कबीर कहिन-
सोलहवीं शताब्दी में एक महान संत हुए थे-कबीर।वे साधारण रूप से बात करते हुए ऐसी बात कह जाते थे कि वह सुनने वाले के भीतर तक तीर की तरह पहुंच जाती थी।उनके जीवन की ऐसी ही एक साधारण सी घटना है ।इस घटना में जो बात कबीर कहते हैं, वह बात सुनने वालों को निःशब्द कर देता है अर्थात उस कथनकी प्रतिक्रिया में सुनने वाले के मुँह से तत्काल एक शब्द तक नहीं निकल सका। आपही पढ़िए, उस साधारण घटना के बारे में।
कबीर के घर के पास इधर एक मस्जिद थी और उधर एक मंदिर।कबीर के पास एक बकरी थी।प्रतिदिन कबीर की वह बकरी घूमते घूमते मंदिर मस्जिद दोनों के अंदर बाहर आती जाती रहती थी। स्वाभाविक है, वह उन स्थलों को गंदा भी कर देती होगी।एक दिन मस्जिद का मौलवी और मंदिर का पुजारी एक साथ बकरी की शिकायत लेकर कबीर के पास पहुंचे और उनको अपने अपने पवित्र स्थान को बकरी द्वारा गंदा कर देने का उलाहना दिया।
कबीर ने उन दोनों को जो प्रत्युत्तर में जो बात कही उसको सुनकर दोनों की बोलती बंद हो गई। कबीर ने कहा-" क्षमा कीजिये साहब,जानवर है तभी तो कभी इधर कभी उधर घुस जाती है। नहीं तो मुझे देखो, मैँ कभी इधर उधर घुसा हूँ क्या ?"
बार बार पढ़ें, कबीर के कहे को और अर्थ समझने का प्रयास कीजिए।आपको कुछ नया और अलग ही अनुभव होगा।
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।। हरि:शरणम् ।।
सोलहवीं शताब्दी में एक महान संत हुए थे-कबीर।वे साधारण रूप से बात करते हुए ऐसी बात कह जाते थे कि वह सुनने वाले के भीतर तक तीर की तरह पहुंच जाती थी।उनके जीवन की ऐसी ही एक साधारण सी घटना है ।इस घटना में जो बात कबीर कहते हैं, वह बात सुनने वालों को निःशब्द कर देता है अर्थात उस कथनकी प्रतिक्रिया में सुनने वाले के मुँह से तत्काल एक शब्द तक नहीं निकल सका। आपही पढ़िए, उस साधारण घटना के बारे में।
कबीर के घर के पास इधर एक मस्जिद थी और उधर एक मंदिर।कबीर के पास एक बकरी थी।प्रतिदिन कबीर की वह बकरी घूमते घूमते मंदिर मस्जिद दोनों के अंदर बाहर आती जाती रहती थी। स्वाभाविक है, वह उन स्थलों को गंदा भी कर देती होगी।एक दिन मस्जिद का मौलवी और मंदिर का पुजारी एक साथ बकरी की शिकायत लेकर कबीर के पास पहुंचे और उनको अपने अपने पवित्र स्थान को बकरी द्वारा गंदा कर देने का उलाहना दिया।
कबीर ने उन दोनों को जो प्रत्युत्तर में जो बात कही उसको सुनकर दोनों की बोलती बंद हो गई। कबीर ने कहा-" क्षमा कीजिये साहब,जानवर है तभी तो कभी इधर कभी उधर घुस जाती है। नहीं तो मुझे देखो, मैँ कभी इधर उधर घुसा हूँ क्या ?"
बार बार पढ़ें, कबीर के कहे को और अर्थ समझने का प्रयास कीजिए।आपको कुछ नया और अलग ही अनुभव होगा।
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।। हरि:शरणम् ।।
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