Saturday, October 6, 2018

पुरुषार्थ - 11


पुरुषार्थ – 11  
         शुभ कर्म कैसे किये जा सकते हैं और इन शुभ कर्मों को करने के लिए कैसे प्रेरित हुआ जा सकता है ? हमारे ऋषि मुनियों ने इसके लिए शास्त्रों में तीन मार्ग बताये हैं –
1. शास्त्रों के अभ्यास से (शास्त्र-कृपा) By the help of Holy books.
2. गुरु के उपदेश से (गुरु-कृपा) Guidance of Guru और
3. स्वयं के प्रयत्न (स्व-कृपा) self level efforts से |
आगे अब हम एक एक कर इन तीनों के बारे में संक्षेप में विचार करेंगे |
शास्त्रों का अभ्यास-(शास्त्र-कृपा)-
             शास्त्र क्यों पढ़ने उपयोगी हैं ? यही प्रश्न जन मानस को भीतर ही भीतर उद्वेलित करता रहता है | इसका अभी तक स्पष्ट उत्तर किसी को भी नहीं मिला है | इसका महत्वपूर्ण कारण यह है कि हमारे सनातन शास्त्रों का विस्तार (Expansion) बहुत अधिक है | आप उनकी संख्या (Numbers) जानकर ही उनको पढ़ने का विचार मन से निकाल देते हैं | मेरा इस बारे मे आपसे एक ही आग्रह है कि महासागर (Ocean) की विशालता को देखकर डरें नहीं ,बल्कि उनमे से किसी एक में धीरे धीरे उतरना प्रारम्भ करें | अगर प्रत्येक व्यक्ति आज तक महासागर में उतरने से कतराता रहता तो हम आज भी उसके किनारे बैठ कर उसकी थाह (Depth) का सिर्फ अनुमान ही लगाते रहते | महासागर को जानने के लिए प्रारम्भ में ही प्रशांत महासागर (Pacific ocean) में उतरना आवश्यक थोडा ही है, जिसकी विशालता और गहनता देखकर ही डर जाएँ | महासागर को जानने  के लिए आप सर्वप्रथम छोटी खाड़ी (Bay) में उतरकर अपने महासागर के अध्ययन को प्रारम्भ कर सकते हैं | बंगाल की खाड़ी और प्रशांत महासागर में आपस में किसी भी प्रकार की कोई भिन्नता (Difference) नहीं है | ठीक इसी प्रकार वेद, उपनिषद तथा अन्य किसी छोटे से ग्रन्थ में भी कोई भिन्नता नहीं है | जब आप किसी भी एक शास्त्र से प्रारम्भ करेंगे तब आपकी उत्सुकता स्वतः ही आपको और अधिक जानने के लिए किसी बड़े ग्रन्थ को पढ़ने को प्रेरित कर देगी | जब आप शास्त्र अध्ययन प्रारम्भ करते है तब आपको अपने इस प्रश्न का उत्तर भी मिल जायेगा कि शास्त्र पढ़ने क्यों आवश्यक हैं | पहले पढ़ना तो प्रारम्भ कीजिये | किसी भी शास्त्र को एक बार पढ़ने से हो सकता है कि किसी भी प्रकार की प्रगति इस सम्बन्ध में नज़र नहीं आये | इसीलिए शास्त्रों को बार बार (Repeatedly) पढ़ना आवश्यक बताया गया है | इस प्रकार शास्त्रों को बार बार पढ़ने और उस पर विचार करने को ही शास्त्र अभ्यास बताया गया है |
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ.प्रकाश काछवाल
||हरिः शरणम् ||

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