अविरल जीवन (Life is continuous)-21
जीवन स्पंदन से ही अभिव्यक्त होता है | यह स्पंदन हमारे मन का है अथवा यूं कह सकते हैं कि स्पंदन ही मन है और मन ही महाजीवन का कारण है।पदार्थ से शरीर और फिर शरीर में स्पंदन से जीवन | यह एक साधारण जीवन है | एक शरीर के जन्म लेने से समाप्त होने तक उसमें स्पंदन होता है, वह एक साधारण जीवन है | इस शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर में जाकर स्पंदित होना महा जीवन है | स्थानांतरण मन का ही होता है, एक शरीर से दूसरे शरीर में।महा जीवन में कई शरीरों की विशाल श्रृंखला होती है | यह श्रृंखला अंतहीन होती है जो कि मनुष्य जीवन में किये गए कर्मों के अनुसार गतिमान बनी रहती है | महाजीवन से परम जीवन में तभी प्रवेश पाया जा सकता है जब मन पर नियंत्रण कर लिया जाये अर्थात जब हमारा मन अमन में परिवर्तित हो जाता है तब विभिन्न शरीरों में चल रहे महाजीवन से मुक्त होकर परम जीवन में प्रवेश पाया जा सकता है | हमारा उद्देश्य भी यही है, सा से चले और सा तक पहुँचना, मध्य में स्थित सभी रे, गा, मा, पा ,धा, नि का अतिक्रमण कर जाना | जीवन मिला था परम जीवन से और महाजीवन की यात्रा से होते हुए पुनः परम जीवन तक पहुँचाना अर्थात शरीरों में हो रहे स्पंदन से निकलकर मुक्त होकर स्पंदित होने तक | यही मोक्ष है और मुक्ति भी और परमात्मा की प्राप्ति भी |
कोई भी धर्म, संप्रदाय और व्यक्ति भले ही परमात्मा के अस्तित्व को स्वीकार करता हो अथवा नहीं परन्तु वह जीवन की अभिव्यक्ति को अस्वीकार कर ही नहीं सकता | हम इस को नाम कुछ भी दे सकते हैं, मुक्त स्पंदन कहो, निर्वाण की स्थिति कहो, मोक्ष कहो अथवा परम जीवन, कुछ भी फर्क नहीं पड़ने वाला | उस परम के अस्तित्व से इनकार नहीं किया जा सकता | वह परम जीवन हो, परम पद हो अथवा परमात्मा, किसी में भी कोई अंतर नहीं है |
इस प्रकार दो गर्भस्थ शिशुओं के मध्य हुए वार्तालाप के चिंतन से यह बात स्पष्ट होती है कि जीवन अविरल है और जब जीवन अविरल है तो फिर परमात्मा के अस्तित्व पर कोई प्रश्न उठ ही नहीं सकता | हमें “एक जीवन एक शरीर” का सिद्धांत स्वीकार्य नहीं है और न ही हो सकता है | हमारे ऋषि और मुनियों ने अपना मानव जीवन सत्य को जानने में लगा दिया और अंततः सत्य को जानकर ही रहे | हमें गर्व होना चाहिए कि हम ऐसे महापुरुषों की संतानें हैं | इसी के साथ यह अविरल जीवन विषय की श्रृंखला समाप्त कर रहा हूँ | आपका साथ बने रहने का आभार |
कल समापन कड़ी में सार संक्षेप
प्रस्तुति – डॉ. प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
जीवन स्पंदन से ही अभिव्यक्त होता है | यह स्पंदन हमारे मन का है अथवा यूं कह सकते हैं कि स्पंदन ही मन है और मन ही महाजीवन का कारण है।पदार्थ से शरीर और फिर शरीर में स्पंदन से जीवन | यह एक साधारण जीवन है | एक शरीर के जन्म लेने से समाप्त होने तक उसमें स्पंदन होता है, वह एक साधारण जीवन है | इस शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर में जाकर स्पंदित होना महा जीवन है | स्थानांतरण मन का ही होता है, एक शरीर से दूसरे शरीर में।महा जीवन में कई शरीरों की विशाल श्रृंखला होती है | यह श्रृंखला अंतहीन होती है जो कि मनुष्य जीवन में किये गए कर्मों के अनुसार गतिमान बनी रहती है | महाजीवन से परम जीवन में तभी प्रवेश पाया जा सकता है जब मन पर नियंत्रण कर लिया जाये अर्थात जब हमारा मन अमन में परिवर्तित हो जाता है तब विभिन्न शरीरों में चल रहे महाजीवन से मुक्त होकर परम जीवन में प्रवेश पाया जा सकता है | हमारा उद्देश्य भी यही है, सा से चले और सा तक पहुँचना, मध्य में स्थित सभी रे, गा, मा, पा ,धा, नि का अतिक्रमण कर जाना | जीवन मिला था परम जीवन से और महाजीवन की यात्रा से होते हुए पुनः परम जीवन तक पहुँचाना अर्थात शरीरों में हो रहे स्पंदन से निकलकर मुक्त होकर स्पंदित होने तक | यही मोक्ष है और मुक्ति भी और परमात्मा की प्राप्ति भी |
कोई भी धर्म, संप्रदाय और व्यक्ति भले ही परमात्मा के अस्तित्व को स्वीकार करता हो अथवा नहीं परन्तु वह जीवन की अभिव्यक्ति को अस्वीकार कर ही नहीं सकता | हम इस को नाम कुछ भी दे सकते हैं, मुक्त स्पंदन कहो, निर्वाण की स्थिति कहो, मोक्ष कहो अथवा परम जीवन, कुछ भी फर्क नहीं पड़ने वाला | उस परम के अस्तित्व से इनकार नहीं किया जा सकता | वह परम जीवन हो, परम पद हो अथवा परमात्मा, किसी में भी कोई अंतर नहीं है |
इस प्रकार दो गर्भस्थ शिशुओं के मध्य हुए वार्तालाप के चिंतन से यह बात स्पष्ट होती है कि जीवन अविरल है और जब जीवन अविरल है तो फिर परमात्मा के अस्तित्व पर कोई प्रश्न उठ ही नहीं सकता | हमें “एक जीवन एक शरीर” का सिद्धांत स्वीकार्य नहीं है और न ही हो सकता है | हमारे ऋषि और मुनियों ने अपना मानव जीवन सत्य को जानने में लगा दिया और अंततः सत्य को जानकर ही रहे | हमें गर्व होना चाहिए कि हम ऐसे महापुरुषों की संतानें हैं | इसी के साथ यह अविरल जीवन विषय की श्रृंखला समाप्त कर रहा हूँ | आपका साथ बने रहने का आभार |
कल समापन कड़ी में सार संक्षेप
प्रस्तुति – डॉ. प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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