संवेदना-
कल हमने वेदना पर बात की। जो अज्ञान से उपजे,वह वेदना।अतः अज्ञान की ओर नहीं, ज्ञान की ओर चलें-तमसो मा ज्योतिर्गमय। जिसको वेदना है अर्थात जो पीड़ा भुगत रहा है, उसे ज्ञान होना तत्काल ही संभव नहीं है, ऐसे में उसे ज्ञान की ओर कौन और कैसे ले जाए?उसके लिए यह कार्य करते हैं,निकट संबंधी,मित्र और गुरु।वेदना को कम करते करते ही मिटाया जा सकता है, तुरंत नहीं क्योंकि अज्ञान की जड़ें इतनी अधिक गहराई तक होती है कि ज्ञान का प्रकाश उस तक तत्काल नहीं पहुंच सकता।जिस प्रकार जहरीले पौधे को जड़ सहित उखाड़ कर सूर्य का प्रकाश दिखा दिया जाए तो वह नष्ट हो जाता है उसी प्रकार अज्ञान को मूल सहित नष्ट करने के लिए ज्ञान का प्रकाश आवश्यक है।
मित्र, निकट सम्बन्धी और गुरु को वेदनाग्रस्त व्यक्ति के पास जाकर संवेदना प्रकट करते हैं। उसका उद्देश्य यही होता जिससे उस से मानसिक सम्बल मिल सके।संवेदना का अर्थ है, सम+वेदना अर्थात समान वेदना। संवेदना प्रकट करने का अर्थ है, सामने वाले की वेदना को अपनी वेदना समझना।संवेदना केवल वेदना को समझना ही नहीं है क्योंकि ऐसा समझना आपके अज्ञान को ही प्रदर्शित करना है।संवेदना प्रकट करने का मंतव्य है, वेदना ग्रस्त व्यक्ति को वेदना से बाहर लाना।इसके लिए उसे ज्ञान का प्रकाश देना आवश्यक होता है जिसके लिए पर्याप्त धैर्य और समय की आवश्यकता होती है।ज्ञान देने के लिए आवश्यक है कि उसकी वेदना को हम अपनी वेदना समझे और फिर आगे बढ़ते हुए उसे जीवन की वास्तविकता का ज्ञान कराएं । गुरु भी अपने शिष्य को ज्ञान देते हुए यही तो करता है। गुरु सर्वप्रथम शिष्य के अज्ञान के स्तर पर जाकर उसको जांचता परखता है और फिर स्वयं उस स्तर से आगे बढ़कर ज्ञान प्रदान करने की यात्रा प्रारम्भ करता है। संवेदना प्रकट कर वेदना मुक्त करने में यही तरीका अपनाना पड़ता है परंतु आजकल संवेदना प्रकट करना मात्र औपचारिकता बन कर रह गया है। इसलिए संवेदना का सही अर्थ समझना आवश्यक है जिससे हम पीड़ित व्यक्ति को वेदना मुक्त कर सकें।
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
कल हमने वेदना पर बात की। जो अज्ञान से उपजे,वह वेदना।अतः अज्ञान की ओर नहीं, ज्ञान की ओर चलें-तमसो मा ज्योतिर्गमय। जिसको वेदना है अर्थात जो पीड़ा भुगत रहा है, उसे ज्ञान होना तत्काल ही संभव नहीं है, ऐसे में उसे ज्ञान की ओर कौन और कैसे ले जाए?उसके लिए यह कार्य करते हैं,निकट संबंधी,मित्र और गुरु।वेदना को कम करते करते ही मिटाया जा सकता है, तुरंत नहीं क्योंकि अज्ञान की जड़ें इतनी अधिक गहराई तक होती है कि ज्ञान का प्रकाश उस तक तत्काल नहीं पहुंच सकता।जिस प्रकार जहरीले पौधे को जड़ सहित उखाड़ कर सूर्य का प्रकाश दिखा दिया जाए तो वह नष्ट हो जाता है उसी प्रकार अज्ञान को मूल सहित नष्ट करने के लिए ज्ञान का प्रकाश आवश्यक है।
मित्र, निकट सम्बन्धी और गुरु को वेदनाग्रस्त व्यक्ति के पास जाकर संवेदना प्रकट करते हैं। उसका उद्देश्य यही होता जिससे उस से मानसिक सम्बल मिल सके।संवेदना का अर्थ है, सम+वेदना अर्थात समान वेदना। संवेदना प्रकट करने का अर्थ है, सामने वाले की वेदना को अपनी वेदना समझना।संवेदना केवल वेदना को समझना ही नहीं है क्योंकि ऐसा समझना आपके अज्ञान को ही प्रदर्शित करना है।संवेदना प्रकट करने का मंतव्य है, वेदना ग्रस्त व्यक्ति को वेदना से बाहर लाना।इसके लिए उसे ज्ञान का प्रकाश देना आवश्यक होता है जिसके लिए पर्याप्त धैर्य और समय की आवश्यकता होती है।ज्ञान देने के लिए आवश्यक है कि उसकी वेदना को हम अपनी वेदना समझे और फिर आगे बढ़ते हुए उसे जीवन की वास्तविकता का ज्ञान कराएं । गुरु भी अपने शिष्य को ज्ञान देते हुए यही तो करता है। गुरु सर्वप्रथम शिष्य के अज्ञान के स्तर पर जाकर उसको जांचता परखता है और फिर स्वयं उस स्तर से आगे बढ़कर ज्ञान प्रदान करने की यात्रा प्रारम्भ करता है। संवेदना प्रकट कर वेदना मुक्त करने में यही तरीका अपनाना पड़ता है परंतु आजकल संवेदना प्रकट करना मात्र औपचारिकता बन कर रह गया है। इसलिए संवेदना का सही अर्थ समझना आवश्यक है जिससे हम पीड़ित व्यक्ति को वेदना मुक्त कर सकें।
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
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