पुरुषार्थ -3
पुरुषार्थ की उपलब्धियां / पुरुषार्थ
के प्रकार –
जिस
अभीष्ट को प्राप्त करने के लिए पुरुषार्थ किया जाता है उस पुरुषार्थ के परिणाम को भी
पुरुषार्थ ही कहा जाता है | पुरुषार्थ के लिए व्यक्ति को कर्म करने आवश्यक होते
हैं | कर्म के कारण प्राप्त फल को अर्थात इन पुरुषार्थों की उपलब्धियों को इस
पुरुषार्थ के पदार्थ भी कहा गया है | कर्म फल के रूप में उपलब्ध पुरुषार्थ अर्थात पदार्थ
चार प्रकार के होते हैं | यथा - धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष | गोस्वामी तुलसीदासजी
ने इनको स्पष्ट करते हुए रामचरितमानस में लिखा भी है-
“चारि पदारथ करतल ताकें | प्रिय पितु मातु
प्राण सम जाकें ||”
अर्थात संसार में ये धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष नामक जो चार प्रकार के
पदार्थ हैं, वे उन व्यक्तियों की हथेली पर अर्थात उसे आसानी से उपलब्ध हो जाते
हैं,जो व्यक्ति अपनी माता-पिता के प्राणों को अपने ही प्राणों के समान प्रिय जानकर
उनकी सेवा करता हो |
इसी प्रकार श्रीरामचरितमानस में एक अन्य स्थान
पर गोस्वामीजी लिखते हैं-
“सकल पदार्थ है जग माहीं | कर्महीन
नर पावत नाहीं ||”
अर्थात इस संसार में सकल पदार्थ यानि उपयोगी पदार्थ उपलब्ध हैं परन्तु जो
मनुष्य कर्म नहीं करता है, जिस मनुष्य में पुरुषार्थ करने की भावना का आभाव है, उसे
वे पदार्थ कभी भी उपलब्ध नहीं हो सकते | यहाँ पर गोस्वामीजी इन्ही चार पदार्थों की
बात कह रहे हैं | इन चार पदार्थों का विस्तार से विवेचन हम आगे करेंगे | उस विवेचन
से पहले हमें यह जानना आवश्यक होगा कि यह भौतिक शरीर पुरुषार्थ करने के लिए कैसें
तैयार होता है ? इस शरीर की कार्यप्रणाली को जाने बिना पुरुषार्थ के बारे में,
इसके चारों पदार्थों के बारे में जानना कठिन होगा |
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ. प्रकाश काछवाल
||हरिः शरणम्||
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