Thursday, October 4, 2018

पुरुषार्थ - 9


पुरुषार्थ – 9
               जैसा कि पहले बताया जा चूका है कि पूर्व जन्म (Past life) के पौरुष से अर्थ और काम पुरुषार्थ की उपलब्धि होती है और वर्तमान जीवन के पौरुष से धर्म और मोक्ष पुरुषार्थ की | इसका अर्थ यह हुआ कि धर्माचरण एवं मुक्ति के विषय मे इस वर्तमान जन्म (Present life) का पुरुषार्थ बलवान (Powerful) है और अर्थ एवं काम के विषय में पूर्व जन्म (past life) में फल प्राप्ति के लिए किया गया पुरुषार्थ | पूर्व मानव जीवन में किये गया पुरुषार्थ इस जन्म में प्रारब्ध या भाग्य अथवा दैव (Destiny) कहलाता है और काम तथा अर्थ के सम्बन्ध में वह पौरुष प्रबल है | शास्त्र सम्मत जो भी कर्म करते हुए अपनी मर्यादा (Nobility) का पालन करता हैं, उस मनुष्य को अपनी समस्त अभीष्ट (Desirable) वस्तुएं उसी प्रकार प्राप्त होती है, जैसे सागर में गोता लगाने वाले को रत्न (Jewel)| मनुष्य की अपने जीवन में दो ही तो अभिलाषाएं (Ambitions) होती है – सुख की प्राप्ति (Getting pleasure) और दुःख की निवृति (Free from sorrow) | इन दो के लिए जो वह पौरुष करता है, वह अगर शास्त्र अनुकूल हो तो फिर परम पुरुषार्थ की प्राप्ति स्वतः ही हो जाती है | आत्म कल्याण (well being) के लिए अगर इस परम पुरुषार्थ का आश्रय लिया जाये तो वह अवश्य ही दैव या भाग्य को जीत लेता है | अतः यह स्पष्ट हो जाता है कि अभीष्ट की उपलब्धि न होने पर बैठ कर केवल दैव या भाग्य को कोसते रहना अनुचित है | इसके स्थान पर मर्यादा का पालन करते हुए, धैर्यशील बनकर शास्त्र सम्मत कर्म करने चाहिए जिससे पूर्व जन्म के पौरुष (भाग्य) को जीता जा सके |
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ.प्रकाश काछवाल
||हरिः शरणम्||

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