पुरुषार्थ- 30-धर्म-7
सत्व गुण को मनुष्य कैसे बढा सकता है ?
इसको बढाने के लिए कई बार परिस्थितियां ऐसी पैदा हो जाती है जो उसे तामसिकता से
दूर कर देती है | जैसा कि महर्षि वाल्मीकि और अंगुलिमाल के साथ हुआ था | दोनों ही
व्यक्ति अपने जीवनकाल में भयानक डाकू (dacoit) रहे हैं | एक तो श्री राम का अनुरागी बन गया और दूसरा भगवान बुद्ध का
शिष्य | तामसिकता से सात्विकता की ओर बढ़ना आपके स्वयं के पुरुषार्थ से ही संभव है |
सनातन शास्त्र और गुरु व महान संत आपको केवल मार्ग ही दिखला सकते हैं | उस मार्ग
को अपनाकर, उस मार्ग पर चलकर ही आप धर्म को उपलब्ध हो सकते हैं | इसीलिए धर्म को
एक पुरुषार्थ कहा गया है |
धर्म के
मार्ग पर चलना ही नैतिक आदर्श (ideal morality) है
| धर्म को अपनाकर ही आप शांति का अनुभव कर सकते हैं | धर्म से चाहे आपको सांसारिक
वस्तुएं उपलब्ध न हो परन्तु जिस प्रकार की शांति का अनुभव आपको होगा वह अमूल्य है |
धर्म की तुलना आप किसी भी अन्य सांसारिक वस्तु से नहीं कर सकते | इसीलिए धर्म का
मूल्य मुद्रा में न होकर नैतिकता में निहित है अर्थात धर्म का केवल नैतिक मूल्य (Moral
value) है | महत्वपूर्ण यह है कि नैतिक मूल्य सदैव ही मौद्रिक मूल्य
(monetary value) से अधिक शक्तिशाली (powerful) होता है |
अतः यह स्पष्ट है कि धर्म और
सम्प्रदाय दोनों अलग अलग है | संप्रदाय अलग अलग हो सकते हैं परन्तु सभी
सम्प्रदायों का धर्म लगभग एक ही होता है | कोई भी सम्प्रदाय असत्य भाषण को धर्म
नहीं कहता, हिंसा की सभी संप्रदाय आलोचना ही करते हैं और इसी प्रकार सभी
सम्प्रदायों में तप करने और दान देने का विशेष महत्त्व है | जो लोग धर्म का नाम
लेकर झगड़ते हैं अथवा दंगा फसाद करते हैं वे सभी अधार्मिक लोग हैं | धार्मिक
व्यक्ति कभी भी हिंसा में विश्वास नहीं रखता है | आज की आवश्यकता है कि हम
सम्प्रदाय को धर्म से अलग समझकर केवल और केवल धर्म की राह पर चलें | धर्म का पालन करना
ही हमें इंसान बनाता है अन्यथा एक पशु में और हमारे में कोई अंतर ही नहीं है |
धर्म ही हमें पवित्र करता है | धर्म इसी जीवन का पुरुषार्थ है और धर्म पर चलते हुए
कर्म करते रहने से ही इस की उपलब्धि संभव है |
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ.प्रकाश काछवाल
||हरिः शरणम्||
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