पुरुषार्थ – 23
केवल अर्थ और काम प्राप्त करने के
लिए तो मनुष्य के अतिरिक्त अन्य सभी प्राणी हैं ही | सभी प्राणियों को अर्थ और काम
तो पूर्व मानव जीवन में किये गए पुरुषार्थ के कारण प्रारब्ध (Destiny)
के रूप में उपलब्ध होते हैं और उनको अपने प्रारब्ध का उपयोग भी फल
प्राप्त करने के अनुसार ही करना पड़ता है | परन्तु मनुष्य को यह अधिकार
(Right) है कि वह प्रारब्ध स्वरूप मिले अर्थ और काम का उपयोग (Use)
अपने विवेकानुसार कर सकता है | कहने का अर्थ यह है कि मनुष्य को
भाग्यानुसार (according to destiny) मिलने वाले अर्थ और काम
का सदुपयोग अथवा दुरूपयोग करने का अधिकार है | अर्थ और काम का सदुपयोग करना ही
मनुष्य का परम पुरुषार्थ है | अर्थ और काम से पूर्व धर्म को स्थान देने का कारण भी
यही है कि मनुष्य अपने धर्म के अनुसार प्रारब्ध में मिले अर्थ और काम का उपयोग कर
जीवन मुक्त होने का प्रयास करे | स्वामी शरणानन्द जी महाराज कहते हैं कि प्रारब्ध
का सदुपयोग करना ही मनुष्य का पुरुषार्थ है | अर्थ और काम का सदुपयोग धर्म के आचरण
से ही हो सकता है अन्यथा नहीं | यही कारण है कि धर्म को मनुष्य का प्रथम पुरुषार्थ
कहा गया है |
मैंने जीवन में अपने चारों ओर
(Around)
उपस्थित सगे सम्बन्धियों, मित्रों आदि के साथ रहते हुए अनुभव किया
है कि जिसने अपने भाग्य से मिले अर्थ और काम का धर्मानुसार सदुपयोग किया वे जीवन
मुक्त होने की दिशा में आगे बढ (Progressive) रहे हैं | हाँ,
यह बात अलग है कि उनकी संख्या नगण्य है (Negligible) और
उनमें से कोई एक भी जीवन मुक्त हो पायेगा या नहीं; कहा नहीं जा सकता | परन्तु इतना
अवश्य है कि वे व्यक्ति इस जीवन में नहीं तो धीरे धीरे अगले मानव जीवन में जीवन
मुक्ति की राह पर उतरोत्तर प्रगति करते जायेंगे | सबसे बड़ी विडंबना तो यह है कि प्रायः
लोग प्रारब्ध स्वरुप मिले अर्थ और काम का सदुपयोग नहीं करते बल्कि और अधिक काम और
अर्थ प्राप्ति के लिए कामनाएं पाल रहे हैं | ऐसे व्यक्ति जीवन मुक्त कभी भी नहीं
हो सकते | इन व्यक्तियों में एक तीसरी प्रकार के लोग भी हैं, जो भाग्य से मिले काम
और अर्थ का दुरूपयोग कर रहे हैं और परिणाम स्वरुप दु:खों को
प्राप्त हो रहे है | उनके जीवन को देखकर दया भी आती है और मन में रोष भी पैदा होता
है कि लाख समझाने के बाद भी वे समझे नहीं और पतन को प्राप्त हुए हैं |
अतः हमें यह समझना चाहिए कि हम अपने
जीवन में मिल रहे अर्थ और काम को भाग्य और परमात्मा का प्रसाद मानें और उसका
सदुपयोग करें जिससे हमारी आत्म-ज्ञान को उपलब्ध होने के मार्ग पर प्रगति होती रहे |
अर्थ और काम का सदुपयोग करना सिखाता है, हमारा धर्म | हमरा धर्म क्या है ? यह
जानने के लिए आइये! अब हम धर्म पर चिंतन करते है | धर्म के बाद शेष तीन
पुरुषार्थों पर भी चर्चा करेंगे |
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ.प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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