Tuesday, October 2, 2018

पुरुषार्थ - 7


पुरुषार्थ – 7  
                आत्मा, परमात्मा और संसार आदि सब विस्तृत विवेचन के विषय हैं | अतः इतना सा अल्प विवेचन ही हमें पुरुषार्थ को समझने के लिए पर्याप्त है | जब उपरोक्त 24 तत्व (पाँच भौतिक तत्व,दस इन्द्रियां, पाँच इन्द्रियों के विषय, मन,बुद्धि,अहंकार और चैतन्यता प्रदान करने वाली आत्मा) सम्मिलित हो जाते हैं तब यह भौतिक शरीर कर्म सम्पादित करने के योग्य हो जाता है | सूक्ष्म शरीर (Subtle body) और कारण शरीर (Causal body) के स्थूल शरीर (Gross body) के साथ संयोग हो जाने से से ही मनुष्य के भौतिक शरीर ((Physical body) का सही रूप में सञ्चालन हो पायेगा | पुरुषार्थ के लिए मनुष्य को कर्म करने आवश्यक है | कर्म किये बिना पुरुषार्थ की प्राप्ति असंभव है | पुरुषार्थ में उपलब्धियां चार प्रकार की होती हैं, वे हैं – धर्म (Righteousness), अर्थ (Prosperity), काम (Pleasure) और मोक्ष (Enlightenment or Liberation) है | इन चारों पुरुषार्थ को प्राप्त करने के लिए पुरुषार्थ करने की ही आवश्यकता होती है | धर्म और मोक्ष के लिए वर्तमान जीवन में पुरुषार्थ करना आवश्यक है जबकि अर्थ और काम की उपलब्धि मनुष्य को भाग्य अर्थात प्रारब्ध (Destiny) से होती है | प्रारब्ध या भाग्य पूर्व मनुष्य जन्म में किया गया पुरुषार्थ ही तो है | जो पुरुषार्थ शरीर के जीते जी प्राप्त नहीं हो सके, वे ही नए जन्म में प्रारब्ध, दैव या भाग्य बनकर आते हैं | अतः यह स्पष्ट है कि इस जगत में जो कुछ भी आप प्राप्त करना चाहते हैं, वे सब आपका पुरुषार्थ ही है, पुरुषार्थ के अतिरिक्त कुछ नहीं | प्रारब्ध, भाग्य या दैव कुछ भी नहीं है बल्कि पूर्व जन्म के पुरुषार्थ का केवल नाम परिवर्तन मात्र है |
       पूर्व जन्म के पुरुषार्थ, जो वर्तमान जीवन में प्राप्त होते हैं, वे हैं – अर्थ और काम तथा इसी जन्म में किये गए पुरुषार्थ इसी जीवन में प्राप्त किये जा सकते हैं, वे हैं – धर्म और मोक्ष | इस बात में किसी प्रकार का संशय नहीं होना चाहिए | जो मनुष्य यह सोचता है कि इस जन्म में कर्म करके पुरुषार्थ के रूप में काम और अर्थ को प्राप्त कर सकते हैं, तो वे बहुत बड़े भ्रम (illusion) में है | अगर ऐसा संभव होना होता तो फिर मनुष्य और अन्य प्राणियों में कोई अंतर ही नहीं रह जाता है | अन्य प्राणी भी तो पूर्व मानव जन्म के पुरुषार्थ को अपने  जीवन में प्राप्त करता है – काम और अर्थ के रूप में | परन्तु वह अपने इस जीवन में दो पुरुषार्थ - धर्म और मोक्ष को किसी भी प्रकार प्राप्त नहीं कर सकता | इन दोनों पुरुषार्थ को प्राप्त करने के लिए सर्वप्रथम तो उन्हें मानव रूप में जन्म लेना होगा अर्थात मनुष्य शरीर प्राप्त करना ही होगा  | इस प्रकार यह स्पष्ट हो गया है कि दो पुरुषार्थ –अर्थ और काम तो पूर्व जन्म के फलीभूत पुरुषार्थ हैं और शेष दो पुरुषार्थ – धर्म और मोक्ष वर्तमान जीवन में किये जा रहे प्रयास से ही उपलब्ध हो सकते हैं | साथ ही साथ यह भी स्पष्ट हो जाता है कि पुनर्जन्म (Rebirth) का एक मात्र कारण अर्थ और काम को प्राप्त करने की इच्छा ही है |
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ.प्रकाश काछवाल
||हरिः शरणम्||

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