Friday, January 4, 2019

अविरल जीवन(Life is continuous)-18

अविरल जीवन (Life is continuous)-18
     परमात्मा और जीवन में कुछ तो अंतर होगा अन्यथा इनके दो अलग अलग नाम कैसे होते ? यहीं आकर प्रश्न उठता है कि फिर जीवन क्या है ? जैसा कि मैंने कहा है कि बिना परमात्मा के जीवन नहीं है और बिना जीवन के परमात्मा का कोई अस्तित्व नहीं है |परमात्मा के अस्तित्व को स्वीकारना भी भला बिना जीवन के कैसे संभव हो सकता है ? कल्पना कीजिए कि जीवन नहीं है तो फिर ऐसे में परमात्मा का अस्तित्व कौन स्वीकार अथवा अस्वीकार करेगा ? परमात्मा का अस्तित्व जीवन के कारण ही स्वीकार्य है अन्यथा नहीं | जीवन परमात्मा के स्पंदन का नाम है, जीवन केवल मात्र स्पंदन के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है | बिना इस स्पंदन के परमात्मा का प्रकटीकरण हो ही नहीं सकता | परमात्मा को स्वयं की अभिव्यक्ति के लिए स्पंदित होना ही पड़ता है | अतः कहा जा सकता है कि जीवन परमात्मा का स्पंदन मात्र है इसलिए वही परमात्मा है | स्पंदन जब गर्भ के हृदय में प्रारम्भ हो जाता है, तब हम कह सकते हैं कि गर्भ में जीवन है अन्यथा उस गर्भ के विकसित होकर शिशु हो जाने का प्रश्न ही नहीं उठता |
             यह स्पंदन भी व्यक्त और अव्यक्त होता रहता है | जब जीव एक शरीर का त्याग करता है, तब उसके शरीर से स्पंदन अव्यक्त हो जाता है और अव्यक्त होकर अंतरिक्ष में स्पंदित होता रहता है | जब जीव को दूसरा शरीर उपलब्ध होता है, तब वह उस नए शरीर में प्रवेश कर उसमें स्पंदित होने लगता है | स्पंदन केवल व्यक्ति के हृदय में ही नहीं होता, स्पंदन तो प्रकृति के प्रत्येक स्थान,वस्तु और प्राणी में हो रहा है।वह तो मैं मनुष्य के शरीर में स्पंदन होने की बात कह रहा था अतः केवल हृदय के स्पंदित होने के बारे में कहा था | स्पंदन तो प्रत्येक कोशिका में, रोम-रोम में, सृष्टि के कण-कण में हो रहा है | केवल जीव का ही जीवन नहीं होता बल्कि सभी चर-अचर जीवों और निर्जीव में भी परमात्मा का स्पंदन होता रहता है | इसीलिए पृथ्वी सहित सभी ग्रहों और उपग्रहों यहाँ तक कि ब्रह्मांड तक का भी अपना एक जीवन होता है | कहने का अर्थ यह है कि ब्रह्माण्ड की प्रत्येक वस्तु और प्राणी तक में स्पंदन हो रहा है और इस प्रकार कहा जा सकता है कि जीवन सर्वत्र है | सृष्टि में सर्वत्र जीवन है और जहां जीवन है वहां तो परमात्मा होंगे ही । एक मात्र यही सार्वभौमिक सत्य है।
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ. प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||

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