Friday, October 5, 2018

पुरुषार्थ - 10


पुरुषार्थ-10
शुभ-पुरुषार्थ कैसे किये जाये ?
              प्रत्येक मनुष्य के लिए अपने जीवन में कर्म करने आवश्यक है | अगर वह अपने वर्तमान जीवन में कर्म नहीं भी करना चाहता तो उसे पूर्वजन्म में किये गए कर्मों के फलस्वरुप प्राप्त हुए प्रारब्ध,भाग्य या दैव के कारण मिलने वाले फलों को भोगने के लिए कर्म करने आवश्यक हो जाते हैं, जिस प्रकार कि संसार के अन्य प्राणी कर्म करते हैं | केवल मनुष्य ही क्यों, संसार के समस्त जीव प्रारब्ध स्वरुप मिलने वाले कर्मफलों को प्राप्त करने के लिए वर्तमान जीवन में कर्म करने को विवश (Compel) होते हैं | एक मात्र पुरुषार्थ से सिद्ध होने वाला जो अवश्यम्भावी (Sure) फल है, उसी को हम लोग दैव या प्रारब्ध कहते हैं | अतः जब दैव के वशीभूत (According to destiny) होकर कुछ कर्म इच्छा न होते हुए भी करने आवश्यक हो जाते हैं तो फिर क्यों न इस जन्म में अपनी इच्छा से केवल ऐसे कर्म ही किये जाये जो अभीष्ट (Desirable) की प्राप्ति में सहायक हों | जीव के मन में जैसी इच्छा या वासना होती है, वह शीघ्र ही वैसे कर्म करना प्रारम्भ कर देता है | मन में कामना (Wish) कोई और हो और वह कर्म किसी अन्य (Other) प्रकार का करे, यह संभव (Possible) ही नहीं है | अशुभ कर्म से पाप फल मिलेंगे और शुभ कर्म से पुण्य फल | अतः सर्वप्रथम अशुभ वासना को त्यागकर शुभ वासना से युक्त होना आवश्यक है |  शुभ कर्म या शुभ पुरुषार्थ से अभीष्ट की प्राप्ति होती है |
                   मनुष्य ही एक मात्र ऐसा प्राणी है, जिसको परमात्मा ने स्वतन्त्र सत्ता दी है | इस स्वतन्त्र सत्ता का यह अर्थ नहीं है कि वह अपना जीवन अमर्यादित ढंग से जीने लगे | आपको स्वतंत्रता मिली है, परमात्मा तक पहुँचने के लिए कर्म करने के लिए, आत्म-बोध (Realization) को उपलब्ध होने के लिए | पुरुषार्थ का वास्तविक अर्थ भी यही है कि हम परमात्मा को प्राप्त हों, हमें आत्मज्ञान हो जाये | आपको अपने जीवन का सदुपयोग करना चाहिए, दुरूपयोग नहीं | चाकू से सब्जी काटी जा सकती है और गला भी | आपको क्या करना चाहिए, यह सब आपके विवेक (conscience) पर निर्भर करता है | इसीलिए परमात्मा ने आपको कर्म करने की स्वतंत्रता के साथ साथ विवेक भी दिया है | आप विवेक का उपयोग करने के स्थान पर इसका दुरूपयोग करने लगेंगे तो परमात्मा आपसे आपकी स्वतन्त्र सत्ता छीन लेंगे और परतंत्र कर निम्न योनियों (Lower species) में डाल देंगे जिनमें आपको कई जन्मों तक भटकना पड़ेगा | प्रातः स्मरणीय ब्रह्मलीन स्वामी रामसुखदासजी महाराज इनको कूकर-शूकर (dogs and pigs) योनियों में भटकना कहा करते थे |
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ.प्रकाश काछवाल
||हरिः शरणम्||

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