Wednesday, October 3, 2018

पुरुषार्थ - 8


पुरुषार्थ – 8
                इतना सब आत्मसात कर लेने के पश्चात् प्रश्न यह पैदा होता है कि यह सब अर्थात किसी भी  पुरुषार्थ को प्राप्त करना संभव कैसे हो पाता है ? इसमे एक बात ध्यान देने कि है कि कोई भी मानव बिना पुरुषार्थ के कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकता | कुछ भी प्राप्त करने के लिए कर्म करने आवश्यक हैं | जो व्यक्ति यह कहते हैं कि “किसी भी कर्म को करने से अच्छे अथवा बुरे या मिश्रित फल मिलते है, अतः कर्म करने से कर्म न करना अधिक उपयुक्त है” वे एकदम सफ़ेद झूठ बोल रहे हैं | मैं इन लोगों को केवल कर्मों को करने से भागने का मार्ग ढूँढने वाला पलायनवादी (Escapist) कहूँगा | इस संसार में प्रत्येक जीव के लिए कर्म करने आवश्यक हैं और यहाँ तक कि परमात्मा ने भी इस संसार में जब जब अवतार (Incarnation) लिया है, सभी रूपों में उन्होंने कर्म किये ही है | भला, बिना कर्म किये कोई पुरुषार्थ यानि फल कैसे प्राप्त कर सकते हैं ? मोक्ष भी बिना कर्म किये नहीं मिल सकता | अतः बिना पुरुषार्थ के फिर मानव जीवन का उद्देश्य ही भला क्या रह जायेगा ? सर्वप्रथम हमें यह निश्चित कर लेना है कि पुरुषार्थ करना ही है | कैसे करना है, यह सब आपके विवेक पर निर्भर करता है |
 पुरुषार्थ के प्रयत्न (पौरुष या कर्म के प्रकार ) –(Efforts for purusharth)-
              पुरुषार्थ प्राप्त करने के लिए किये जाने वाले प्रयत्न को कर्म अथवा पौरुष कहते हैं | ये कर्म दो प्रकार के होते हैं – शास्त्र अनुमोदित या शास्त्र-सम्मत (According to norms) और शास्त्र विरुद्ध (Against the norms) | शास्त्र-सम्मत कर्म; पुण्यकर्म कहलाते है और शास्त्र-निषिद्ध कर्म, पापकर्म | इनमें जो शास्त्र-निषिद्ध पुरुषार्थ है वह अनर्थ का कारण है और शास्त्र-सम्मत पुरुषार्थ परमार्थ वस्तु की प्राप्ति का कारण है | जो पूर्व जन्म में अशुभ-पौरुष या कर्म किये गए हैं, उनका फल वर्तमान जीवन में प्राप्त होता है | इस अशुभ-पौरुष के प्रभाव को वर्तमान जीवन में शुभ-पौरुष से कम किया जा सकता है, इसमे कोई संशय नहीं है | अशुभ-पौरुष के प्रभाव को सम्पूर्ण रूप से समाप्त नहीं किया जा सकता | अतः जीवन में सदैव ही शुभ-कर्म करने चाहिए जिससे हमें प्रत्येक जीवन में केवल अच्छे फल ही उपलब्ध हों और किसी प्रकार का कष्ट उठाना नहीं पड़े | जब इस जन्म के शुभ कर्मों से पूर्व मानव जन्म के अशुभ कर्मों के प्रभाव को कम किया जा सकता है तो इसका सीधा सा अर्थ यही हुआ कि वर्तमान जीवन के कर्म अधिक महत्वपूर्ण है, बजाय भूतकाल (Past) के जीवन के कर्मों के | इसीलिए यह कहा जाता है कि मनुष्य को वर्तमान (present) में ही जीना चाहिए क्योंकि भूतकाल के कर्मों के बारे में सोचने से कोई लाभ नहीं होने वाला | अकर्मण्य व्यक्ति (Lethargic) भाग्य, दैव अथवा प्रारब्ध (Destiny) के भरोसे बैठा रहता है अथवा कार्य सिद्ध नहीं होने पर उन्ही को कोसता रहता है | जबकि कर्मशील व्यक्ति (Laborious) अपने जीवन में कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखता |
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ. प्रकाश काछवाल
||हरिः शरणम्||

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