पुनर्जन्म-15
हमारे चित्त(मन) में भावन के कारण हमारे द्वारा किये गए कर्मों, कामनाओं और आसक्तियों का अंकन क्यों और किस प्रकार होता है, आइए चलते हैं, इनका अध्ययन करने, संचयन (Accumulation)की ओर।
संचयन (Accumulation)-
प्रत्येक भावन(emotions) को मन में अंकित कर उनका संचयन किया जाता है, भावन को संचित क्यों किया जाता है, इसके दो कारण है।प्रथम कारण है, स्मृति (memory)बनाये रखने के लिए, जिससे आवश्यकता पड़ने पर संवेद से मिले ज्ञान को मन तत्काल ही संवेदन में बदल सके । संचयन का दूसरा कारण है, अगर शरीर जर्जर हो जाये तो अंकित की गई अधूरी कामनाओं को पूरा करने के लिए एक माध्यम अर्थात किसी नए शरीर को ढूंढा जा सके।
स्मृति के उदाहरण-जैसे पूर्व में किसी मीठे व्यंजन का स्वाद चखा हो तो उसका अंकन हो गया और दुबारा वही व्यंजन मिला तो उस संवेदन का अनुभव तत्काल हो जाता है।अगर व्यंजन नहीं भी मिला, केवल उस व्यंजन की कल्पना भी की तो अंकित स्मृति के आधार पर संवेदन सक्रिय हो उठता है और मुँह में पानी आ जाता है । इसी प्रकार जब दूरदर्शन पर कहीं पर भी शीत लहर चलने अथवा बर्फबारी होने का केवल समाचार ही प्रसारित होता है तो भी यहां बैठे व्यक्ति को सर्दी की स्मृति जाग्रत हो झुरझुरी आ जाती है। यह भी स्मृति से संवेदन होने का एक उदाहरण है।
स्मृति भी दो प्रकार की है, दीर्घावधि स्मृति(LTM, long term memory) और अल्पावधि स्मृति (STM, short term memory)। अल्पावधि स्मृति का अंकन (record)व्यक्ति की कामना पूर्ण होने पर, कर्मफल मिल जाने पर अथवा ममता, आसक्ति आदि के समाप्त कर डालने से मिट जाते हैं । दीर्घावधि समृति के मिटने के अवसर नगण्य है।केवल किसी क्षमाशील और आध्यात्मिक व्यक्ति में ही ऐसा होना संभव हो सकता है।यही कारण है कि व्यक्ति की देह त्याग के समय उसे दीर्घावधि स्मृतियां एक एक कर सक्रिय होकर उसकी आँखों के सामने आकर चलचित्र की भांति दिखाई देने लगती है।गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि अंत समय में व्यक्ति जिसका स्मरण करता है, वह उसी भाव को प्राप्त होता है।इसीलिए कहा जाता है कि जीवन भर परमात्मा का स्मरण करते रहो जिससे देह त्यागते समय केवल उसी का स्मरण मन में बना रहे।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
हमारे चित्त(मन) में भावन के कारण हमारे द्वारा किये गए कर्मों, कामनाओं और आसक्तियों का अंकन क्यों और किस प्रकार होता है, आइए चलते हैं, इनका अध्ययन करने, संचयन (Accumulation)की ओर।
संचयन (Accumulation)-
प्रत्येक भावन(emotions) को मन में अंकित कर उनका संचयन किया जाता है, भावन को संचित क्यों किया जाता है, इसके दो कारण है।प्रथम कारण है, स्मृति (memory)बनाये रखने के लिए, जिससे आवश्यकता पड़ने पर संवेद से मिले ज्ञान को मन तत्काल ही संवेदन में बदल सके । संचयन का दूसरा कारण है, अगर शरीर जर्जर हो जाये तो अंकित की गई अधूरी कामनाओं को पूरा करने के लिए एक माध्यम अर्थात किसी नए शरीर को ढूंढा जा सके।
स्मृति के उदाहरण-जैसे पूर्व में किसी मीठे व्यंजन का स्वाद चखा हो तो उसका अंकन हो गया और दुबारा वही व्यंजन मिला तो उस संवेदन का अनुभव तत्काल हो जाता है।अगर व्यंजन नहीं भी मिला, केवल उस व्यंजन की कल्पना भी की तो अंकित स्मृति के आधार पर संवेदन सक्रिय हो उठता है और मुँह में पानी आ जाता है । इसी प्रकार जब दूरदर्शन पर कहीं पर भी शीत लहर चलने अथवा बर्फबारी होने का केवल समाचार ही प्रसारित होता है तो भी यहां बैठे व्यक्ति को सर्दी की स्मृति जाग्रत हो झुरझुरी आ जाती है। यह भी स्मृति से संवेदन होने का एक उदाहरण है।
स्मृति भी दो प्रकार की है, दीर्घावधि स्मृति(LTM, long term memory) और अल्पावधि स्मृति (STM, short term memory)। अल्पावधि स्मृति का अंकन (record)व्यक्ति की कामना पूर्ण होने पर, कर्मफल मिल जाने पर अथवा ममता, आसक्ति आदि के समाप्त कर डालने से मिट जाते हैं । दीर्घावधि समृति के मिटने के अवसर नगण्य है।केवल किसी क्षमाशील और आध्यात्मिक व्यक्ति में ही ऐसा होना संभव हो सकता है।यही कारण है कि व्यक्ति की देह त्याग के समय उसे दीर्घावधि स्मृतियां एक एक कर सक्रिय होकर उसकी आँखों के सामने आकर चलचित्र की भांति दिखाई देने लगती है।गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि अंत समय में व्यक्ति जिसका स्मरण करता है, वह उसी भाव को प्राप्त होता है।इसीलिए कहा जाता है कि जीवन भर परमात्मा का स्मरण करते रहो जिससे देह त्यागते समय केवल उसी का स्मरण मन में बना रहे।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
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