Friday, October 12, 2018

पुरुषार्थ-17


पुरुषार्थ -17  
                 गुरु के पास जाकर कभी भी अपने द्वारा किया गया ज्ञानार्जन उन्हें नहीं बताना चाहिए बल्कि उस ज्ञान से मन में उपजे प्रश्नों को पूछते हुए अपने ज्ञान में वृद्धि करनी चाहिए | ज्ञानी की एक ही सबसे बड़ी कमी है, वह है ज्ञान का अहंकार (Ego of knowledge) | ज्ञान आपमें अहंकार पैदा करता है, जबकि  गुरु के पास अहंकार रहित (free from ego) होकर जाना पड़ता है | अहंकार (Ego) ही गुरु से ज्ञान प्राप्त करने में सबसे बड़ी बाधा (Obstacle) है | गुरु आपको शास्त्रों में वर्णित ज्ञान को आत्मसात (Apply) करने की विधि समझाता है क्योंकि उसी ज्ञान को आत्मसात करते हुए उसने गुरु का पद (Position) प्राप्त किया है | गुरु आपको ज्ञान के भार से मुक्त कर देता है | ज्ञान से मुक्त हो जाना ही वास्तविकता में मुक्ति है | अगर आप में केवल शास्त्रीय ज्ञान (Theoretical knowledge) है अर्थात आपने बहुत से शास्त्र पढ़ लिए है और फिर भी आपको आत्मज्ञान नहीं हुआ तो वह ज्ञान अविद्या ही है, अज्ञान (Pseudo-knowledge) ही है | ऐसे ज्ञान की कीमत दो कौड़ी (Negligible value) की भी नहीं है | आत्मज्ञान आपको सभी प्रकार के बंधनों से मुक्त करता है जबकि अविद्या आपको स्वयं के साथ भी बाँध लेती है | यह बंधन है, बहुत कुछ पढ़ लेने का, बहुत कुछ जान लेने का, ज्ञानी हो जाने का, इसी को हम ज्ञान-बंध कहते हैं | जब ज्ञान को आप जीवन में नहीं उतार पाते तो यही ज्ञान बंधन बन जाता है | आपका गुरु आपके इस ज्ञान को आपके लिए उपयोगी बनाकर आपको इस बंधन से छुटकारा दिला देता है, जिससे आपका कल्याण हो | 
                   गुरु का चयन (selection) भी महत्वपूर्ण है | गुरु आत्मज्ञानी होना चाहिए न कि ज्ञान-बंध | ज्ञान-बंध वह व्यक्ति होता है, जो शास्त्रों के अध्ययन से अपने आपको सर्वज्ञ (Know all) मान लेता है और गुरु बन बैठता है तथा संसार में चारों ओर घूम घूम कर ज्ञानोपदेश देता रहता है | ज्ञान-बंध अपने शास्त्रीय ज्ञान को जीवन में उतारता (Apply) ही नहीं है | बिना ज्ञान को जीवन में उतारे आत्म-कल्याण भला कहीं संभव हुआ है ? ऐसा व्यक्ति आपको किस्से कहानियां सुना अवश्य सकता है, आपको भोग साधन उपलब्ध करवा सकता है परन्तु आपको आत्मज्ञानी नहीं बना सकता क्योंकि वह स्वयं ही ज्ञान–बंध है, भला ऐसा गुरु आपको ज्ञान देकर मुक्ति के मार्ग पर कैसे ले जा सकता है ? अतः गुरु चुनने में बड़ी ही सावधान की आवश्यकता होती है | अगर भूल से (By mistake) गुरु के स्थान पर ज्ञान-बंध को चुन लिया गया तो वही बात हो जाएगी - “अँधा अँधे ठेलिया, दोनों कूप पड़न्त”| ऐसा गुरु स्वयं तो डूब ही रहा है, आपको भी ले डूबेगा |
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ.प्रकाश काछवाल
||हरिः शरणम्||

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