कुछ गंभीर प्रश्न--
चिन्तन अवश्य कीजियेगा.......
क्या हम बिल्डर्स, इंटीरियर डिजाइनर्स,केटरर्स और डेकोरेटर्स के लिए कमा रहे हैं ?
हम बड़े-बड़े क़ीमती मकानों और बेहद खर्चीली शादियों से किसे इम्प्रेस करना चाहते हैं ?
क्या आपको याद है कि, दो दिन पहले किसी की शादी पर आपने क्या खाया था ?
जीवन के प्रारंभिक वर्षों में, क्यों हम पशुओं की तरह काम में जुते रहते हैं ?
कितनी पीढ़ियों के,खान पान और लालन पालन की व्यवस्था करनी है हमें ?
हम में से अधिकाँश लोगों के दो अथवा तीन बच्चे हैं। बहुतों का तो सिर्फ एक ही बच्चा है। "हमारी जरूरत कितनी हैं और हम पाना कितना चाहते हैं"?
क्या हमारी अगली पीढ़ी कमाने में सक्षम नहीं है जो, हम उनके लिए ज्यादा से ज्यादा सेविंग कर देना चाहते हैं ?
हम कमाने के साथ साथ आनंद भी क्यों नहीं प्राप्त कर सकते ?
क्या आप अपनी मासिक आय का 5% अपने आनंद के लिए, अपनी ख़ुशी के लिए खर्च करते हैं ?
क्या हम प्रतिदिन स्वयं के आनंद के लिए कुछ समय निकाल नहीं सकते?
क्यों थोड़ा समय निकालकर हम उस परम पिता परमात्मा का आभार व्यक्त नहीं कर सकते जिसने हमें मनुष्य जीवन दिया है?
सामान्यतः सब प्रश्नों के जवाब नहीं में ही मिलते हैं। समय का अभाव है, प्रायः एक मात्र यही बहाना हम सबके पास है।
इससे पहले कि आप स्लिप डिस्क का शिकार हो जाएँ, इससे पहले कि कोलोस्ट्रोल आपके हार्ट को ब्लॉक कर दे,आनंद प्राप्ति के लिए कुछ समय निकालिए । हम किसी प्रॉपर्टी के मालिक नहीं होते, सिर्फ कुछ कागजातों, कुछ दस्तावेजों पर अस्थाई रूप से हमारा नाम लिखा होता है।
ईश्वर भी व्यंग्यात्मक रूप से हँसेगा जब कोई उसे कहेगा कि "मैं जमीन के इस टुकड़े का मालिक हूँ। "
किसी के बारे में, उसके शानदार कपड़े और बढ़िया कार देखकर, राय कायम मत कीजिए।धनवान होना कहीं से भी गलत नहीं है ,बल्कि......."सिर्फ धनवान होना गलत है"
आइए ज़िंदगी के सही उद्देश्य को पकड़ें, इससे पहले कि मृत्यु हमें अपने आगोश में ले ले...। मनुष्य का जीवन बार बार नहीं मिलना है। अपने जीवन का उद्देश्य जानें।परमात्मा को जानना है तो एक ही रास्ता है-स्वयं को जानना होगा।स्वयं को जानते ही जो आनंद की अनुभूति होगी, वह अरबों रुपयों के ढेर पर बैठकर, रत्न जड़ित स्वर्ण मुकुट पहनकर और आलीशान बंगले में भी रहने से नहीं होगी।परमात्मा सबको भोजन, कपड़ा और मकान देता है, आप तो व्यर्थ में ही इन सब को पाने के लिए चिंतित हैं। पाना है तो परमात्मा को पा लो, व्यर्थ की चीजों को पाकर भी उनको यहीं छोड़कर एक दिन चले जाना है।
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
चिन्तन अवश्य कीजियेगा.......
क्या हम बिल्डर्स, इंटीरियर डिजाइनर्स,केटरर्स और डेकोरेटर्स के लिए कमा रहे हैं ?
हम बड़े-बड़े क़ीमती मकानों और बेहद खर्चीली शादियों से किसे इम्प्रेस करना चाहते हैं ?
क्या आपको याद है कि, दो दिन पहले किसी की शादी पर आपने क्या खाया था ?
जीवन के प्रारंभिक वर्षों में, क्यों हम पशुओं की तरह काम में जुते रहते हैं ?
कितनी पीढ़ियों के,खान पान और लालन पालन की व्यवस्था करनी है हमें ?
हम में से अधिकाँश लोगों के दो अथवा तीन बच्चे हैं। बहुतों का तो सिर्फ एक ही बच्चा है। "हमारी जरूरत कितनी हैं और हम पाना कितना चाहते हैं"?
क्या हमारी अगली पीढ़ी कमाने में सक्षम नहीं है जो, हम उनके लिए ज्यादा से ज्यादा सेविंग कर देना चाहते हैं ?
हम कमाने के साथ साथ आनंद भी क्यों नहीं प्राप्त कर सकते ?
क्या आप अपनी मासिक आय का 5% अपने आनंद के लिए, अपनी ख़ुशी के लिए खर्च करते हैं ?
क्या हम प्रतिदिन स्वयं के आनंद के लिए कुछ समय निकाल नहीं सकते?
क्यों थोड़ा समय निकालकर हम उस परम पिता परमात्मा का आभार व्यक्त नहीं कर सकते जिसने हमें मनुष्य जीवन दिया है?
सामान्यतः सब प्रश्नों के जवाब नहीं में ही मिलते हैं। समय का अभाव है, प्रायः एक मात्र यही बहाना हम सबके पास है।
इससे पहले कि आप स्लिप डिस्क का शिकार हो जाएँ, इससे पहले कि कोलोस्ट्रोल आपके हार्ट को ब्लॉक कर दे,आनंद प्राप्ति के लिए कुछ समय निकालिए । हम किसी प्रॉपर्टी के मालिक नहीं होते, सिर्फ कुछ कागजातों, कुछ दस्तावेजों पर अस्थाई रूप से हमारा नाम लिखा होता है।
ईश्वर भी व्यंग्यात्मक रूप से हँसेगा जब कोई उसे कहेगा कि "मैं जमीन के इस टुकड़े का मालिक हूँ। "
किसी के बारे में, उसके शानदार कपड़े और बढ़िया कार देखकर, राय कायम मत कीजिए।धनवान होना कहीं से भी गलत नहीं है ,बल्कि......."सिर्फ धनवान होना गलत है"
आइए ज़िंदगी के सही उद्देश्य को पकड़ें, इससे पहले कि मृत्यु हमें अपने आगोश में ले ले...। मनुष्य का जीवन बार बार नहीं मिलना है। अपने जीवन का उद्देश्य जानें।परमात्मा को जानना है तो एक ही रास्ता है-स्वयं को जानना होगा।स्वयं को जानते ही जो आनंद की अनुभूति होगी, वह अरबों रुपयों के ढेर पर बैठकर, रत्न जड़ित स्वर्ण मुकुट पहनकर और आलीशान बंगले में भी रहने से नहीं होगी।परमात्मा सबको भोजन, कपड़ा और मकान देता है, आप तो व्यर्थ में ही इन सब को पाने के लिए चिंतित हैं। पाना है तो परमात्मा को पा लो, व्यर्थ की चीजों को पाकर भी उनको यहीं छोड़कर एक दिन चले जाना है।
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
No comments:
Post a Comment