पुरुषार्थ – 20
मोक्ष प्राप्ति के लिए
तो अंततः आपको अपने प्रयत्न से शुभ वासना का भी त्याग करना होगा | मोक्ष प्राप्ति
के लिए यही आपका सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण प्रयत्न होगा | इस बारे में केवल आपका
प्रयास ही कार्य करेगा | हरिः शरणम् आश्रम, बेलडा, हरिद्वार के आचार्य श्री
गोविन्दराम शर्मा कहते हैं कि “व्यक्ति के जीवन
में आवश्यकता (Need) पूरी हो सकती है, जिन्हें पूरा करना
परमात्मा का दायित्व है परन्तु उसकी इच्छाएं, वासनाएं (Lust) किसी भी जीवन में पूरी नहीं हो सकती | यह एकदम सत्य है |” अतः जीवन में
शांति चाहते हैं तो अपने जीवन में कभी भी वासनाओं को न पनपने दें | वासना शून्य (Lust
free) हो जाना ही संसार से मुक्ति है क्योंकि जहाँ वासना नहीं है
वहां मन भी नहीं है | हमारा संसार ही स्वयं के मन के कारण ही है | इस प्रकार मन के
मौन (Silent) होते ही संसार भी विलुप्त (Disappear) हो जाता है | मन ही संसार है और अमन हो जाना ही संसार से मुक्ति है | संसार
की विलुप्तता ही आत्मज्ञान (Realization) है | जब आत्मज्ञान
को उपलब्ध हो जाते हो तो आप जीवित होते हुए भी मुक्त है | इसी को जीवन-मुक्त कहते
हैं | अब इस संसार में रहते हुये भी आपके भीतर संसार नहीं रहता | आपकी सब कामनाएं,
इच्छाएं और वासनाएं विलुप्त हो चुकी होती है | जब इन सभी से आप मुक्त हैं तो फिर
बंधन कोई है ही नहीं | इस बंधन का खुल जाना ही मुक्ति है, मोक्ष है |
आपके प्रयत्न ही आपके लिए मुक्ति
द्वार को खोल सकते हैं | गुरु के मार्गदर्शन से आप शास्त्रों के ज्ञान को समुचित
तरीके से आत्मसात करें और वासनाओं को पूर्णतया त्याग दें | वासनाओं का पूर्ण रूप
से त्याग (Complete abolition) का अर्थ है
कोई शुभ वासना भी नहीं रहे, यहाँ तक कि
मुक्ति और परमात्मा प्राप्ति की कामना का भी त्याग हो जाना चाहिए | जब वासनाओं का
त्याग इस सीमा तक हो जाता है तो फिर मुक्ति के द्वार स्वतः ही खुल जाते हैं,
उन्हें खोलना नहीं पड़ता | प्रयत्न तो वासना त्याग के लिए ही करना पड़ता है और वही
त्याग मुक्ति के द्वार की कुंजी (Key) है |
इस
मोक्ष के द्वार के चार द्वारपाल (Guard) बताये जाते हैं- शम
(appease), विचार (contemplation) , संतोष (Contentment)
और सतगुरु (true master)| ये चारों द्वारपाल
आपके प्रयत्न करने से ही आपके पक्ष में हो सकते हैं अन्यथा नहीं | शम का अर्थ है वासनाओ
का शमन, जिससे आप शांति को उपलब्ध हो सकें | विचार का अर्थ है शास्त्र पढ़कर विचार
करें कि कौन सा कर्म उचित है और कौन सा अनुचित | संतोष का अर्थ है जो मिल गया उसी
में संतुष्ट रहें | इससे आप अपनी वासनाओं को नियंत्रण में रख पाएंगे | सतगुरु अथवा
साधू संगम का अर्थ है कि आप सतत इनके सानिध्य में रहने से सद् मार्ग (right
path) से कभी भी भटकेंगे नहीं | अतः इन सभी द्वारपालों को अपने पक्ष
में करने का प्रयत्न आप स्वयं ही कर सकते है फिर ये आपके लिए मुक्ति का द्वार खोल
देंगे |
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ. प्रकाश काछवाल
||हरिः शरणम् ||
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