Wednesday, September 26, 2018

पुरुषार्थ-1

पुरुषार्थ —1
            पुरुषार्थ-एक छोटा सा मात्र चार अक्षरों से मिलकर बना शब्द परन्तु है बड़ा गूढ़ | पुरुषार्थ, एक संस्कृत शब्द है,जो दो शब्दों के योग से बना है - पुरुष+अर्थ = पुरुषार्थ | अतः इस शब्द का तात्पर्य हुआ – पुरुष होने का मंतव्य , पुरुष होने उद्देश्य | अंग्रेजी में इसको  कह सकते हैं- Purpose of human being or objects of human pursuit. पुरुष का अर्थ है पुर यानि शरीर में रहने वाला | इस  भौतिक शरीर को जो अधिग्रहित करता है वह है चेतन्य अर्थात आत्मा | मनुष्य मात्र शरीर ही नहीं है ,वह शरीर से अलग भी कुछ है ,उसी को हम जीवात्मा कहते है | यह भौतिक शरीर जीवात्मा के कारण ही चेतनता को उपलब्ध होता है | अतः इस छोटे से शब्द पुरुषार्थ का अर्थ हुआ चेतन्य होने का उद्देश्य | जीवात्मा जब सब प्राणियों के शरीर में उपस्थित रहता है,तब क्या उनके जीवन का भी कुछ उद्देश्य होता है ? हाँ, उद्देश्य अवश्य ही होता है | परन्तु मनुष्य को छोड़ अन्य प्राणियों के द्वारा केवल भोग प्राप्त करने का ही एक मात्र उद्देश्य रहता है | अन्य प्राणियों द्वारा केवल पूर्व मानव जन्म के कर्मों के भोग प्राप्त करने के योग्य कर्म ही संपन्न किये जा सकते हैं | उन्हें पूर्व मनुष्य जन्म का पुरुषार्थ ही अपने वर्तमान जीवन में प्रारब्ध अथवा भाग्य के रूप में उपलब्ध होता है | पूर्व मानव जन्म का पुरुषार्थ उन्हें मात्र भोग ही (अर्थ और काम के माध्यम से) उपलब्ध करवा सकता है ,परन्तु धर्म और मोक्ष नहीं | वर्तमान मनुष्य जीवन में भी किसी न किसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए विभिन्न प्रकार के कर्म करने की आवश्यकता होती है, उसी को पुरुषार्थ कहा जाता है | यही कारण है कि मनुष्य योनी को कर्म-योनि और मनुष्य के अतिरिक्त अन्य सभी योनियों को भोग योनियाँ कहा जाता है |
क्रमशः 
प्रस्तुति – डॉ.प्रकाश काछवाल 
|| हरिः शरणम् ||

No comments:

Post a Comment