पुरुषार्थ – 21
हमने अभी तक यह जान लिया है कि मानव
जीवन में पुरुषार्थ किस प्रकार संभव हो सकता है, जिसके तीन विकल्प क्रमवार संक्षेप
में जाने | इन तीनों विकल्पों को उपयोग में लेकर हम पुरुषार्थ के पदार्थों को पा
सकते हैं | पुरुषार्थ का समुचित उपयोग करने से हम आत्म-बोध (Realization)
को उपलब्ध हो सकते हैं | आत्म-ज्ञान को उपलब्ध हो जाना ही भगवद-कृपा
(Grace of the God) कहलाती है | परमात्मा की कृपा (भगवद्-कृपा)
पहले छोर (Starting point) से लेकर अंतिम छोर (End
point) तक सतत (Persistent) चाहिए, तभी हम परम
पुरुषार्थ के अधिकारी हो सकते हैं | बिना परमात्मा की कृपा के मनुष्य में न तो
शास्त्रों के प्रति रुचि जाग सकती है, न ही उसे सद्गुरु मिल सकते हैं | स्वयं के
द्वारा किया जाने वाला प्रयास भी परमात्मा
की कृपा के बिना होना असंभव हैं | इस संसार में खरबों (Trillions) मनुष्य हैं, परन्तु वास्तव में आज तक आत्म-बोध को उपलब्ध होने वाले महापुरुषों
की संख्या केवल अँगुलियों पर गिने जाने लायक ही है | अतः कहा जा सकता है कि
परमात्मा की कृपा की आवश्यकता प्रत्येक चरण में रहती है और यह कृपा भी आपके
पूर्वजन्म से प्राप्त हुए प्रारब्ध का सदुपयोग करते हुए इस जीवन में पुरुषार्थ
करके ही पाया जा सकता है | कहने का अर्थ है कि पूर्व जन्म के पुरुषार्थ (प्रारब्ध)
का सदुपयोग कर लेना ही इस जीवन का पुरुषार्थ है जो आपको परमात्मा के साथ एकाकार कर
सकता है |
अब हम यह जानने का प्रयास करेंगे कि इन चार पुरुषार्थ
में क्या विशेषता है कि इन्हें प्राप्त करने के लिए इतने पापड़ बेलने पड़ते हैं | जब
परमात्मा ने हमें अन्य सभी प्राणियों से श्रेष्ठ बनाया है तो कुछ न कुछ तो इसके पीछे
कारण रहा ही होगा | क्यों बैठे बैठे परमात्मा के मन में यह बात आई कि मैं अपनी
सर्वश्रेष्ठ रचना (Best creation) बनाऊं ?
जब उसने बना ही दी है यह रचना, तो हमारा भी यह प्रयास होना चाहिए कि हम उन
उद्देश्यों (Aims) को प्राप्त करें जिनके लिए मनुष्य का इस
धरा पर आगमन हुआ है | ये उद्देश्य हैं- धर्म, अर्थ, काम और अंत में मोक्ष | आहार
(Feed), निद्रा (Sleep),भय (Terror) और मैथुन (Sex) में तो रत संसार के सभी प्राणी रहते
हैं परन्तु मनुष्य को इनसे अलग, कुछ विशेष करने के बारे में भी जाना जाता है | हम
अब एक एक करके इन चारों पर संक्षिप्त रूप से चर्चा करेंगे कि क्या इन चारों की क्या
तो विशेषताएं हैं और क्यों ये हमारे लिये आवश्यक हैं ?
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ.प्रकाश काछवाल
||हरिः शरणम्||
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