अविरल जीवन (Life is continuous)-16
मां के निर्देशानुसार साधु को देखते ही सिकंदर ने घोड़े से उतर कर साधु को सादर प्रणाम किया | साधु भूमि पर बैठा हुआ था | उसने सिकंदर को पूछा-‘कहो योद्धा, यहाँ कैसे आना हुआ ?’
“आपको मेरे साथ यूनान चलना होगा | मेरी मां आपसे मिलना चाहती है |”सिकंदर बोला।
‘हम अपनी मर्जी के मालिक हैं, हम कहीं आते-जाते नहीं हैं |’साधु ने उत्तर दिया।
“मेरी मां का आदेश मेरे लिए सर्वोपरि है, मैं आपको लेकर ही जाऊंगा |”सिकंदर कुछ क्रोधित होकर बोला।
‘कोई जाना चाहेगा, तब लेकर जाओगे न | मैं जाना ही नहीं चाहता | मैं अब ठहर चूका हूँ |’साधु ने निर्विकार भाव से सिकंदर को कहा।
“मैंने आज तक किसी के मुंह से "ना" नहीं सुनी है | सिकंदर जो चाहता है, प्राप्त करके ही रहता है | उठो और चलो मेरे साथ |” यह कहते हुए सिकंदर ने अपनी म्यान से तलवार निकाल ली |
‘तलवार को वापिस म्यान में रख लो योद्धा |’ साधु भयमुक्त होकर सिकंदर से कह रहा है, ‘हम साधु लोग मरने से नहीं डरते |’
“ मेरे साथ नहीं चलोगे तो यह तलवार देख रहे हो न, एक ही वार में तुम्हारा सिर धड़ से अलग होकर जमीन पर गिर जायेगा |”
‘किसको मरने का भय दिखला रहे हो, सिकंदर ? मैं शरीर हूँ ही नहीं और न ही यह शरीर मेरा है | जिस प्रकार तुम मेरे सिर को जमीन पर गिरते देखोगे, वैसे ही उसे गिरता हुआ मैं भी देखूंगा |'
सिकंदर स्तब्ध रह गया, साधु का यह उत्तर सुनकर।आज उसको एक साधारण से साधु ने निरुत्तर कर दिया। आज सिकंदर जीवन में प्रथम बार एक ऐसा व्यक्ति देख रहा था, जो मरने से बिल्कुल भी डर नहीं रह था। ऐसे भयमुक्त व्यक्ति को अपने समक्ष बैठा देखकर सिकंदर अचम्भित रह गया। उसने हिम्मत कर साधु से प्रश्न किया-"साक्षात मृत्यु को सामने खड़ा देखकर भी भयभीत नहीं होने वाले हे महापुरुष!आप कौन हैं?"
साधु ने शांत भाव से सिकंदर के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा -"मैं अक्षर आत्मा हूँ,शरीर नहीं हूँ। शरीर मरता है आत्मा अर्थात मैं नहीं मरता।मैं अमर हूँ और केवल मैं ही नहीं तुम भी तो वही हो, जो मैं हूँ – तत्वमसि | हम सब वही हैं।"
'तत्वमसि' अर्थात ‘तत् त्वं असि’ यानि तुम भी वही हो | ‘तुम और मैं’ एक ही हैं, जो मैं हूँ, वही तुम हो | फिर साधु और सिकंदर में अंतर ही कहां रह जाता है ? सिकंदर ही साधु है और साधु ही सिकंदर | शरीर अलग-अलग हो सकते हैं परन्तु उनमें प्रवाहित हो रहा जीवन एक ही है | साधु की निर्भीक वाणी सुनकर सिकंदर अचम्भित रह गया।एक साधारण से दिखने वाले साधु ने आज उसे जीवन का परम ज्ञान दे दिया। उसे लगा कि मां सत्य ही कह रही थी। साधु के वचन सुनकर सिकंदर का हृदय परिवर्तित हो गया।आज यूनान का महान योद्धा सिकंदर भी साधु हो गया | अब उसे किसी अन्य साधु को अपनी मां के पास ले जाने की कोई आवश्यकता नहीं रही |
सिकंदर इससे आगे साधु से कुछ भी नहीं बोल सका | उसने अपनी तलवार वापिस म्यान में रख ली | उसने साधु को प्रणाम किया और नतमस्तक होकर घोड़े पर सवार हो वहां से निकल गया | पहली बार आज जीवन में सिकंदर एक साधु से परास्त हो गया | विश्व विजय की कामना रखने वाला एक योद्धा हथियार विहीन एक साधारण से दिखने वाले व्यक्ति के सामने नत मस्तक हो गया | ऐसी है, हमारी संस्कृति । जहां व्यक्ति सभी स्थानों पर और सब जीवों में एक परमात्मा के दर्शन करता है। हम सबमें वही एक परमात्मा रम रहा है, जीवन के रूप में अभिव्यक्त होकर।
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ. प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
मां के निर्देशानुसार साधु को देखते ही सिकंदर ने घोड़े से उतर कर साधु को सादर प्रणाम किया | साधु भूमि पर बैठा हुआ था | उसने सिकंदर को पूछा-‘कहो योद्धा, यहाँ कैसे आना हुआ ?’
