पुरुषार्थ – 16
एक बार एक गुरु के पास शिष्य बनने आये
शिक्षार्थियों की लम्बी कतार लगी थी | वह शिक्षार्थ हेतु आने वाले प्रत्येक
शिक्षार्थी से एक ही प्रश्न पूछते थे – “अभी तक शास्त्र पढ़कर कितना ज्ञान प्राप्त
किया है, क्या और कितना सीखा है ?” प्रत्येक शिक्षार्थी उन्हें प्रत्युतर में कुछ
न कुछ बताता | जो यह कहता कि मैंने कुछ भी नहीं (Nothing) पढ़ा है, उसको वे कहते कि तुम्हे पढाना अधिक आसान (Easy) है और वे उसे अपना शिष्य बना लेते | अंत में एक विद्यार्थी आया, जिसने स्वयं
के द्वारा चारों वेद, सभी उपनिषद्, पुराण और न जाने क्या क्या पढ़ना बताया | वह
गर्व से गुरु की तरफ देख रहा था | गुरु ने उसे दो घडी इंतजार करने को कहा | दो घडी
उपरांत (After some time) उन्होंने उसे बुलाकर कहा कि तुम्हे
शिक्षा देना मेरे लिए अत्यंत कठिन (Very difficult) है, इसलिए
तुम वापिस जा सकते हो | विद्यार्थी ने कहा कि “आपने ऐसे ऐसे शिष्य बनाये है जिन्होंने
किसी भी छोटे मोटे ग्रन्थ तक का अध्ययन नहीं किया है | उन्हें कुछ भी ज्ञान नहीं
है, फिर भी आपने उनको कह दिया कि उन्हें शिक्षा देना सरल है | मैंने तो इतने अधिक
शास्त्रों का अध्ययन किया है, फिर मेरे को शिक्षा देना आपके लिए संभव कैसे नहीं
है?” गुरु ने बड़े ही शांत स्वभाव से उत्तर दिया - “वे सभी प्रारम्भ से ही
ज्ञानशून्य (Zero knowledge) है, अतः उनको शिक्षा देना सरल है
| तुमने ज्ञान के नाम पर अपने आपको इतना भर लिया है कि तुम उस ज्ञान के बोझ तले दबे
जा रहे हो | तुम्हे शिक्षित करने के लिए मुझे पहले तुम्हारा यह कथित ज्ञान निकाल
बाहर करना होगा, जो कि तुम्हारी इस कथित ज्ञान की उच्च अवस्था को देखते हुए इतना
सरल कार्य नहीं है | अभी तक तुमने जो भी ज्ञान प्राप्त किया है,उस समस्त ज्ञान को तुम्हें
भूलना होगा तभी तुम उस पूर्व शिष्य की तरह हो पाओगे | ज्ञान शून्य होने के उपरांत ही
तुम्हे कोई शिक्षा दी जा सकती है | यही कारण है कि मैंने यह कहा कि तुम्हे शिक्षित
करना मेरे लिए संभव नहीं है |”
ज्ञान, जो कि आपने विभिन्न
पुस्तकों से प्राप्त किया है, वह तब तक किसी भी उपयोग का नहीं है जब तक कि आप उस
ज्ञान को अपने जीवन में क्रियान्वत (Apply) न कर लें | ‘ज्ञानं भारः क्रिया विना‘ अर्थात जब तक ज्ञान को जीवन में
नहीं उतारा जाता तब तक वह ज्ञान एक बोझ के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है | तलवार को उपयोग
में नहीं लिया जाये तो वह भी म्यान में पड़े पड़े जंग खा जाती है और आवश्यकता पड़ने
पर उसका कोई उपयोग नहीं हो पाता | गुरु हमारे ज्ञान को एक नई धार देता है और उसे जीवन
में सदैव के लिए उपयोगी (Useful) बनाये रखने का उपाय बतलाता
है |
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ.प्रकाश काछवाल
||हरिः शरणम्||
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