एक लम्बी अवधि तक लेखन रुका हुआ था।पहले पारिवारिक परिस्थितियां लेखन के अनुकूल नहीं थी, फिर नई पुस्तक "कलश" के प्रकाशन और विमोचन का कार्य आ गया और अभी कुछ दिन सुजानगढ़ में आचार्यजी के सत्संग-प्रवचन कार्यक्रम में व्यस्त रहा।अब कुछ समय मिला है सोचने का कि किस विषय पर लिखूँ? वैसे एक दो विषयों पर एक लंबी अवधि से चिंतन मनन चल रहा था। भाई श्री अशोकजी शर्मा (B.O.B.) सुजानगढ़ ने कई दिनों, शायद कई महीनों पहले "पुरुषार्थ" विषय को स्पष्ट करने का आग्रह किया था।बड़ा ही महत्वपूर्ण विषय है यह।हम पुरुषार्थ तो करते हैं परंतु यह नहीं जानते कि किस पुरुषार्थ को प्राप्त करने के लिए किस प्रकार पुरुषार्थ किया जाना चाहिए? यह सबसे बड़ी और विकट समस्या है, हम सबके समक्ष।पुरुषार्थ का फल भी पुरुषार्थ है और वह भी दो प्रकार के हैं जो एक जीवन में नहीं बल्कि दो जीवन में मिलने सम्भव होते है।केवल एक जीवन में ही प्राप्त करने हों तो धर्म और मोक्ष के लिए पुरुषार्थ करना होगा और अगर भावी जन्मों में प्राप्त करने हों तो अर्थ और काम के लिए पुरुषार्थ करने होंगे।अर्थ और काम के लिए किए जानेवाले कर्म, प्रारब्ध यानि भाग्य का निर्माण करते है, जिनको भावी जीवन में ही मिलना होता है।वर्तमान मनुष्य जीवन में ही पुरुषार्थ का फल पाना हो तो केवल धर्म और मोक्ष के लिए कर्म करें।बड़ा ही जटिल विषय है "पुरुषार्थ"।भाई अशोकजी के आग्रह पर इस विषय को स्पष्ट करने का प्रयास करता हूँ।कोई त्रुटि हो तो ध्यान आकर्षित करें क्योंकि कोई भी व्यक्ति शत प्रतिशत किसी कार्य में निपुण नहीं होता। कल से नित्य प्रतिदिन आपसे भेंट करेंगे,"पुरुषार्थ" के साथ।
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।। हरि:शरणम्।।
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
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