतिरिक्त 84 लाख योनियाँ (Species) और भी है | अन्य प्राणियों की तरह मनुष्य भी एक प्राणी है और उसकी भी एक योनी है -मनुष्य योनी | अन्य प्राणी और मनुष्य, दोनों ही जीवन भर कर्म करते रहते हैं परन्तु अन्य प्राणी इन कर्मों से केवल उसी जीवन में काम और अर्थ प्राप्त कर सकते हैं; अपने भावी जीवन के लिए उन कर्मों का कोई योगदान नहीं होता | अन्य प्राणी भी कर्म केवल पूर्व मनुष्य जीवन में किये गए कर्मों के फल को प्राप्त करने के लिए करते है | यही कारण है की वे अपने जीवन में धर्म और मोक्ष को प्राप्त नहीं कर सकते जबकि मनुष्य अपने वर्तमान जीवन में कर्म करते हुए अर्थ और काम के साथ साथ धर्म और मोक्ष को भी प्राप्त कर सकता है | 84 लाख प्रकार के प्राणियों और मनुष्य नामक प्राणी में यही मूलभूत अंतर (Basic difference) है | 
                धर्म को प्रथम पुरुषार्थ और मोक्ष को मनुष्य का अंतिम पुरुषार्थ कहा गया है, इसका क्या कारण है ? अर्थ और काम में से कोई एक भी तो प्रथम पुरुषार्थ हो सकता था परन्तु ऐसा नहीं है | हमारे मुनियों ने, हमारे दार्शनिक महात्माओं ने अर्थ और काम; दोनों में से किसी एक को भी पुरुषार्थ में प्राथमिकता (Priority) नहीं दी |  कहने को तो हम इस क्रम (Order) को अपनाने के लिए बाध्य नहीं है क्योंकि क्रम चाहे किसी भी प्रकार का हो, है तो मानव जीवन में किये और प्राप्त होने वाले पुरुषार्थ ही | हमारे दर्शन (Philosophy) की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहाँ क्रम भी सोच समझकर निर्धारित किया जाता है | जिस प्रकार अगर को व्यक्ति हमारे परिवार के सदस्यों के बारे में पूछे तो सबसे पहले हम अपने परिवार के बुजुर्ग (senior) और अनुभवी(Experienced)  सदस्य के नाम से प्रारम्भ करते हुए सबसे छोटे बच्चे के क्रम तक में परिचय (Introduction) देते हैं | ऐसा नहीं होता कि पहले किसी एक का नाम ले लिया और फिर किसी और का | बुजुर्ग सदस्य हमारे परिवार की रीढ़ (Back bone) होती है, इसलिए उनका परिचय सर्वप्रथम दिया जाता है | क्रम व्यवस्थित (well arranged) होना चाहिए जिससे पूछने वाले के मन में एक बार में ही पूरी बात स्पष्ट (clear) हो जाये | इसी प्रकार पुरुषार्थ जैसे महत्वपूर्ण विषय को स्पष्ट करने के लिए ऊपर दिया गया क्रम ही श्रेष्ठ है | अर्थ के बाद धर्म को लिया जाये अथवा काम और अर्थ के बाद धर्म को लिया जाये तो पुरुषार्थ की महत्ता नहीं रहेगी | आइये ! सर्वप्रथम यह जानते हैं कि पुरुषार्थ के क्रम में अर्थ और काम से पहले धर्म को स्थान क्यों मिला है ?
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ.प्रकाश काछवाल
||हरिः शरणम् ||

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