Wednesday, October 31, 2018

पुरुषार्थ-36-अर्थ-4

पुरुषार्थ- 36-अर्थ-4

             अर्थ पर चर्चा को विराम देने से पहले एक दृष्टान्त देना चाहूँगा | एक बार एक पर्यटक जंगल में रास्ता भटक गया | रास्ता खोजने में उसे शाम हो गयी | सूर्य बड़ी तेज गति से अस्ताचलगामी हो रहा था परन्तु पर्यटक को कोई सही रास्ता नज़र नहीं आ रहा था | जंगल में भटकते भटकते उसे एक संत की छोटी सी कुटिया दिखलाई पड़ी | पर्यटक बहुत अधिक चलने के कारण थक गया था और उसे जोर की भूख-प्यास भी लगी थी | उसने कुटिया के द्वार पर दस्तक दी | संत ने दरवाजा खोला और आगंतुक को शारीरिक रूप से पस्त देखकर कुटिया के भीतर आने को कहा | संत ने उसे चटाई पर बैठाकर खाने के लिए कुछ गुड और चने दिए, साथ ही पीने को शीतल जल भी दिया | कुछ खाने-पीने से पर्यटक की जान में जान आई | अब वह कुछ बोलने की स्थिति में आया | संत ने उससे उसका परिचय पूछा और अपने दैनिक कार्य में लग गए | पर्यटक उनके पास गया और उनसे वार्तालाप प्रारम्भ किया |
                      पर्यटक ने संत से पूछा-‘आप इस जंगल में कितने वर्षों से रह रहे हैं ?’संत ने उत्तर दिया-‘लगभग 70 वर्षों से |’  पर्यटक ने एक नज़र कुटिया के चारों और डालते हुए संत से पूछा-‘परन्तु आपका सामान कहाँ है ?’ सन्त ने सहज भाव से प्रत्युतर में पर्यटक से प्रश्न किया – ‘तुम्हारा सामान कहाँ है ?’ पर्यटक ने कहा-‘ मैं तो एक यात्री हूँ, कुछ दिन घूम फिर कर वापिस चला जाऊंगा | पर्यटन पर निकला एक पर्यटक हूँ | भला, मुझे अधिक सामान की कहाँ आवश्यकता है ?’  संत ने बड़ी सहजता से उत्तर दिया-‘मैं भी तो तुम्हारी तरह ही इस भूलोक का एक यात्री हूँ | अपनी जीवन यात्रा पूरी करके वापिस लौट जाऊंगा | मुझे अधिक सामान का संग्रह करने की कहाँ आवश्यकता है ?’ यह सुनकर उस पर्यटक की आँखें खुल गयी | उसने आज जीवन यात्रा का एक सत्य जाना | उसने संत के चरण स्पर्श किये और उनका धन्यवाद किया तथा  अपनी यात्रा पर आगे बढ़ गया |
                उस यात्री की तरह ही हमारे विचार हैं जबकि उस संत की तरह हमारा जीवन होना चाहिए | हरिः शरणम् आश्रम, बेलडा, हरिद्वार के आचार्य श्री गोविन्द राम शर्मा कहते हैं कि ‘जीवन यात्रा में अपने साथ सामान और साथी जितने कम होंगे, हमारी यात्रा उतनी ही अधिक सुगम होगी |’ अर्थ जीवन के लिए आवश्यक है परन्तु जब जीवन केवल अर्थ के लिए ही होकर रह जाता है तब पास में पर्याप्त अर्थ होते हुए भी जीवन अर्थहीन बन जाता है | अर्थ को धर्मानुसार कर्म करते हुए ही प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए, अधर्म के मार्ग पर चलकर नहीं | अतः अपने जीवन में ऐसा अनर्थ कभी भी न कीजिये कि जीवन भर अर्थ अर्थ करते करते यह मानव जन्म व्यर्थ ही बीत जाये |
           अर्थ के बाद तीसरा पुरुषार्थ है-काम | काम के बिना अर्थ को प्राप्त नहीं किया जा सकता और अर्थ के बिना जीवन सुखी नहीं हो सकता | तो आइये ! अब काम पर भी कुछ काम की बातें कर ली जाये |
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ.प्रकाश काछवाल
||हरिः शरणम्||

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