Sunday, October 7, 2018

पुरुषार्थ-12


पुरुषार्थ – 12
              शास्त्र हमें वही मार्ग दिखलाते हैं, जिस का उपयोग कर हम आत्मज्ञान को उपलब्ध हो सकें | चलना हमें स्वयं को पड़ता है, किसी अन्य को नहीं | केवल शास्त्रों को नियमित (Regular) पढ़ने का क्रम बना लेने मात्र से ही परमात्मा की उपलब्धि नहीं होगी बल्कि उनमें वर्णित (Mentioned) ज्ञान को जीवन में उतारकर उसी के अनुसार जीवन को जीने से होगी | अगर केवल शास्त्रों को रटते रहने से ही भगवान मिल जाते तो तोता (Parrot) कभी का जीवन मुक्त हो जाता जो कि दिनभर राम राम रटता रहता है परन्तु बिल्ली (Cat) के सामने आते ही अंतिम समय उसके मुख से केवल टें टें ही निकलती है | ऐसा ही शास्त्रों को केवल रटते रहने वाले के साथ होता है | अंत समय में उसे भी शास्त्र याद नहीं आते | अन्त समय में भगवान् को याद में रखने का एक ही तरीका है कि हम शास्त्रों के अनुसार जीना प्रारम्भ कर दें |
                अब प्रश्न यह उठता है कि शास्त्रों के अभ्यास से क्या उपलब्धि (Achievement) होगी ? मैं आपसे एक बात का उत्तर चाहता हूँ कि आप सभी नियमित रूप से प्रातः समाचार पत्र पढ़ते हैं, उससे आपको क्या उपलब्धि होती है ? अगर गहराई से विचार किया जाये तो उप्लाब्धि मात्र UPDATE रहने के अतिरिक्त कुछ भी नहीं होती | इसी प्रकार मैं भी कहता हूँ कि केवल शास्त्रों के अभ्यास से भी कोई बहुत अधिक उपलब्द्धि नहीं होगी | परन्तु फिर भी पुरुषार्थ के लिए प्रारम्भिक स्तर पर शास्त्र पढ़ने आवश्यक हैं | यह ठीक वैसे ही है जैसे प्रारम्भिक कक्षा में क,ख,ग,घ. या ABCD पढ़नी आवश्यक है | शास्त्र अध्ययन हमें एक आधार (Base) उपलब्ध करवाता है, पुरुषार्थ प्राप्ति का | बिना ABCD पढ़े आप विज्ञान या किसी भी विषय की कोई भी पुस्तक नहीं पढ़ सकते वैसे ही बिना शास्त्रों के अध्ययन के बिना आप अपने अभीष्ट (Desirable) को भी प्राप्त नहीं कर सकते |
          शास्त्रों को पढ़ने का सबसे बड़ा लाभ यह है कि हमें उचित-अनुचित (Right-wrong) का ज्ञान हो जाता है | शास्त्रों के नियमित पठन से व्यक्ति धीरे-धीरे अपने जीवन से अनुचित को हटाते हुए उचित को अपनाना प्रारम्भ कर देता है | मनुष्य अपने जीवन में अज्ञान से ज्ञान की और चलने का प्रयास करने लगता है | इसी कारण से शास्त्रों को ‘ज्ञान का प्रवेश द्वार’ (Entrance gate of realization) कहा जाता है |
 क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ.प्रकाश काछवाल
||हरिः शरणम्||

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