अविरल जीवन (Life is continuous)-15
मोक्ष की सत्यता को स्वीकार करने वालों के लिए जीवन कभी भी समाप्त नहीं होता | वे कहते हैं कि परमात्मा और जीवन में कोई भेद है ही नहीं | परमात्मा अक्षर है तो जीवन भी अविरल है | परमात्मा का अनुभव करने के लिए जीवन चाहिए क्योंकि जीवन का होना ही परमात्मा के कारण है।परमात्मा के बिना जीवन होना असंभव है।शरीर के बाद शरीर और फिर एक नया शरीर और अंत में मानव शरीर | मानव शरीर से ही व्यक्ति मुक्ति की और बढ सकता है, परमात्मा के साथ एकाकार हो सकता है | यही मोक्ष है | इस परमात्मिक अवस्था को प्राप्त हुए जीवन को ‘परम जीवन’ कहा गया है | यह परम जीवन ही साधारण जीवन बनकर एक शरीर के जन्म तक सीमित हो जाता है, यही परम जीवन विभिन्न शरीरों की यात्रा करते हुए महाजीवन बन जाता है और समस्त शरीरों से ऊपर उठकर परम जीवन की ऊंचाई को छू लेता है | परम जीवन ही जीवन के अविरल होने की पुष्टि करता है |
सिकंदर विश्व विजय पर निकला हुआ था उस अवधि में वह भारत भी आया था | जब यहाँ से खूब माल बटोर कर वापिस लौटने को उद्यत हुआ तो उसे अपनी मां द्वारा कही गई एक बात स्मरण हो आयी | जब वह विश्व विजय करने के लिए घर से निकला तो मां से पूछा था कि-‘मां, मैं सम्पूर्ण विश्व को जीत लेने के लिए पूरब की ओर जा रहा हूँ | बताओ, लौटते हुए तुम्हारे लिए वहां से क्या उपहार लेकर आऊं ?’ उसकी मां ने पूछा-‘बेटा, क्या तुम विश्व विजय के पूरब के अभियान में भारत भी जाओगे ?” सिकंदर ने उत्तर दिया-‘हाँ मां, वहां तो मैं अवश्य जाऊंगा | समस्त संसार में वही तो एक मात्र सोने की चिड़िया है |’ मां ने कहा-‘तो बेटा सुनो, वहां से एक साधु को अवश्य साथ ले आना | मैंने सुना है कि वहां के साधु बड़े ज्ञानी होते हैं | मुझे एक भारतीय साधु को उपहार में पाकर बड़ी ख़ुशी होगी | तुम मेरे लिए इतना काम अवश्य करना | हाँ, एक बात का ध्यान रखना, सच्चा साधु मिले तो उससे ससम्मान बात करना , उसे अपनी वीरता का अभिमान न दिखाना ।'
भारत से लौटते हुए अंतिम समय में सिकंदर को जब यह बात याद आई तो वह किसी एक सच्चे साधु की तलाश में जंगल दर जंगल भटकने लगा | अंततः एक दिन उसका मिलन एक सच्चे साधु से हो ही गया |
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ. प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
मोक्ष की सत्यता को स्वीकार करने वालों के लिए जीवन कभी भी समाप्त नहीं होता | वे कहते हैं कि परमात्मा और जीवन में कोई भेद है ही नहीं | परमात्मा अक्षर है तो जीवन भी अविरल है | परमात्मा का अनुभव करने के लिए जीवन चाहिए क्योंकि जीवन का होना ही परमात्मा के कारण है।परमात्मा के बिना जीवन होना असंभव है।शरीर के बाद शरीर और फिर एक नया शरीर और अंत में मानव शरीर | मानव शरीर से ही व्यक्ति मुक्ति की और बढ सकता है, परमात्मा के साथ एकाकार हो सकता है | यही मोक्ष है | इस परमात्मिक अवस्था को प्राप्त हुए जीवन को ‘परम जीवन’ कहा गया है | यह परम जीवन ही साधारण जीवन बनकर एक शरीर के जन्म तक सीमित हो जाता है, यही परम जीवन विभिन्न शरीरों की यात्रा करते हुए महाजीवन बन जाता है और समस्त शरीरों से ऊपर उठकर परम जीवन की ऊंचाई को छू लेता है | परम जीवन ही जीवन के अविरल होने की पुष्टि करता है |
सिकंदर विश्व विजय पर निकला हुआ था उस अवधि में वह भारत भी आया था | जब यहाँ से खूब माल बटोर कर वापिस लौटने को उद्यत हुआ तो उसे अपनी मां द्वारा कही गई एक बात स्मरण हो आयी | जब वह विश्व विजय करने के लिए घर से निकला तो मां से पूछा था कि-‘मां, मैं सम्पूर्ण विश्व को जीत लेने के लिए पूरब की ओर जा रहा हूँ | बताओ, लौटते हुए तुम्हारे लिए वहां से क्या उपहार लेकर आऊं ?’ उसकी मां ने पूछा-‘बेटा, क्या तुम विश्व विजय के पूरब के अभियान में भारत भी जाओगे ?” सिकंदर ने उत्तर दिया-‘हाँ मां, वहां तो मैं अवश्य जाऊंगा | समस्त संसार में वही तो एक मात्र सोने की चिड़िया है |’ मां ने कहा-‘तो बेटा सुनो, वहां से एक साधु को अवश्य साथ ले आना | मैंने सुना है कि वहां के साधु बड़े ज्ञानी होते हैं | मुझे एक भारतीय साधु को उपहार में पाकर बड़ी ख़ुशी होगी | तुम मेरे लिए इतना काम अवश्य करना | हाँ, एक बात का ध्यान रखना, सच्चा साधु मिले तो उससे ससम्मान बात करना , उसे अपनी वीरता का अभिमान न दिखाना ।'
भारत से लौटते हुए अंतिम समय में सिकंदर को जब यह बात याद आई तो वह किसी एक सच्चे साधु की तलाश में जंगल दर जंगल भटकने लगा | अंततः एक दिन उसका मिलन एक सच्चे साधु से हो ही गया |
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ. प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
लगता है आपने शायद सुकरात सिकंदर की जगह लिख दिया श्रीमान
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Deleteभूलवश त्रुटि रह गई थी, सुधार दी गई है।ध्यानाकर्षण के लिये आपका आभार।हरि:शरणम्।
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