पुरुषार्थ – 19
“अँधा अँधे ठेलिया, दोनों कूप पड़न्त”
के इस दृष्टान्त से यह स्पष्ट है कि आपको अगर मुक्त होना है, तो उसके लिए किसी मुक्त
हुए व्यक्ति की शरण में ही जाना होगा | कई कथित ज्ञानी गुरु आपको मुक्त करने का
आश्वासन अवश्य दे सकते हैं परंतु वे स्वयं ही बंधे हुए होते है, अपने समाज से,
अपने परिवार से, अपने स्थान से और सबसे बड़ी बात, वे बंधे हुए होते हैं धन से,
जिसको एकत्रित करने के लिए उसको आपके सहारे (Support) की आवश्यकता है | अतः सावधानी से गुरु की पहचान करें तभी आप मुक्त हो सकते
हैं अन्यथा नहीं | शास्त्र अध्ययन और गुरु का मार्गदर्शन तभी सार्थक सिद्ध हो सकता
है, जब हमारे भीतर आत्म-ज्ञान को उपलब्ध होने की ललक हो | हमारी लगन ही हमें हमारे
उद्देश्य तक पहुँचने में सहायक होती है, बिना लगन के शास्त्र और गुरु भी कुछ नहीं
कर सकते | तो आइये, अब बात करते हैं स्वयं
के प्रयत्न अर्थात स्व-कृपा की |
स्वयं का प्रयत्न-(स्व-कृपा)-
पुरुषार्थ में स्वयं के द्वारा
प्रयत्न (Efforts)
करने आवश्यक हैं | गुरु के निर्देशन (Directions) के बाद भी अगर आप अपनी तरफ से किसी भी प्रकार का प्रयास नहीं करते हैं, अभीष्ट की प्राप्ति के लिए, तो
आपको न तो गुरु किसी प्रकार की सहायता (Help) उपलब्ध (Provide)
करवा सकता है और न हीं आपका शास्त्रों का ज्ञान | आपको इस स्थिति
में पहुंचकर स्पष्ट हो जाता है कि आपको पुरुषार्थ की इन चार उपलब्धियों के लिए
क्या, कैसे और कब करना होगा ? यहाँ बड़ी ही गंभीरता (Seriously) और तत्परता (Actively) के साथ आपके प्रयत्न से ही आप
लक्ष्य तक पहुँच सकते हैं | इसीलिए शेष 25 प्रतिशत प्राप्त करने की योग्यता आपके
प्रयत्न में छुपी हुई है | शास्त्र चिंतन और शास्त्र अभ्यास आपको धर्म के मार्ग पर
ला सकता है | गुरु के सानिध्य से आप धर्म के साथ साथ काम और अर्थ की प्राप्ति भी
कर सकते हैं | परन्तु अगर आपको मोक्ष चाहिए तो याद रखें मोक्ष स्वाधीन (Independent)
है | आप मुक्त स्वयं के प्रयत्न से ही हो सकते हैं | अतः प्रयत्न की
भूमिका पुरुषार्थ में सबसे महत्वपूर्ण मानी गई है |
प्रायः मनुष्य इस स्थिति में आकर
अर्थात शास्त्रीय अभ्यास और गुरु का सानिध्य पाकर यूँ महसूस करता है मानो वह परमात्मा के द्वार पर खड़ा
है | एक सीमा तक यह सत्य भी है | परन्तु अभी भी परमात्मा के द्वार पर आप खड़े अवश्य
हैं परन्तु यह द्वार आपके लिए न तो कोई शास्त्र खोल सकता और न ही कोई पहुंचा हुआ
गुरु | इस द्वार को तो आप अपने प्रयत्न से ही खोल सकते हैं | यह द्वार खोला जा
सकता है, वासना मुक्त होकर | इस विवेचन के प्रारम्भ में मैंने बताया था कि अशुभ
वासना त्यागकर शुभ वासना ग्रहण करें | परन्तु ध्यान में रहे, यह शुभ वासना आपको
धर्म, काम और अर्थ सुलभ करवा सकती है परन्तु मोक्ष नहीं | मोक्ष के लिए तो सभी
प्रकार की कामनाओं का त्याग करना पड़ता है |
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ.प्रकाश काछवाल
||हरिः शरणम्||
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