“आपको मेरे साथ यूनान चलना होगा | मेरी मां आपसे मिलना चाहती है |”सिकंदर बोला।
‘हम अपनी मर्जी के मालिक हैं, हम कहीं आते-जाते नहीं हैं |’साधु ने उत्तर दिया।
“मेरी मां का आदेश मेरे लिए सर्वोपरि है, मैं आपको लेकर ही जाऊंगा |”सिकंदर कुछ क्रोधित होकर बोला।
‘कोई जाना चाहेगा, तब लेकर जाओगे न | मैं जाना ही नहीं चाहता | मैं अब ठहर चूका हूँ |’साधु ने निर्विकार भाव से सिकंदर को कहा।
“मैंने आज तक किसी के मुंह से "ना" नहीं सुनी है | सिकंदर जो चाहता है, प्राप्त करके ही रहता है | उठो और चलो मेरे साथ |” यह कहते हुए सिकंदर ने अपनी म्यान से तलवार निकाल ली |
‘तलवार को वापिस म्यान में रख लो योद्धा |’ साधु भयमुक्त होकर सिकंदर से कह रहा है, ‘हम साधु लोग मरने से नहीं डरते |’
“ मेरे साथ नहीं चलोगे तो यह तलवार देख रहे हो न, एक ही वार में तुम्हारा सिर धड़ से अलग होकर जमीन पर गिर जायेगा |”
‘किसको मरने का भय दिखला रहे हो, सिकंदर ? मैं शरीर हूँ ही नहीं और न ही यह शरीर मेरा है | जिस प्रकार तुम मेरे सिर को जमीन पर गिरते देखोगे, वैसे ही उसे गिरता हुआ मैं भी देखूंगा |'
सिकंदर स्तब्ध रह गया, साधु का यह उत्तर सुनकर।आज उसको एक साधारण से साधु ने निरुत्तर कर दिया। आज सिकंदर जीवन में प्रथम बार एक ऐसा व्यक्ति देख रहा था, जो मरने से बिल्कुल भी डर नहीं रह था। ऐसे भयमुक्त व्यक्ति को अपने समक्ष बैठा देखकर सिकंदर अचम्भित रह गया। उसने हिम्मत कर साधु से प्रश्न किया-"साक्षात मृत्यु को सामने खड़ा देखकर भी भयभीत नहीं होने वाले हे महापुरुष!आप कौन हैं?"
साधु ने शांत भाव से सिकंदर के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा -"मैं अक्षर आत्मा हूँ,शरीर नहीं हूँ। शरीर मरता है आत्मा अर्थात मैं नहीं मरता।मैं अमर हूँ और केवल मैं ही नहीं तुम भी तो वही हो, जो मैं हूँ – तत्वमसि | हम सब वही हैं।"
'तत्वमसि' अर्थात ‘तत् त्वं असि’ यानि तुम भी वही हो | ‘तुम और मैं’ एक ही हैं, जो मैं हूँ, वही तुम हो | फिर साधु और सिकंदर में अंतर ही कहां रह जाता है ? सिकंदर ही साधु है और साधु ही सिकंदर | शरीर अलग-अलग हो सकते हैं परन्तु उनमें प्रवाहित हो रहा जीवन एक ही है | साधु की निर्भीक वाणी सुनकर सिकंदर अचम्भित रह गया।एक साधारण से दिखने वाले साधु ने आज उसे जीवन का परम ज्ञान दे दिया। उसे लगा कि मां सत्य ही कह रही थी। साधु के वचन सुनकर सिकंदर का हृदय परिवर्तित हो गया।आज यूनान का महान योद्धा सिकंदर भी साधु हो गया | अब उसे किसी अन्य साधु को अपनी मां के पास ले जाने की कोई आवश्यकता नहीं रही |
सिकंदर इससे आगे साधु से कुछ भी नहीं बोल सका | उसने अपनी तलवार वापिस म्यान में रख ली | उसने साधु को प्रणाम किया और नतमस्तक होकर घोड़े पर सवार हो वहां से निकल गया | पहली बार आज जीवन में सिकंदर एक साधु से परास्त हो गया | विश्व विजय की कामना रखने वाला एक योद्धा हथियार विहीन एक साधारण से दिखने वाले व्यक्ति के सामने नत मस्तक हो गया | ऐसी है, हमारी संस्कृति । जहां व्यक्ति सभी स्थानों पर और सब जीवों में एक परमात्मा के दर्शन करता है। हम सबमें वही एक परमात्मा रम रहा है, जीवन के रूप में अभिव्यक्त होकर।
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ. प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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