Monday, October 8, 2018

पुरुषार्थ-13


पुरुषार्थ -13
               प्रत्येक मनुष्य में तीन गुण होते है,जिन्हें प्रकृति के तीन गुण कहे जाते हैं - सत्व, रज और तम | व्यक्ति अपने गुण की प्रधानता के अनुसार ही कर्म करता है | जिस गुण की अधिकता होती है, उसी अनुरूप कर्म भी सात्विक, राजसिक अथवा तामसिक प्रकृति के माने जाते हैं | वास्तव में कर्म सात्विक, राजसिक अथवा तामसिक नहीं होते बल्कि मनुष्य के गुण ही सात्विक, राजसिक अथवा तामसिक होते हैं | अतः किसी एक गुण की प्रधानता ही उस व्यक्ति की प्रकृति और स्वभाव का निर्माण करती है | जैसे किसी व्यक्ति में तमोगुण की बहुलता हो तो उस व्यक्ति की प्रकृति भी तमोगुणी होगी | प्रायः यह देखने में आता है कि शास्त्रों का निरंतर अभ्यास करने वाला तमोगुणी व्यक्ति भी अशुभ कर्म त्यागकर शुभ कर्म करने को प्रेरित हो जाता है | इसी कारण से उसकी प्रकृति भी तमोगुणी से परिवर्तित होकर रजोगुणी हो जाती है | अगर शास्त्र अध्ययन निरंतर चलता रहा तो उसकी प्रकृति एक दिन परिवर्तित होकर सत्व गुणी भी हो जाएगी | यही शास्त्र-अभ्यास की मुख्य उपलब्धि है |
               शास्त्र-अभ्यास के लिए व्यक्ति तभी प्रेरित होता है, जब उसे सतत कर्म करने के उपरांत भी इष्ट भोगों (Desired enjoyment) की प्राप्ति नहीं हो पाती है | कभी कभी वह सतत दुःख पर दुःख  पाकर भी वैराग्य (Detachment) को उपलब्ध हो जाता है तब ही वह शास्त्रों को पढ़ने को प्रेरित होता है | हालाँकि उसका यह वैराग्य प्रारम्भ में छद्म (Pseudo) वैराग्य ही होता है क्योंकि उसका वैराग्य दु:खों से परेशान होकर पैदा हुआ होता है | वास्तविकता में वैराग्य भाव ज्ञान की प्राप्ति हो जाने के उपरांत ही संभव होता है | परन्तु चाहे जिस प्रकार भी हो और जितने समय के लिए भी हो, ऐसा छद्म वैराग्य भी व्यक्ति की पारमार्थिक और आध्यात्मिक उन्नति (Spiritual development) में सहायक सिद्ध हो सकता है | विभिन्न शास्त्रों में संसार और परमात्मा के बारे में संक्षिप्त से लेकर गहन चर्चा तक की गई है |
            शास्त्र मनुष्य की मानसिक दशा (Mental status) को परिवर्तित करने की क्षमता रखते हैं | गहन विषाद (Deep sorrow) में डूबा हुआ व्यक्ति भी अवसाद (Depression) की अवस्था से उबर सकता है | मानसिक दशा के परिवर्तित होते ही उस व्यक्ति के जीवन की दिशा (Direction of the life) तक बदल जाती है जो उसे परमात्मा के द्वार तक ले जाने में सहायक सिद्ध हो सकती है | अतः शास्त्र अध्ययन बहुत ही महत्वपूर्ण है, आत्म-ज्ञान (Realization) को उपलब्ध होने के लिए | शास्त्रों को केवल बार-बार पढ़ना मात्र ही नहीं है बल्कि उनमें वर्णित ज्ञान को जीवन में उतारना आवश्यक है | तभी शास्त्र अभ्यास सार्थक (Fruitful) हो सकता है अन्यथा नहीं |
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ. प्रकाश काछवाल
||हरिः शरणम् ||

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