पुनर्जन्म-1
पुनर्जन्म शब्द (पुनः+जन्म)में पुनः का अर्थ है फिर से और जन्म का अर्थ है, नए शरीर को प्राप्त कर इस संसार में जन्म लेना।इस संसार में भौतिक रूप से आने का अर्थात अव्यक्त से व्यक्त होने का केवल एक ही मार्ग है, वह है शरीर प्राप्त कर जन्म लेना। अतः पुनर्जन्म का अर्थ हुआ - पुराना जर्जर त्याग देने के उपरांत नये शरीर के साथ उसी भौतिक संसार में पुनरागमन।कहने का अर्थ है कि हम तो वही रहते हैं परन्तु हमारा शरीर बदल जाता है।
इस संसार में प्रत्येक प्राणी को अपना पुराना अथवा जर्जर हुआ शरीर त्यागना ही पड़ता है और नए शरीर की प्राप्ति होने तक अव्यक्त रूप से अंतरिक्ष में इंतज़ार करना पड़ता है।अन्य प्राणियों को तो देह त्याग के पश्चात ही दूसरा शरीर मिल जाता है परंतु मनुष्य के साथ ऐसा नहीं है।मनुष्य की देह त्याग के बाद तीन में से किसी एक प्रकार का व्यवहार हो सकता है।प्रथम मोक्ष अर्थात आवागमन से मुक्ति,द्वितीय किसी नए शरीर का मिलना और पुनः संसार में व्यक्त हो जाना और तीसरा अव्यक्त रहना।अव्यक्त रहने में भी तीन अवस्थाएं होती हैं-स्वर्ग आदि उच्च लोकों में चले जाना , प्रेत योनि भोगना अथवा पितृ योनि में रहना।तीनों ही अवस्थाओं में कुछ समय बिताकर पुनः नया शरीर प्राप्त कर संसार में भौतिक रूप से व्यक्त होना होता है।
शारीरिक मृत्यु के बाद होने वाले प्रथम व तृतीय इन दो व्यवहारों के बारे में मेरा कोई व्यक्तिगत अनुभव नहीं है, पढ़ा अवश्य है।अतः उनपर साधिकार कोई टिप्पणी नहीं करूंगा।परन्तु पुनर्जन्म के बारे में मेरा निजी अनुभव है, इसलिए मैं इस पर कोई विचार अधिकार सहित रख सकता हूँ।अगर पुनर्जन्म को सिद्ध किया जा सकता है तो फिर मोक्ष और स्वर्गादि की कल्पनाएं भी सिद्ध हुई समझी जा सकती है क्योंकि जिन शास्त्रों में पुनर्जन्म का वर्णन किया गया है, उनमें मोक्ष और स्वर्गादि लोकों का भी वर्णन है।यह हमारे विश्वास और श्रद्धा पर निर्भर करता है कि हम किसको सत्य मानें और किसे नहीं।
क्रमशः
प्रस्तुति -डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
पुनर्जन्म शब्द (पुनः+जन्म)में पुनः का अर्थ है फिर से और जन्म का अर्थ है, नए शरीर को प्राप्त कर इस संसार में जन्म लेना।इस संसार में भौतिक रूप से आने का अर्थात अव्यक्त से व्यक्त होने का केवल एक ही मार्ग है, वह है शरीर प्राप्त कर जन्म लेना। अतः पुनर्जन्म का अर्थ हुआ - पुराना जर्जर त्याग देने के उपरांत नये शरीर के साथ उसी भौतिक संसार में पुनरागमन।कहने का अर्थ है कि हम तो वही रहते हैं परन्तु हमारा शरीर बदल जाता है।
इस संसार में प्रत्येक प्राणी को अपना पुराना अथवा जर्जर हुआ शरीर त्यागना ही पड़ता है और नए शरीर की प्राप्ति होने तक अव्यक्त रूप से अंतरिक्ष में इंतज़ार करना पड़ता है।अन्य प्राणियों को तो देह त्याग के पश्चात ही दूसरा शरीर मिल जाता है परंतु मनुष्य के साथ ऐसा नहीं है।मनुष्य की देह त्याग के बाद तीन में से किसी एक प्रकार का व्यवहार हो सकता है।प्रथम मोक्ष अर्थात आवागमन से मुक्ति,द्वितीय किसी नए शरीर का मिलना और पुनः संसार में व्यक्त हो जाना और तीसरा अव्यक्त रहना।अव्यक्त रहने में भी तीन अवस्थाएं होती हैं-स्वर्ग आदि उच्च लोकों में चले जाना , प्रेत योनि भोगना अथवा पितृ योनि में रहना।तीनों ही अवस्थाओं में कुछ समय बिताकर पुनः नया शरीर प्राप्त कर संसार में भौतिक रूप से व्यक्त होना होता है।
शारीरिक मृत्यु के बाद होने वाले प्रथम व तृतीय इन दो व्यवहारों के बारे में मेरा कोई व्यक्तिगत अनुभव नहीं है, पढ़ा अवश्य है।अतः उनपर साधिकार कोई टिप्पणी नहीं करूंगा।परन्तु पुनर्जन्म के बारे में मेरा निजी अनुभव है, इसलिए मैं इस पर कोई विचार अधिकार सहित रख सकता हूँ।अगर पुनर्जन्म को सिद्ध किया जा सकता है तो फिर मोक्ष और स्वर्गादि की कल्पनाएं भी सिद्ध हुई समझी जा सकती है क्योंकि जिन शास्त्रों में पुनर्जन्म का वर्णन किया गया है, उनमें मोक्ष और स्वर्गादि लोकों का भी वर्णन है।यह हमारे विश्वास और श्रद्धा पर निर्भर करता है कि हम किसको सत्य मानें और किसे नहीं।
क्रमशः
प्रस्तुति -डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
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